इंदौर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि उसके पास बदहाल हो रही स्वास्थ्य सेवाओं से निपटने के क्या इंतजाम हैं। सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों के पद खाली क्यों पड़े हैं और इन्हें भरने की क्या योजना है।
एक भी स्वास्थ्य केंद्र मानकों पर खरा नहीं
हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार से यह जवाब उस जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए मांगा है, जिसमें प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा उठाया गया है। याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में एक भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसा नहीं है जो मानकों पर खरा उतरता हो।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, उप जिला अस्पताल और जिला अस्पताल हर जगह डॉक्टरों की कमी है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 4 अलग-अलग तरह के विशेषज्ञ होना ही चाहिए, लेकिन हालत यह है कि कुल 309 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से एक भी ऐसा नहीं है, जिसमें चारों तरह के विशेषज्ञ उपलब्ध हों।
सरकारी अस्पतालों में भी स्थिति खराब
ऐसी ही स्थिति अन्य सरकारी अस्पतालों की भी है। यह जनहित याचिका सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय मिश्रा की तरफ से एडवोकेट अभिनव धनोतकर ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि जनता को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी राज्य शासन की होती है। सरकार ने स्वास्थ्य केंद्र तो खोल दिए लेकिन उनमें कोई सुविधाएं नहीं हैं।
नवजात बच्चों के लिए व्यवस्था नहीं
प्रदेश के स्वास्थ्य केंद्रों में नवजात बच्चों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। लगभग हर जिले में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कमी है। शासन डॉक्टरों की भर्ती के नाम पर विज्ञापन जारी कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्र भगवान भरोसे चल रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने अपनी बात के समर्थन में कोर्ट में दस्तावेज और आंकड़े भी प्रस्तुत किए हैं। शुक्रवार की सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में शिशुरोग विशेषज्ञ के सिर्फ 1 प्रतिशत पद ही भरे हैं। शेष खाली पड़े हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े खास आंकड़ें
- सरकारी अस्पतालों में सिर्फ 84 स्त्री रोग विशेषज्ञ पदस्थ हैं।
- स्त्री रोग विशेषज्ञ के 74 पद खाली पड़े हैं।
- सरकारी अस्पताल में शिशु मृत्यु दर 48 है।
- जन्म लेने वाले 1000 बच्चों में से 48 की मृत्यु हो जाती है।
- याचिका में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।