मध्य प्रदेश में मोहन यादव के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने गुरुवार को एक बड़ा फैसला लिया है. सीबीआई सहित तमाम केंद्रीय जांच एजेंसियों के अधिकारियों को प्रदेश में किसी भी मामले की जांच शुरू करने के लिए राज्य सरकार से लिखित में अनुमति लेनी होगी. इस संबंध में मध्य प्रदेश के गृह विभाग ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इस तरह के फैसले अभी तक विपक्षी दलों के शासित राज्यों में लिए जा रहे थे, जिसके नक्शेकदम पर मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार चलती हुई नजर आ रही है. मध्य प्रदेश और केंद्र दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार है, इसके बाद भी मोहन यादव सरकार ने केंद्रीय जांच एजेंसियों की डायरेक्ट एंट्री पर क्यों ब्रेक लगाया है.
एमपी के गृहविभाग के सचिव गौरव राजपूत के मुताबिक अगर सीबीआई या फिर अन्य दूसरी जांच एजेंसी को राज्य के किसी भी व्यक्ति, सरकारी अधिकारी या संस्था की जांच करनी हो तो उसे पहले प्रदेश के प्रशासन से लिखित मंजूरी लेनी होगी. इसके बाद ही जांच शुरू कर सकते हैं. दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 6 के अनुसार सीबीआई को जांच करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों से सहमति की आवश्यकता होती है. इस संबंध में मंगलवार को एक अधिसूचना प्रकाशित की गई थी और यह आदेश राज्य में 1 जुलाई से प्रभावी माना जाएगा.
लिखित सहमति का ‘ब्रेक’ लगाया
मोहन यादव की नेतृत्व वाली सरकार ने सीधे-सीधे तो सीबीआई के क्षेत्राधिकार या मामले की जांच को रोकने की बात तो नहीं कही है, लेकिन उसने लिखित सहमति का ‘ब्रेक’ जरूर लगा दिया है. गृह विभाग ने कहा कि राज्य सरकार की पूर्व लिखित अनुमति के बिना ऐसी कोई जांच नहीं की जाएगी. किसी भी अन्य अपराध के लिए सभी पिछली सामान्य सहमति और किसी भी अन्य अपराध के लिए राज्य सरकार द्वारा केस-दर-केस आधार पर दी गई कोई भी सहमति भी लागू रहेगी. इसमें कहा गया है कि यह आदेश 1 जुलाई से पूर्वव्यापी असर से लागू होगा.
किन राज्यों में यह नियम
देश के राज्यों में किसी भी मामले में सीबीआई और केंद्रीय जांच एजेंसी को जांच के लिए राज्यों की अनुमित का कदम उठाकर एमपी की मोहन सरकार विपक्षी दलों के शासित राज्यों की राह पर चल दी हैं. अभी तक इस तरह के नियम ज्यादातर विपक्ष दलों की सरकार वाले राज्यों में है, जिनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब, केरल और तेलंगाना जैसे राज्य शामिल हैं. इन राज्यों में सीबीआई जांच की अनुमति को लेकर केंद्र सरकार का विरोध कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार का मामला तो हाल ही में सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था.
टीएमसी ने बनाया था नियम
2014 में मोदी सरकार के बनने के बाद से भ्रष्टाचार के मामले पर लगातार एक्शन लिए जा रहे हैं, जिसे लेकर विपक्षी दल सवाल उठाते रहे हैं कि राजनीतिक बदले की कार्रवाई के तहत केंद्रीय जांच एजेंसियां परेशान कर रही हैं. पश्चिम बंगाल में सीबीआई और ईडी का एक्शन शुरू हुआ तो टीएमसी के साथ टकराव वाली स्थिति बन गई थी. ममता बनर्जी की सरकार ने आदेश जारी कर कहा था कि सीबीआई और केंद्रीय जांच एजेंसी को किसी पर एक्शन लेने से पहले राज्य सरकार की इजाजत लेनी होगी.
विपक्ष और मोदी सरकार आई थी आमने-सामने
ममता बनर्जी ने एक बार तो ईडी के अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया था, जिसे लेकर मामला काफी तूल पकड़ा था. इसके बाद मामला अदालत तक पहुंच गया था. पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मूल वाद दायर किया था. इसमें आरोप यह लगाया गया था कि सीबीआई प्राथमिकियां दर्ज कर रही है और जांच कर रही है, जबकि राज्य ने अपने अधिकार क्षेत्र में मामलों की जांच के लिए संघीय एजेंसी को दी गई सहमति वापस ले ली है. इसी तरह तमिलनाडु में एमके स्टालिन और पंजाब में भगवंत मान सरकार ने भी इसी तरह का फैसला लिया था. इतना ही नहीं केरल की लेफ्ट सरकार ने ऐसे ही फैसला लिया था. विपक्षी दलों के शासित राज्यों में केंद्रीय जांच एजेंसी के एंट्री पर ब्रेक लगाए जाने को लेकर विपक्ष और मोदी सरकार आमने-सामने आ गई थी.
विपक्षी दलों की राह पर एमपी सरकार
सीबीआई को जांच के लिए राज्य सरकारों से अनुमति लिए जाने के फैसले पर पिछले साल दिसंबर में बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. केंद्र सरकार ने कहा था कि सीबीआई को अनुमति लेने की आवश्यकता होने से मामलों की जांच करने की उसकी शक्तियां गंभीर रूप से सीमित हो गई हैं. एक संसदीय पैनल ने कहा था कि एक कानून बनाने की आवश्यकता है ताकि एजेंसी राज्य के ‘हस्तक्षेप’ के बिना मामलों की जांच कर सके. इसके साथ ही, पैनल ने यह भी माना कि सीबीआई के कामकाज में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है ताकि राज्य भेदभाव की शिकायत न करें. विपक्षी दलों की राह पर अब बीजेपी की राज्य सरकार ने भी कदम बढ़ा दिया है.
मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार ने सीबीआई सहित केंद्रीय जांच एजेंसी को राज्य में किसी भी मामले के खिलाफ जांच करने के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेने का फैसला किया है. माना जा रहा है कि यह फैसला केंद्र सरकार की तरफ से पारित तीन नए आपराधिक कानूनों में से एक भारतीय न्याय संहिता के कार्यान्वयन के बाद नए कानूनी ढांचे का अनुपालन सुनिश्चित करने के तहत किया गया है. ऐसे में अब माना जा रहा है कि देश के दूसरे अन्य भाजपा शासित राज्यों द्वारा भी इसी तरह की अधिसूचनाएं पारित की जा सकती है.