दिल्ली शराब मामले में जमानत पर जेल से बाहर आए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मंगलवार शाम को अपने पद से इस्तीफा देंगे. केजरीवाल के इस्तीफे से पहले आतिशी के नाम को आम आदमी पार्टी के विधायक दल का नेता चुन लिया गया है, जिसके बाद अब उनके सिर मुख्यमंत्री का ताज सजेगा. ऐसे में दिल्ली की कमान आतिशी को सौंपकर केजरीवाल ने आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मास्टर स्ट्रोक चल दिया है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी और कांग्रेस की अब क्या रणनीति होगी?
मुख्यमंत्री बनने जा रही आतिशी ने पांच साल के राजनीतिक करियर में विधायक से मंत्री और सीएम तक सफर तय कर लिया है. 2019 में पूर्वी दिल्ली की लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरी थीं, लेकिन जीत नहीं सकीं. इसके बाद 2020 में पहली बार आतिशी विधायक बनीं. आतिशी आम आदमी पार्टी और केजरीवाल सरकार के साथ लंबे समय से काम कर रही हैं और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया की सलाहकार भी रही हैं. इसके बाद सिसोदिया जेल गए तो उनकी जगह मंत्री बनीं और अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने जा रही हैं. केजरीवाल ने आतिशी को ऐसे ही सीएम की कुर्सी नहीं सौंपी है बल्कि सोची-समझी रणनीति के तहत चुनाव किया गया है, जिसका लाभ विधानसभा चुनाव में उठाने का दांव माना जा रहा है.
महिला वोटरों को साधने का दांव
आतिशी को दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल ने चुनकर महिला वोटों को साधने का दांव चला है. दिल्ली में 46 फीसदी महिला मतदाता हैं जबकि 54 फीसदी पुरुष और थर्ड जेंडर है. दिल्ली की महिलाओं का वोटिंग पैटर्न देखें तो पुरुषों से ज्यादा उनका रहा है. ऐसे में आम आदमी पार्टी ने आतिशी को सीएम बनाने का फैसला करके महिला सशक्तिकरण का दांव खेलकर बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी कर दी है. दिल्ली के बदले हुए सियासी माहौल में महिला वोटर्स चुनाव में जीत-हार में अहम रोल प्ले कर रही हैं.
केजरीवाल सरकार महिलाओं पर मेहरबान
केजरीवाल दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से महिलाओं पर मेहरबान रहे हैं. केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में महिलाओं को बस में मुफ्त यात्रा की सुविधा साल 2019 में दी थी. फ्री बस सेवा सुविधा नोएडा-एनसीआर, एयरपोर्ट और डीटीसी और क्लस्टर बसों में उपलब्ध है. दिल्ली की करीब 40 फीसदी महिलाएं इस सुविधा का लाभ उठा रही हैं. यही नहीं केजरीवाल ने दिल्ली में ‘महिला मोहल्ला क्लीनिक’ भी शुरू किए हैं, जिसमें महिलाओं का इलाज महिला डॉक्टरों के जरिए किया जा रहा. अब महिला सीएम बनाकर आधी आबादी को साधने का दांव चला है.
पंजाबी समाज को सियासी संदेश
आम आदमी पार्टी ने आतिशी को सीएम बनाने का फैसला करके दिल्ली के पंजाबी समुदाय को सियासी संदेश देने की कोशिश की है. आतिशी पंजाबी बैकग्राउंड से समुदाय से आती हैं. वह पंजाबी राजपूत हैं. दिल्ली की सियासत में पंजाबी वोटर काफी अहम और निर्णायक माने जाते हैं. बीजेपी की पूरी सियासत में दिल्ली में पंजाबी और वैश्य समुदाय पर टिकी रही है. केजरीवाल खुद वैश्य समुदाय से आते हैं और सियासत में आने के बाद वैश्य समाज का विश्वास जीतने में कामयाब रहे हैं. पंजाबी वोटों का विश्वास बनाए रखने के लिए केजरीवाल ने अपनी जगह पर आतिशी को सीएम बनाने का दांव चला है.
