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दिल्ली घेराव नहीं अब हरियाणा में चोट देने की तैयारी में किसान, कुछ ऐसा है प्लान

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न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी को लेकर किसान आंदोलित हैं. सरकार के मुताबिक हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर 500-600 ट्रैक्टर ट्रॉली सड़क पर बख्तरबंद गाड़ियों के रूप में मौजूद है, जिन्हें लेकर किसान दिल्ली आना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फिलहाल यथास्थिति का आदेश दिया है, जिसके बाद किसानों ने भी लड़ाई की अपनी रणनीति बदल ली है.

किसान अब दिल्ली आने से ज्यादा सत्ताधारी पार्टी को सियासी चोट देने की रणनीति पर काम कर रहा है. इस स्ट्रैटजी को अमलीजामा पहनाने की शुरुआत हरियाणा से होगी, जहां पर अब से 2 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं.

किसानों ने बदली लड़ाई की रणनीति

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प्लान-ए दिल्ली में धरना प्रदर्शन करने की है, लेकिन शंभू बॉर्डर पर बैठे किसानों के लिए दिल्ली अभी दूर है. वजह बॉर्डर खुलने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. हरियाणा सरकार ने शंभू बॉर्डर खोलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है. राज्य सरकार का कहना है कि बॉर्डर अगर खोला गया तो दिल्ली की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को देखने के लिए कमेटी का गठन किया है.

किसान संगठन से जुड़े नेताओं का कहना है कि इस बात की उम्मीद बहुत ही कम है कि उन्हें दिल्ली आसानी से प्रवेश करने दिया जाए, इसलिए किसान संगठनों ने प्लान-बी भी तैयार कर लिया है. यह सत्ता में बैठी पार्टियों को सियासी चोट देने की है.

इसके तहत किसान संगठनों न 3 स्ट्रैटजी तैयार की है-

1. किसान संगठन सबसे पहले हरियाणा पर फोकस कर रही है, जहां अब से 2 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. राज्य की सत्ता में अभी बीजेपी काबिज है. किसान संगठन से जुड़े सूत्रों के मुताबिक सितंबर महीने में हरियाणा में 2 बड़ी रैली आयोजित की जाएगी. इस रैली का नाम किसान महापंचायत दिया गया है.

15 सितम्बर को हरियाणा के जींद जिले की उचाना मंडी में किसान महापंचायत का पहला कार्यक्रम प्रस्तावित है. 22 सितम्बर को कुरुक्षेत्र की पिपली मंडी में किसानों की दूसरी रैली होगी. कुरुक्षेत्र की रैली से अंबाला जोन और जिंद की रैली से हिसार जोन को साधने की तैयारी है.

अंबाला जोन में विधानसभा की 14 सीटें हैं, जिसमें से 7 पर बीजेपी को जीत मिली थी. इसी तरह हिसार जोन में विधानसभा की 20 सीटें हैं और 6 पर बीजेपी और 7 पर जेजेपी ने जीत दर्ज की थी.

2. किसान संगठनों ने गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करने का प्लान किया है. इस अभियान की शुरुआत भी हरियाणा से ही की जाएगी. एमएसपी को लेकर किसान लोगों से बात करेंगे और सरकार की कारास्तानियों को बताएंगे. किसानों की नजर हरियाणा के उन जिलों पर है, जो पंजाब बॉर्डर से लगा है.

किसान संगठन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बॉर्डर इलाकों में इसका असर है. पंजाब की तरह माहौल बनता है तो सत्ताधारी पार्टी को इसका नुकसान होगा. पंजाब में इस बार बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई. 2019 में पंजाब की 2 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. राज्य में लोकसभा की कुल 13 सीटें हैं.

3. किसान संगठनों ने 15 अगस्त को हर जिले में ट्रैक्टर मार्च और 31 अगस्त को किसान आंदोलन के 200 दिन पूरे होने पर महापंचायत करेगी. इसके अलावा किसान संगठनों की ओर से पुतला दहन और बी.एन.एस.की कॉपियां भी जलाने का प्रस्ताव है.

हरियाणा के बाद किसान पश्चिमी यूपी की ओर रुख करेंगे. पश्चिमी यूपी भी किसानों का गढ़ माना जाता है. यहां 2027 में विधानसभा के चुनाव होने हैं.

एमएसपी की गारंटी क्यों मांग रहे किसान?

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी फसलों का एक निर्धारित सबसे कम कीमत है. सरकार यह कीमत फसलों पर जारी करती है, जिसके आधार पर किसान फसल बेचते हैं. किसानों की मांग है कि सरकार की ओर से जारी एमएसपी पर भी कई राज्यों में कई फसलों को नहीं खरीदा जाता है.

किसान इसके लिए लीगल गारंटी की मांग कर रहे हैं. इसके लागू होने से सरकार को किसानों की फसल को तय कीमत पर खरीदना ही पडे़गा. सरकार कुछ फसलों पर लीगल गारंटी देने को तैयार है, लेकिन धान और गेहूं जैसे फसलों पर नहीं. इसके पीछे सरकार की दलील उपज है. सरकार का कहना है कि इन फसलों का उत्पादन ज्यादा होता है और इसलिए इनकी लीगल गारंटी देना संभव नहीं है.

सरकार के लिए एक संकट विश्व व्यापार संगठन के साथ समझौता भी है. इस समझौते के सहारे ही सरकार आईएमएफ जैसे संगठनों से कर्ज ले सकती है. समझौते में एमएसपी को लेकर प्रतिबंध लगाया गया है. अगर सरकार यह समझौता तोड़ती है, तो उसे वैश्विक संगठनों से कर्ज नहीं मिल पाएगी.

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