महीना था जून का और साल 2014. देश का मौसम और सियासी मिजाज बदल चुका था. दक्षिण-पश्चिमी मानसून की वजह से देश की गर्मी शांत हो गई थी तो जनता के वोटों की वजह से कांग्रेस की. 16वीं लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को प्रचंड बहुमत से जीत मिली. जीत के कुछ दिन बाद सरकार बनी और फिर मंत्रिमंडल का बंटवारा हुआ, लेकिन इस फैसले के बाद सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी के पास नई चुनौती आ खड़ी हुई. यह चुनौती थी- नए अध्यक्ष के खोज की.
एक महीने की माथापच्ची के बाद बीजेपी ने आखिर में 9 जुलाई 2014 को अध्यक्ष पर फाइनल फैसला किया. यह फैसला था- अमित अनिलचंद्र शाह को बीजेपी अध्यक्ष बनाने की.
बीजेपी अध्यक्ष के सीरीज में आज कहानी 10वें अध्यक्ष अमित शाह की…
अमित शाह कैसे बने अध्यक्ष?
2013 में गोवा की कार्यकारिणी में बीजेपी ने कांग्रेस की मनमोहन सरकार से लड़ने के लिए तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाने का फैसला किया. कार्यकारिणी के इस फैसले के बाद बीजेपी ने कई राज्यों में नए सिरे से प्रभारियों की नियुक्ति की.
सबसे महत्वपूर्ण नियुक्ति उत्तर प्रदेश में हुई. यहां अमित शाह को प्रभारी बनाकर भेजा गया. शाह गुजरात सरकार में मोदी कैबिनेट में गृह मंत्री रह चुके थे. यूपी जाते ही शाह ने मोर्चेबंदी शुरू की. अयोध्या से बिगुल फूंकने के बाद पार्टी के लिए जोन वाइज रणनीति तैयार की.
इसका असर देखने को मिला और 2009 में 10 सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी को 2014 में लोकसभा की 71 सीटों पर जीत मिली. बीएसपी जीरो और कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई. सपा को भी सिर्फ 5 सीटों पर ही जीत मिली.
2014 में 10 साल बाद बीजेपी की सत्ता वापसी भी हुई. पार्टी को 543 में से 282 सीटों पर जीत मिली. एनडीए ने 300 का आंकड़ा पार कर लिया. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नियुक्त हुए और उनकी सरकार में तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह गृह मंत्री बने.
राजनाथ के गृह मंत्री बनने के बाद अध्यक्ष पद के लिए 3 नामों की चर्चा तेज थी. इनमें पहला नाम दलित थावरचंद गहलोत का, दूसरा नाम ब्राह्मण जेपी नड्डा का और तीसरा नाम अमित शाह का था.
शुरुआत में कहा जा रहा था कि प्रधानमंत्री के भी गुजरात से होने की वजह से अमित शाह की दावेदारी कमजोर पड़ सकती है, लेकिन जब 9 जुलाई 2014 को बीजेपी की संसदीय बोर्ड की बैठक हुई तो उसमें शाह का नाम सबसे आगे था.
अमित शाह के अध्यक्ष बनाने के 3 मुख्य कारण थे-
1. वरिष्ठ पत्रकार नीलंजन मुखोपाध्याय के मुताबिक नरेंद्र मोदी शाह की जोड़ी साथ काम कर रही थी. अमित शाह की सांगठनिक क्षमता भी साबित हो चुकी थी. ऐसी कई वजहों से अमित शाह का नाम आगे आया.
2. लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, दिल्ली, हरियाणा जैसे राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने थे. इन राज्यों में बीजेपी का संगठन काफी कमजोर था. लोकसभा में प्रचंड बहुमत से आई बीजेपी को लग रहा था कि अगर इन राज्यों में हार होती है तो केंद्र के खिलाफ जल्द ही माहौल बन सकता है. ऐसे में इन हारों से बचने के लिए अमित शाह को आगे किया गया.
3. उत्तर प्रदेश के चुनाव में अमित शाह की मेहनत के बूते बीजेपी पहली बार 70 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी सीट से बंपर वोटों से जीते थे. मोदी की लोकप्रियता के साथ ही इसमें अमित शाह का भी बड़ा योगदान माना गया.
अमित शाह का राजनीतिक करियर
मूल रूप से गुजरात के रहने वाले अमित शाह का जन्म मुंबई में हुआ. हालांकि, उनके जन्म के कुछ साल बाद ही उनका परिवार अहमदाबाद आ गया. शाह की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई यहीं पर हुई. एक इंटरव्यू में शाह ने बताया था कि वे बचपन में ही आरएसएस से जुड़ गए थे.
छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिए अमित शाह सक्रिय राजनीति में आए. शाह की पहली बार नरेंद्र मोदी की मुलाकात 1980 के दशक में हुई थी.
1991 में जब लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर से चुनाव लड़ने गए तो शाह को उनका चुनावी प्रबंधक बनाया गया. शाह 1997 में पहली बार सरखेज सीट से विधायक चुने गए. यहां से वे लगातार 2012 तक विधायक रहे.
शाह को 2002 में मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया. वे 2012 तक गुजरात सरकार में मंत्री रहे. 2013 में शाह बीजेपी के महासचिव बनाए गए. 2014 में वे बीजेपी के अध्यक्ष बने. 2019 में वे केंद्र सरकार में गृह मंत्री बने. शाह वर्तमान में भी केंद्र की मोदी सरकार में गृह मंत्री हैं.
अध्यक्ष बने तो बीजेपी की बैठक सीक्रेट हो गई
अमित शाह के पार्टी में अध्यक्ष बनने के बाद बीजेपी की बैठक सीक्रेट होने लगी. कौन मुख्यमंत्री बनेगा, कौन मंत्री और किसे टिकट मिलेगा या किसे नहीं, यह सब खबरें न तो ऑफ रिकॉर्ड आई और न ही ऑन रिकॉर्ड.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं- अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह दिन बीजेपी मुख्यालय मीटिंग करने गए, उस वक्त उनका एक बयान वायरल हो गया. वो बयान एक पत्रकार को लेकर था. शाह इसके बाद से नीतिगत मामलों की मीटिंग ऐसी जगहों पर करने लगे, जहां की भनक तक मीडिया को नहीं लग पाई.
उदाहरण के लिए- जब 2017 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री को नियुक्त करना था, तो उस वक्त गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को दिल्ली में पीयूष गोयल के आवास पर बुलाया गया था. गोयल उस वक्त न तो यूपी के प्रभारी थे और न ही यूपी की राजनीति से उनका कोई संबंध था.
मोदी को PM बनाने के लिए 2012 में शुरू कर दी थी तैयारी
2012 के गुजरात चुनाव में नरेंद्र मोदी ही मुद्दा थे. विपक्ष के लोग नरेंद्र मोदी को दिल्ली चले जाने की बात कहकर निशाना साध रहे थे तो सत्ता पक्ष के लोग चुप थे. हालांकि, शाह उस वक्त मोदी के पक्ष में अपनी रैलियों और भाषणों जोरदार दलीलें रख रहे थे.
चुनाव के दौरान वरिष्ठ पत्रकार शीला भट्ट ने जब उनसे इसको लेकर सवाल पूछा तो शाह का जवाब था- मोदी की स्वीकार्यता बढ़ रही है और वे प्रधानमंत्री बनते हैं तो गुजरात की इसमें भलाई है. शाह ने इस इंटरव्यू में कहा था कि नरेंद्र मोदी के पास यूपीए सरकार को खत्म करने की योजना है.
वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी 2014 में कारवां मैगजीन में लिखती हैं- शाह को भले ही अभी यूपी का प्रभारी बनाया गया है, लेकिन वे 2012 से ही इसकी तैयारी कर रहे थे. 2012 के यूपी चुनाव में शाह यहां आकर माहौल देख चुके थे. उन्हें पता था कि यूपी का चुनाव कैसे यूटर्न लेता है.
जोशी ने इसको लेकर शाह से एक सवाल भी पूछा था, जिसके जवाब में शाह ने कहा था कि 2012 में लोग बीएसपी को हराना चाहते हैं और 2014 में एसपी (समाजवादी पार्टी) को.
बीजेपी को बनाया देश की सबसे बड़ी पार्टी
अमित शाह के अध्यक्ष बनने से पहले तक बीजेपी के पास संगठन भी था और नेता भी, लेकिन पार्टी के पास कार्यकर्ताओं की फौज नहीं थी. 2015 में अमित शाह ने बीजेपी में बड़े स्तर पर सदस्यता अभियान की शुरुआत की. पहली बार ऐसा हो रहा था, जब कोई पार्टी मिस्ड कॉल के जरिए लोगों को सदस्य बना रही थी.
बीजेपी ने इस अभियान के जरिए पूरे देश में 18 करोड़ कार्यकर्ताओं की फौज तैयार की. इसके बूते बीजेपी पूरे देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. 2017 में अमित शाह के नेतृत्व में देश के 71 प्रतिशत हिस्से में बीजेपी की सरकार थी. शाह के नेतृत्व में 15 से ज्यादा राज्यों में बीजेपी को जीत मिली.
2019 के लोकसभा चुनाव में शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने प्रचंड जीत दर्ज की. शाह इसके बाद केंद्र में मंत्री बनाए गए. उन्हें गृह विभाग की कमान मिली.