हरियाणा में चुनावी संग्राम के बीच 13 दिन से सियासी कोपभवन में बैठी कद्दावर नेता कुमारी सैलजा को कांग्रेस हाईकमान ने मना लिया है. सैलजा अब हरियाणा में कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में ताबड़तोड़ रैली करेंगी. इसकी शुरुआत राहुल गांधी की असंध जनसभा से कर रही हैं.
हालांकि, हरियाणा की राजनीति में बड़ा सवाल नाराज सैलजा के मान जाने को लेकर है. सवाल पूछा जा रहा है कि सीएम पद पर दावेदारी करने वाली सैलजा को आखिर हाईकमान ने कैसे मनाया? वो भी राहुल गांधी की रैली से ठीक पहले.
पहले जानिए सैलजा नाराज क्यों थीं?
1. टिकट बंटवारे में सैलजा गुट की नहीं चली. सैलजा ने जिन नामों का ऐलान पब्लिक में किया था. उसे भी टिकट नहीं मिला. इसका बड़ा उदाहरण नारनौंद के अजय चौधरी हैं. यहां से कांग्रेस ने जसबीर पेटवाड़ को उम्मीदवार बनाया है.
2. नाराजगी की दूसरी वजह प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की कार्यशैली थी. सैलजा बाबरिया के उन बयानों से नाराज थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि सांसद विधायकी का चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. सैलजा का कहना था कि हाईकमान को ही फैसला करने का हक है.
फिर नाराज सैलजा को कैसे मनाया?
1. राहुल ने असंध से रैली की शुरुआत की- नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने करनाल के असंध से अपनी चुनावी रैली की शुरुआत की है. असंध सीट से कुमारी सैलजा के करीबी शमशेर सिंह गोगी कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. सिख और राजपूत बाहुल्य असंध में दलित एक्स फैक्टर माने जाते हैं.
कुमारी सैलजा के अध्यक्ष रहते 2019 में 15 साल बाद कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की थी. इस बार असंध हरियाणा का हॉट सीट बन चुका है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ यहां रैली कर चुके हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायवती की 30 सितंबर को यहां जनसभा प्रस्तावित है.
बीएसपी पिछले चुनाव में यहां दूसरे नंबर पर रही थी. कांटे की लड़ाई की वजह से असंध में सैलजा गुट की टेंशन बढ़ गई थी. इसी को कम करने के लिए राहुल ने यहां से रैली की शुरुआत की.
2. कांग्रेस अध्यक्ष खरगे से दो बार मीटिंग हुई- नाराज सैलजा को मनाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आगे आए. खरगे ने सैलजा के साथ 2 मीटिंग की. कहा जा रहा है कि इसके बाद ही सैलजा चुनावी कैंपेन में जाने को तैयार हुई.
खरगे के साथ सैलजा की पहली मीटिंग 22 सितंबर को हुई, जिसमें उन्होंने अपनी समस्या से कांग्रेस अध्यक्ष को अवगत कराया. सैलजा ने टिकट बंटवारे में पारदर्शिता नहीं होने की बात कही और प्रभारी दीपक बाबरिया की कार्यशैली पर सवाल उठाया.
सैलजा की दूसरी मुलाकात खरगे से 24 सितंबर को हुई. इसी दिन सैलजा का जन्मदिन भी था. सैलजा ने इस मुलाकात की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर शेयर की है. तस्वीर में खरगे सैलजा को केक खिला रहे हैं. साथ ही दोनों खुलकर हंस रहे हैं.
3. सत्ता आने पर हिस्सेदारी का आश्वासन- कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक सैलजा हिस्सेदारी को लेकर नाराज थीं. उन्हें लग रहा था कि जिस तरह से अभी उनके समर्थकों को इग्नोर किया गया है, उसी तरह सरकार आने पर भी किया जा सकता है. अभी अगर वे कुछ नहीं कर पाएंगी, तो सरकार आने पर उनके लिए चीजें आसान नहीं रहेगी.
सैलजा सत्ता में एक मजबूत हिस्सेदारी चाहती हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर भी दावा ठोक रखा है. हालांकि, सरकार आने पर भी उनके लिए सीएम बनने की राह आसान नहीं होने वाली है. वजह भूपिंदर हुड्डा का मजबूत जनाधार है.
कहा जा रहा है कि नाराज सैलजा को कांग्रेस हाईकमान ने सरकार आने पर सही भागीदारी देने का आश्वासन दिया है. इसके बाद सैलजा चुनाव प्रचार करने को तैयार हो गईं.
हरियाणा के दंगल में सैलजा कितनी मजबूत?
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव कुमारी सैलजा की छवि एक मजबूत दलित नेता की है. हरियाणा की राजनीति में दलितों के पास सत्ता की चाभी है. एक अनुमान के मुताबिक यहां पर करीब 20 प्रतिशत दलित हैं, जिनके लिए विधानसभा की 17 सीटें आरक्षित की गई है.
हालांकि, सैलजा ने हरियाणा से ज्यादा राष्ट्रीय राजनीति की है. 6 बार की सांसद सैलजा मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं. उनके पास छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे राज्यों के प्रभार रहे हैं.
कुमारी सैलजा अंबाला और सिरसा की राजनीति में मजबूत दखल रखती हैं. यहां पर विधानसभा की कुल 20 सीटें हैं. 2019 में कांग्रेस को इन 20 में से सिर्फ 7 सीटों पर जीत मिली थी. इन इलाकों में कुमारी सैलजा के अलावा कांग्रेस के पास कोई मजबूत चेहरा भी नहीं है.