30 फीसदी पंजाबी समुदाय
दिल्ली में करीब 30 फीसदी आबादी पंजाबी समुदाय की है. इनमें 10 फीसदी से ज्यादा पंजाबी खत्री और 8 फीसदी आबादी राजपूत-जाटों और 12 फीसदी वैश्य समुदाय हैं. दिल्ली के विकासपुरी, राजौरी गार्डन, चांदनी चौक, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, राजेंद्र नगर, ग्रेटर कैलाश, जगतपुरा, गांधी नगर, मॉडल टाउन, लक्ष्मी नगर और रोहिणी विधानसभा सीट पर पंजाबी समुदाय जीत हार तय करते हैं. एक समय पर पंजाबी वोटर बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माने जाते थे.
विश्वास को बनाए रखने का दांव
दिल्ली में मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा और केदारनाथ साहनी की तिकड़ी को बीजेपी का पंजाबी चेहरा माना जाता था. पंजाबी वोटरों के सहारे ही बीजेपी 1993 में सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने में कामयाब भी रही थीं. फिलहाल बीजेपी के पास पंजाबी समुदाय से कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को भले ही कुछ समय के लिए सत्ता की कमान सौंपी हो, लेकिन उनके जरिए पंजाबी समुदाय के विश्वास को बनाए रखने का दांव माना जा रहा है.
एजुकेशन मॉडल का ट्रंप कार्ड
आतिशी भले ही 2020 में विधायक बनीं और उसके बाद मंत्री और अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने जा रही हों, लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ शुरू से ही जुड़ी रही हैं. दिल्ली के सरकारी स्कूलों में आए क्रांतिकारी बदलाव के पीछे आतिशी की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी. सिसोदिया के शिक्षा मंत्री रहते हुए आतिशी उनकी सलाहकार थीं. ऐसे में माना जाता है कि आतिशी के ही सुझाव पर दिल्ली के शिक्षा में मनीष सिसोदिया ने तमाम परिवर्तन किए थे और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षा के मॉडल को बेहतर बनाने का काम किया.
दिल्ली स्कूलों में हैप्पीनेस करिकुलम की शुरुआत की थी. यह कोर्स दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए है. हैप्पीनेस करिकुलम का मकसद नर्सरी से लेकर 8वीं क्लास तक के बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत करना है. इसके बाद आम आदमी पार्टी के टिकट पर कालकाजी सीट से विधायक बनीं और कैबिनेट मंत्री रहते हुए तमाम अहम विभागों की जिम्मेदारी संभाली.
केजरीवाल की भरोसेमंद बनीं
आम आदमी पार्टी के साथ काम करते हुए आतिशी ने मुख्यमंत्री केजरीवाल का भरोसा ही नहीं जीता बल्कि भरोसेमंद बनकर उभरीं. इसलिए केजरीवाल ने अपनी जगह सीएम बनाने के लिए आतिशी के नाम को चुना. केजरीवाल ने सिर्फ आगामी चुनाव तक के लिए ही उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी है. ऐसे में विधानसभा चुनाव नतीजे आम आदमी पार्टी के पक्ष में जाता तो सत्ता की बागडोर केजरीवाल खुद संभालेंगे. ऐसे में पार्टी के भरोसेमंद नेता की तलाश थी, जो उनकी मर्जी के लिहाज से चल सके और चुनाव के बाद बागी न हो सके. बिहार में जीतन राम मांझी और झारखंड में चंपई सोरेन के रवैए को देख चुके हैं. इसलिए उन्होंने बहुत की सोच समझकर आतिशी को चुना है. आतिशी ने भी उसी दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं.
तेज तर्रार और आक्रामक चेहरा
आतिशी सियासत की पिच पर उतरे हुए भले ही पांच साल हुए हों, लेकिन वह तेज तर्रार और आक्रामक राजनीति का चेहरा बनकर उभरी हैं. केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के जेल जाने के बाद आम आदमी पार्टी के लिए सड़क से सदन तक संघर्ष करती आतिशी ही नजर आईं थी. आतिशी अपनी और पार्टी की बात को दमदार तरीके से रखती हैं. इस तरह केजरीवाल की गैरमौजूदगी में आतिशी ने उनकी कमी महसूस नहीं होने दी. अब केजरीवाल सत्ता की कमान उन्हें सौंप रहे हैं तो यह सवाल उठेगा कि आतिशी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन होगा. बीजेपी और कांग्रेस के पास दिल्ली में आतिशी के मुकाबले में कोई महिला चेहरा नहीं है. इस तरह आतिशी अब मुख्यमंत्री के तौर पर खुलकर खेलेंगी और विपक्ष के लिए टेंशन भी बढ़ाने का काम करेंगी?