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बाप गुरू, बेटा दुश्मन… पूर्वांचल का वो चेहरा जिसके डर से अतीक अहमद भी बदल लेता था अपना रास्ता

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प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में साल 1996 में अगस्त का महीना था. सिविल लाइंस में पैलेस थिएटर के बाहर काफी गहमागहमी थी. ठीक उसी समय सपा के विधायक जवाहर यादव अपनी मारूति कार से आए. यहां वह रूके ही थे कि पीछे से आई एक वैन ने उनकी गाड़ी को ओवरटेक किया. जवाहर यादव अभी कुछ समझ पाते और गाड़ी से निकलकर अपने बचाव के लिए कुछ कर पाते, इससे पहले ही वैन में से निकले एक युवक ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई. उस समय इलाहाबाद के लोगों ने पहली बार ऐसा हथियार देखा था, जिससे अंधाधुंध फायरिंग होती है.

इस वारदात को अंजाम देने वाला कोई और नहीं, इलाहाबाद के ही बारा से विधायक रहा उदयभान करवरिया था. वहीं उदयभान करवरिया, जिसके पिता और रेत माफिया भुक्कल महाराज की कभी इलाहाबाद में तूती बोलती थी.पुलिस का दावा है कि इलाहाबाद के आपराधिक इतिहास में पहली बार यहां AK47 का इस्तेमाल किया गया था. इस वारदात में तीन लोगों की हत्या हुई थी और इसी मामले में उदयभान करवरिया उनके भाई और पूर्व सांसद सूरजभान करवरिया को आजीवन कारावास की सजा हुई थी.

उदयभान के पिता से पुलिस अफसर भी खाते थे खौफ

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चूंकि एक दिन पहले ही उदयभान करवरिया की सजा राज्य सरकार की कृपा से माफ हुई है और वह जेल से बाहर आ गया है, इसलिए लाजमी है कि उसकी क्राइम कुंडली से लेकर राजनीतिक इतिहास पर एक नजर डाल लिया जाए. उदयभान करवरिया को आपराधिक विरासत अपने पिता से ही मिली है. उसके पिता भुक्कल महाराज का इलाहाबाद में ऐसा खौफ था कि बड़े से बड़ा करोबारी उसका नाम सुनकर ही कांप जाता था. इसके खौफ का अंदाजा साल 1981 की एक घटना से लगाया जा सकता है.

पूर्वांचल का बड़ा माफिया था भुक्कल महाराज

उस समय इलाहाबाद के एसएसपी हरिदास राव से उत्तर प्रदेश में बीपी सिंह सरकार के गृहमंत्री चौधरी नौनिहाल सिंह मिलने पहुंचे. उन्होंने अपने साथ आए युवक की पहचान एसएसपी से भुक्कल महाराज के रूप में कराई तो एसएसपी ने नौनिहाल सिंह के प्रति कृतज्ञता प्रकट की थी. कहा था कि उनकी कृपा से ही वह सबसे बड़े बदमाश की शक्ल देख पाए हैं. यह मुलाकात उस समय अखबारों की सुर्खियां बना था. हालांकि इस मुलाकात की खबर तत्कालीन सीएम बीपी सिंह को मिली तो उन्होंने एसएसपी को तो सस्पेंड किया ही, मंत्री चौधरी नौनिहाल सिंह से भी गृह मंत्रालय छीनकर शिक्षा विभाग देखने को कह दिया था.

पिता भुक्कल महाराज को नहीं मिल पाई राजनीति में एंट्री

इस घटना के बाद माफिया डॉन भुक्कल महाराज उर्फ वशिष्ठ नारायण करवरिया ने राजनीति में भाग्य आजमाया. वह इलाहाबाद (उत्तर) और इलाहाबाद (दक्षिण) से तीन बार निर्दलीय चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गया. भुक्कल महाराज पूर्वांचल के माफिया डॉन अतीक अहमद का आपराधिक गुरू भी था. बाद में अतीक अहमद ने भुक्कल महाराज की हत्या कर यमुना के घाटों से रेत खनन, रियल एस्टेट, सरकारी ठेकों आदि के अवैध कारोबार पर कब्जा कर लिया था.

2002 में पहली बार विधायक उदयभान करवरिया

भुक्कल महाराज की हत्या के के बाद उसके बेटे उदय भान करवरिया ने साल 2002 में बारा सीट से जीत कर अपने पिता का सपना पूरा किया. बीजेपी के टिकट पर उदयभान करवारिया ने साल 2007 में दोबारा जीत दर्ज की. वहीं, अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए उदयभान ने भी अपराध का रास्ता अख्तियार किया और अतीक से दुश्मनी ठान ली. देखते ही देखते यह दुश्मनी इतनी बड़ी हो गई कि अतीक अहमद उससे खौफ खाने लगा. यहां तक कि उदयभान करवरिया के रास्ते में आने से भी वह भरसक परहेज करता था.

राजनीतिक रसूख से दबाया जवाहर हत्याकांड

राजनीति में आने के बाद उदयभान करवरिया ने अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल जवाहर हत्याकांड को दबाने के लिए किया. इसके चलते बाद में आई कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह और मायावती की सरकारों के दौरान इस मुकदमे में कोई प्रगति नहीं हुई. हालांकि अखिलेश यादव जब पहली बार सीएम बने तो जवाहर यादव की पत्नी ने उनसे मिलकर इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा. इसके बाद पुलिस ने उदयभान करवरिया और उसके भाइयों भाइयों कपिल मुनि करवरिया और पूर्व सांसद सूरजभान करवरिया के खिलाफ घेरा कस दिया. इसके फलस्वरुप इन सभी ने सरेंडर किया और साल 2015 में इन्हें आजीवन कारावास की सजा हो सकी.तब से 8 साल 3 महीने और 22 दिन ये सभी प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद थे.

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