वोडाफोन-आइडिया और भारती एयरटेल जैसे भारत के टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स को एक बड़ा झटका लगा है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उनके द्वारा दायर एक क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें न्यायालय के 2019 के फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की गई थी, जिसमें कहा गया था कि ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) तय करते समय दूरसंचार ऑपरेटरों के नॉन-कोर रेवेन्यू (जिससे कंपनी को सीधी कमाई होती है) को ध्यान में रखा जाएगा.
इस फैसले से कंपनियों पर क्या होगा असर
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा क्यूरेटिव याचिका को खारिज करने का मतलब है कि दूरसंचार ऑपरेटरों को पिछले 15 वर्षों में जमा हुए एजीआर बकाया के रूप में भारत सरकार को 92,000 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान करना होगा. दूरसंचार ऑपरेटरों द्वारा दायर क्यूरेटिव याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय के 2019 के फैसले को चुनौती देने के लिए उनके पास उपलब्ध अंतिम कानूनी सहारा थीं, जिसमें कहा गया था कि एजीआर की गणना करते समय दूरसंचार ऑपरेटरों द्वारा गैर-मुख्य राजस्व को ध्यान में रखा जाएगा, जो बदले में दूरसंचार ऑपरेटरों द्वारा भारत सरकार को देय शुल्क निर्धारित करेगा.
कोर्ट ने क्या कहा?
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई सहित तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 30 अगस्त को क्यूरेटिव याचिकाओं पर विचार किया और हाल ही में जारी फैसले में कहा कि हमने क्यूरेटिव याचिकाओं और संबंधित दस्तावेजों का अध्ययन किया है. हमारी राय में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा मामले में इस न्यायालय के निर्णय में बताए गए मापदंडों के भीतर कोई मामला नहीं बनता है. क्यूरेटिव याचिकाएं खारिज की जाती हैं. दूरसंचार विभाग द्वारा की गई गणना के अनुसार, वोडाफोन-आइडिया द्वारा देय एजीआर बकाया 58,254 करोड़ रुपए और भारती एयरटेल द्वारा देय 43,980 करोड़ रुपए था.
इसको लेकर क्या है नियम?
भारत की दूरसंचार नीति के अनुसार, दूरसंचार विभाग के साथ राजस्व साझाकरण समझौते के तहत टेलीकॉम सर्विस ऑपरेटरों को दूरसंचार विभाग को लाइसेंसिंग शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क का भुगतान करना होता है. और दूरसंचार विभाग को देय यह शुल्क एजीआर के प्रतिशत के रूप में गणना की जाती है. अब, क्या एजीआर में दूरसंचार कंपनियों द्वारा गैर-मुख्य गतिविधियों से हुई कमाई को शामिल किया जाएगा. यह 2005 से सरकार और दूरसंचार ऑपरेटरों के बीच विवाद का विषय रहा है.
क्या था 2019 का फैसला?
इस मुद्दे को अक्टूबर 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने सुलझाया था, जहां उसने माना था कि दूरसंचार ऑपरेटरों द्वारा गैर-मुख्य राजस्व को एजीआर की गणना में शामिल किया जाएगा. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2020 में दूरसंचार ऑपरेटरों द्वारा एक आवेदन पर निर्णय पारित किया और उन्हें भारत सरकार को बकाया राशि का भुगतान करने के लिए 10 साल का समय दिया और दूरसंचार कंपनियों को मार्च 2021 तक दूरसंचार विभाग को एजीआर बकाया का 10 प्रतिशत भुगतान करने का निर्देश दिया और बाद के बकाया का भुगतान टेलीकॉम सर्विस ऑपरेटरों द्वारा 31 मार्च, 2031 तक किया जाना था.
फैसले का शेयर पर असर
इस फैसले का भारती एयरटेल के शेयर पर कुछ खास असर नहीं देखने को मिला. कंपनी का शेयर आज के कारोबार में 1700 के हाई को टच कर दिया. यह एक दिन में आया सबसे बड़ा उछाल था. वहीं वोडाफोन के शेयर में जोरदार बिकवाली देखी गई. कंपनी का शेयर लगभग 14% नीचे चला गया. अभी वह 11 रुपए पर कारोबार कर रहा है.