महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगियों के साथ सीट लगभग फाइनल कर ली है. बीजेपी सबसे ज्यादा 150-155, एकनाथ शिंदे की शिवसेना 80-85 और अजित पवार की एनसीपी 55-60 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. तीनों ही पार्टियां जल्द ही इसकी आधिकारिक घोषणा करेंगी.
महायुति की इस सीट शेयरिंग को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा अजित पवार की पार्टी को मिलने वाली सीट है. 40 विधायकों वाली अजित पवार को 38 विधायकों वाली एकनाथ शिंदे की पार्टी से कम सीटें मिल रही है. सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
सीट शेयरिंग पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
महाराष्ट्र में महायुति ने वर्तमान विधायको को आधार बनाते हुए सीट शेयरिंग का फैसला किया है. इसी वजह से बीजेपी सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. वर्तमान में बीजेपी के पास 105 विधायक है और उसे लड़ने के लिए 150 सीटें मिल रही है. 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने 152 सीटों पर उम्मीदवार उतारा था.
हालांकि, यह फॉर्मूला एनसीपी (अजित) पर लागू नहीं हुआ है. अजित के पास वर्तमान में 42 विधायक (40 एनसीपी और 2 कांग्रेस के) हैं, लेकिन अजित को सिर्फ 55-60 सीट देने पर ही बीजेपी राजी है. दिलचस्प बात है कि 38 सीट वाली शिवसेना (शिंदे) को 80-85 सीट ऑफर किया गया है.
बड़ा सवाल- अजित के साथ खेल क्यों?
अजित पवार के साथ सीट शेयरिंग में हुए इस खेल की 3 बड़ी वजहें हैं. आइए एक-एक कर इसे समझते हैं..
1. सीएम पद की दावेदारी- अजित पवार खुलकर सीएम पद की दावेदारी कर चुके हैं. बुधवार (25 सितंबर) को भी उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि सीएम बनने की इच्छा तो है लेकिन गाड़ी डिप्टी सीएम से आगे ही नहीं बढ़ रही है. अजित अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे की सरकार में डिप्टी सीएम रह चुके हैं.
अजित को इसलिए भी बीजेपी ज्यादा सीटें नहीं देना चाहती है, क्योंकि बीजेपी को लगता है कि ज्यादा सीट देने पर अगर अजित की संख्या बढ़ जाती है तो चुनाव के बाद वे सीएम पद की खुलकर डिमांड कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में बीजेपी के पास ज्यादा ऑप्शन नहीं होगा.
सीएम की डिमांड को लेकर बीजेपी 2019 में शिवसेना से गच्चा खा चुकी है. उद्धव ठाकरे ने सीएम पद न देने पर बीजेपी को झटका देते हुए कांग्रेस और शरद पवार से गठबंधन कर लिया था
2. अजित पवार की दलबदल छवि- अजित पवार की क्रेडिबिलिटी भी बड़ा मुद्दा है. 2019 के चुनाव के बाद देवेंद्र फडणवीस ने अजित के साथ मिलकर सरकार का गठन किया था, लेकिन जब विश्वासमत हासिल करने की बात आई तो अजित मुकर गए. बाद में अजित उद्धव की सरकार में जाकर शामिल हो गए.
हालांकि, 2023 में अजित फिर से पार्टी तोड़ बीजेपी के साथ आ गए. अजित के बीजेपी में आने से कई स्थानीय नेता असहज हैं. इसकी वजह उनकी टिकट की दावेदारी है. अजित पश्चिम महाराष्ट्र और मुंबई की अधिकांश उन सीटों पर दावा ठोक रहे हैं, जहां बीजेपी का जनाधार रहा है.
इतना ही नहीं, सेटिंग-गेटिंग के फॉर्मूले पर अजित जिन सीटों को मांग रहे हैं. उनमें भी करीब एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां पर बीजेपी की दावेदारी रही है. 2019 में बीजेपी यहां दूसरे नंबर पर थी. इन सीटों में आमालनेर, तुमसर, अहेरी प्रमुख हैं.
3. लोकसभा में प्रभावी साबित नहीं हुए अजित- हालिया लोकसभा चुनाव में अजित पवार प्रभावी साबित नहीं हुए हैं. लोकसभा चुनाव में अजित की पार्टी 4 सीटों पर लड़ी, लेकिन उसे सिर्फ एक पर जीत मिली. अजित अपने गढ़ में भी एनडीए को जीत नहीं दिला पाए.
विधानसभा वाइज बात करें तो अजित की पार्टी को सिर्फ 6 सीटों पर बढ़त मिली. इसके मुकाबले एकनाथ शिंदे की पार्टी ने 39 सीटों पर बढ़त हासिल की. लोकसभा चुनाव में शिंदे की पार्टी को 7 सीटों पर जीत भी मिली. शिंदे अपना गढ़ भी बचाने में कामयाब रहे.
ऐसे में विधानसभा चुनाव में शिंदे के मुकाबले अजित को ज्यादा सीटें देना बीजेपी के लिए रिस्क है. यही वजह है कि ज्यादा सीट होने के बावजूद एनसीपी को एनडीए में लड़ने के लिए सबसे कम सीटें ऑफर की गई है.
सीएम पद पर चुनाव बाद होगा फैसला
महायुति में मुख्यमंत्री पद पर चुनाव बाद फैसला होगा. वर्तमान में शिवसेना (शिंदे) के एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं. हालांकि, सीएम पद पर बीजेपी की दावेदारी ज्यादा है. वजह बीजेपी का बड़ी पार्टी होना है.
2014 से 2019 तक महाराष्ट्र में बीजेपी की ही सरकार थी और पार्टी ने उस वक्त देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री नियुक्त किया था, लेकिन वर्तमान में देवेंद्र फडणवीस एकनाथ शिंदे की सरकार में डिप्टी सीएम हैं.