विभागों से जुड़े संसद की स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष पद को लेकर सरकार और विपक्षी कांग्रेस में तकरार की खबरें हैं. कांग्रेस ने विभागों से जुड़े कुल 24 में से 6 समिति की कमान सरकार से मांगी है. कहा जा रहा है कि सरकार सिर्फ 4 समिति की अध्यक्षता कांग्रेस को दे सकती है. सरकार इसके पीछे संख्याबल को आधार बता रही है.
संसद की स्थायी समिति क्या है?
भारत में संसद का मुख्य रूप से 2 काम है. पहला, विधेयक पर फैसला करना और दूसरा सरकार की कार्यात्मक शाखा का निगरानी करना. अब चूंकि संसद पूरे साल तो चल नहीं सकती है और जब चलती भी है तो उसके पास बहुत सारे काम होते हैं, इसलिए अपने मूल काम को आसान बनाने के लिए संसद कमेटी का सहारा लेती है.
1921 में पहली बार ब्रिटिश संसद के दौरान ही इस व्यवस्था को लागू किया गया था. भारत की संसद 2 तरह की समिति का गठन करती है. एक स्थायी समिति या स्टैंडिंग कमेटी और दूसरा अस्थायी या तदर्थ समिति. अस्थायी समिति का गठन किसी मुद्दे या विधेयक विशेष पर किया जाता है.
स्थायी समिति का गठन प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर किया जाता है. यह समिति निरंतर आधार पर कार्य करती हैं. स्थायी समिति का मुख्य काम विधेयकों की समीक्षा करना है. साथ ही वार्षिक रिपोर्ट के साथ-साथ समिति बजट की भी समीक्षा करती है. इ समितियों की रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार आगे का काम करती है.
संसद में कुल 24 स्थायी समिति है. इनमें से एक आचार समिति सांसदों की सदस्यता रद्द की भी सिफारिश कर सकती है. 17वीं लोकसभा के दौरान आचार समिति की रिपोर्ट पर ही कृष्णानगर की तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा की सदस्यता रद्द की गई थी.
संसद की स्थायी समिति कितनी पावरफुल?
1. किसी भी विधेयक पर अध्ययन के लिए विशेषज्ञों को बुलाने का अधिकार इस समिति के पास है. सरकार के अफसरों को भी समिति अपने सुविधानुसार तलब कर सकती है.
2. समिति के पास किसी भी सांसद की सदस्यता रद्द करवाने की सिफारिश का अधिकार है. इसी तरह समिति अधिकारियों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की भी सिफारिश कर सकती है.
3. संसद की स्टैंडिग कमेटी को मिनी संसद भी कहा जाता है. इस समिति के पास किसी भी तरह के दस्तावेज को देखने का अधिकार प्राप्त है.
4. स्टैंडिंग कमेटी के प्रावधान के तहत ही हर विभाग की अलग कमेटी गठत होती है. इसका काम विभाग से जुड़े मामलों में गड़बड़ी की जांच करना, नए सुझाव देना, नए नियम-कानून का ड्रॉफ्ट तैयार करना है.
अध्यक्ष कौन बनेगा, यह कैसे तय होता है?
संसद में विभाग से जुड़े 24 स्थायी समिति है, जिसमें से 16 लोकसभा और 8 राज्यसभा से संबंधित है. समिति की अध्यक्षता किसे मिलेगी, यह संख्या के आधार पर तय किया जाता है. उदाहरण के लिए लोकसभा के 16 स्थायी समिति का अध्यक्ष चुना जाना है. लोकसभा की कुल संख्या 543 है. इस लिहाज से एक अध्यक्ष पद के लिए 34 सांसदों की जरूरत है.
इसी तरह राज्यसभा में एक समिति की कमान लेने के लिए कुल 28 सांसदों की जरूरत है.
लोकसभा में वर्तमान में 3 ही ऐसी पार्टियां है, जिसके पास 34 से ज्यादा सांसद है. हालांकि, पहले औसत संख्या से 2-4 कम सांसद रहने पर भी संबंधित पार्टियों को सरकार संसदीय समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी देती रही है. कहा जा रहा है कि यह परंपरा इस बार भी कायम रह सकती है.
कांग्रेस के पास वर्तमान में 99 सांसद है और कहा जा रहा है कि उसे लोकसभा में तीन समिति की कमान मिल सकती है. पार्टी की डिमांड 5 समितियों में अध्यक्ष पद लेने की है. पार्टी टॉप 4 विभागीय समिति में से 2 विभागों की अध्यक्षता भी चाह रही है. ये टॉप 4 विभागीय समिति गृह, रक्षा, वित्त और विदेश की है.
कमेटी में कौन-कौन हो सकते हैं शामिल?
प्रधानमंत्री, सरकार के मंत्री और राज्यसभा के सभापति के साथ-साथ लोकसभा के स्पीकर को छोड़कर कोई भी सांसद इस समिति में शामिल हो सकते हैं. लोकसभा के डिप्टी स्पीकर और राज्यसभा के उपसभापति को अगर स्टैंडिंग कमेटी में शामिल किया जाता है तो वे खुद ही इस समिति के अध्यक्ष हो जाते हैं.
नेता प्रतिपक्ष भी समिति में शामिल होते हैं, तो उन्हें समिति की कमान मिलती है. कहा जा रहा है कि राहुल गांधी को लेकर अभी सस्पेंस कायम है. कांग्रेस ने अपने कोटे से नाम नहीं दिए हैं.