पंजाबी राजपूत समुदाय से आने वाली आतिशी दिल्ली की नई मुख्यमंत्री होंगी. आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया है. आतिशी अपनी समुदाय की पहली सदस्य है, जो इस कुर्सी तक पहुंची हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिल्ली की सत्ता पर अब तक किन जातियों का दबदबा रहा है?
आतिशी और उनकी जाति की कहानी
पंजाबी राजपूत परिवार में जन्मी आतिशी शुरू में जाति पर विश्वास नहीं रखती थी. वजह उनके माता-पिता का वामपंथ विचारधारा की ओर झुकाव था. एक इंटरव्यू में आतिशी ने बताया था कि इसी वजह से उनके नाम में मार्लेना (काल मार्क्स और लेनिन के गठजोड़) सरनेम जोड़ा गया था.
हालांकि, जब आतिशी सक्रिय राजनीति में आई तो सबसे पहले उन्होंने अपना सरनेम छोड़ा. आतिशी 2020 में कालकाजी विधानसभा से विधायक चुनी गईं. आतिशी आप की सबसे टॉप नीतिगत बॉडी पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी की सदस्य भी हैं.
दिल्ली की गद्दी पर किन जातियों का रहा है दबदबा?
चौधरी ब्रह्म प्रकाश- 1952 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव कराए गए. कांग्रेस को जीत मिली और पार्टी ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी. ब्रह्म प्रकाश अहीर समुदाय से आते थे. वे मूल रूप से हरियाणा के रेवाड़ी के थे, लेकिन पलायन की वजह से दिल्ली आकर बस गए थे. ब्रह्म प्रकाश 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे.
गुरुमुख निहाल सिंह- चौधरी ब्रह्मप्रकाश के बाद गुरुमुख निहाल सिंह को दिल्ली मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली. निहाल संपूर्ण दिल्ली के आखिर मुख्यमंत्री थे. इसके बाद दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया. निहाल सिंह सिख समुदाय से ताल्लुक रखते थे. सीएम कुर्सी से हटने के बाद निहाल सिंह केंद्र की राजनीति में आ गए.
मदन लाल खुराना- 1993 में केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में पहली बार चुनाव कराए गए. बीजेपी को जीत मिली और पार्टी की तरफ से मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बनाए गए. खुराना केंद्र शासित दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री थे. वे पंजाबी खत्री समुदाय से ताल्लुक रखते थे. खुराना बाद के दिनों में केंद्र की राजनीति में आ गए. वे राज्यपाल भी बनाए गए.
साहिब सिंह वर्मा- हवाला कांड में मदनलाल खुराना के नाम आने के बाद उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी ले ली गई. साहिब सिंह वर्मा उनके उत्तराधिकारी बनाए गए. वर्मा करीब 2 साल तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. वे जाट समुदाय से आते थे. दिल्ली की राजनीति छोड़ने के बाद वर्मा केंद्र की राजनीति में आ गए. वे अटल बिहारी की तीसरी सरकार में श्रम मंत्री बनाए गए.
सुषमा स्वराज- मदन लाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा के बीच की सियासी अदावत को देखते हुए बीजेपी ने 1998 में नया प्रयोग किया. बीजेपी ने वर्मा की जगह सुषमा स्वराज को दिल्ली की गद्दी सौंप दी. स्वराज उस वक्त हरियाणा की राजनीति छोड़ केंद्र में सक्रिय हुई थी.
पंजाबी ब्राह्मण समुदाय से आने वाली सुषमा स्वराज करीब 58 दिनों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं. 1998 में उनकी पार्टी की दिल्ली में करारी हार हुई. कांग्रेस सरकार में आई.
शीला दीक्षित- कांग्रेस जब 1998 में दिल्ली की सत्ता में आई तो सीएम पद के लिए कई दावेदार थे, लेकिन सोनिया गांधी ने शीला दीक्षित को दिल्ली की कमान सौंपी. शीला दीक्षित कांग्रेस के कद्दावर नेता उमा शंकर दीक्षित की बहू थी.
शीला उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं. शीला दीक्षित के नाम सबसे ज्यादा वक्त (15 साल) तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड है.
अरविंद केजरीवाल- 2013 में शीला दीक्षित की सल्तनत को खत्म कर अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. केजरीवाल इसके बाद लगातार 3 बार मुख्यमंत्री बने. वे करीब 10 साल दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे.
हरियाणा के भिवानी जिले से ताल्लुक रखने वाले केजरीवाल वैश्य समुदाय से आते हैं. केजरीवाल वर्तमान में आम आदमी पार्टी के संयोजक भी हैं. केजरीवाल ने घोषणा किया है कि अगर उनकी पार्टी को 2025 में फिर से बहुमत मिलती है तो वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकते हैं.