भारत और बांग्लादेश के बीच टेस्ट सीरीज का दूसरा मैच कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में शुरू हो गया. सीरीज का पहला मुकाबला चेन्नई में हुआ था, जिसके बाद अब टक्कर कानपुर में हो रही है. दूसरे टेस्ट की शुरुआत ही बारिश के साथ हुई और इसके चलते पहले दिन सिर्फ 35 ओवर का खेल हो सका. बारिश के कारण टीम इंडिया के कप्तान रोहित शर्मा ने टॉस जीतकर पहले बॉलिंग का फैसला किया जो भारत में बहुत कम देखने को मिलता है. वहीं कानपुर स्टेडियम की खस्ता हालत भी इस दौरान सामने आई है. कानपुर टेस्ट से जुड़े इन दो-तीन घटनाक्रमों ने अचानक फिर से वो बात याद दिला दी, जो ठीक 5 साल पहले पूर्व कप्तान विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट के आयोजन को लेकर कही थी, जिसे बीसीसीआई ने अनदेखा कर दिया था लेकिन सच यही है कि उसे मानने का वक्त आ चुका है. क्या है वो बात और क्यों इसकी जरूरत है, यही आपको आगे बताते हैं.
5 साल पहले विराट ने क्या बोला था?
बात अक्टूबर 2019 की है जब भारत और साउथ अफ्रीका के बीच रांची में टेस्ट सीरीज का तीसरा मैच खेला गया. टीम इंडिया ने बड़ी आसानी से ये मुकाबला जीत लिया था और सीरीज में 3-0 से क्लीन स्वीप किया था. उस जीत के बाद विराट कोहली ने एक ऐसी बात कही थी, जिसने सबका ध्यान खींचा था क्योंकि एक तो तब विराट बेहद ताकतवर कप्तान थे और उनकी बातें वैसे ही सुनी जाती थीं लेकिन जो उन्होंने तब कहा, वो पहले भारतीय क्रिकेट में शायद ही कभी सुनने को मिला था. विराट ने जीत के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी राय देते हुए कहा था कि ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका जैसे देशों की तरह भारत में भी टेस्ट क्रिकेट के लिए 5 वेन्यू तय होने चाहिए. उन्होंने कहा था कि इससे न सिर्फ टीम इंडिया को बल्कि विदेशी टीमों को भी पता रहेगा कि कैसी परिस्थितियों में वो खेलने आ रहे हैं और कैसा पब्लिक सपोर्ट वहां पर मिलेगा.
विराट की बात को मानने की जरूरत क्यों है?
विराट कोहली का ये बयान इसलिए आया था क्योंकि रांची में टेस्ट का आयोजन किया जरूर था लेकिन तब उस टेस्ट को देखने के लिए उतनी ज्यादा संख्या में दर्शक नहीं पहुंचे थे, जैसा मुंबई, चेन्नई या कोलकाता जैसे वेन्यू पर आते हैं. लेकिन क्या यही एक वजह होनी चाहिए? सीधी सी बात है कि टेस्ट क्रिकेट को बचाए रखने के लिए इसमें दर्शकों का इंटरेस्ट होना जरूरी है. जितने लोग देखेंगे उतना ये फॉर्मेट जिंदा रहेगा लेकिन ये भी सच है कि हर शहर में टेस्ट क्रिकेट के दीवाने नहीं हैं, जो इस फॉर्मेट को पूरी तरह पसंद करें. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में खास तौर पर 4 या 5 वेन्यू तय रहते हैं और इन्हीं में हर साल टेस्ट मैच खेले जाते हैं क्योंकि इन वेन्यू पर फैंस हमेशा मुकाबले देखने आते हैं.
दूसरा, वेन्यू का ऐलान कई महीने पहले हो जाता है, इसलिए उन्हें उसी लिहाज से तैयार किया जाता है और फैंस भी अपनी छुट्टियों को उसी हिसाब से प्लान करते हैं. इंग्लैंड में लॉर्ड्स हो या एजबेस्टन, ऑस्ट्रेलिया में एमसीजी हो या गाबा, फैंस हर साल टेस्ट क्रिकेट देखने पहुंचते हैं और पूरे चार या पांच दिन स्टेडियम लगभग भरा रहता है. भारत के केस में ऐसा नहीं है, जहां 2 दर्जन से ज्यादा टेस्ट वेन्यू होने के कारण बीसीसीआई अक्सर सीरीज से 3-4 महीने पहले ही उनका ऐलान करती है क्योंकि उसे पता है कि अगर कोई मैदान वक्त पर तैयार नहीं हो सका, तो वो उसे कहीं और शिफ्ट कर सकती हैं, जैसा पिछले साल ऑस्ट्रेलिया सीरीज के दौरान धर्मशाला से इंदौर किया गया था. ये टीमों के अलावा फैंस के साथ भी अन्याय है. कानपुर टेस्ट शुरू होने से एक दिन पहले ही खबर आई कि स्टेडियम का एक हिस्सा सुरक्षित नहीं है, इसलिए वहां के टिकट ही नहीं बेचे गए. अगर वेन्यू फिक्स हों तो ऐसी स्थिति नहीं आती.
इसके अलावा परिस्थितियों से परिचय भी बहुत अहम है और इसका उदाहरण कानपुर टेस्ट के पहले दिन ही दिख गया. ग्रीन पार्क स्टेडियम में 1952 से टेस्ट मैच हो रहे हैं लेकिन पिछले सालों में ये कुछ कम हो गए. फिर भी यही माना जाता रहा है कि यहां स्पिनरों की मददगार पिच रहती है. ऐसे में हमेशा की तरह टॉस जीतकर पहले बैटिंग ही चुनी जाती रही है क्योंकि ये शुरुआत में बैटिंग के लिए अच्छा साबित होता है. लेकिन बारिश के मौसम ने भारतीय कप्तान रोहित और मैनेजमेंट को गफलत में डाल दिया और उन्होंने पहले बॉलिंग चुन ली, साथ ही 3 तेज गेंदबाज भी रख लिए क्योंकि उन्हें लगा बादलों से घिरा आसमान और नमी के कारण तेज गेंदबाजों को मदद मिलेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
अब अगर कानपुर हमेशा से एक फिक्स टेस्ट वेन्यू रहता और टीम इंडिया हर होम सीजन में यहां कोई मैच खेलती तो शायद टीम मैनेजमेंट को पता रहता कि यहां बारिश जैसी परिस्थितियों के बावजूद दबदबा स्पिन का ही रहेगा. ऐसे में न सिर्फ वो पहले बैटिंग चुनते बल्कि 3 स्पिनर्स को रखते और सिर्फ 2 पेसर. यानि खुद होम टीम परिस्थितियों को लेकर अनजान है और इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ जाता है. साथ ही 5-6 तय वेन्यू से ये भी फायदा रहता कि किसी वेन्यू के मौसम की हर साल रहने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही मुकाबलों की शेड्यूलिंग होती, जिससे बारिश या अन्य वजहों से खेल कम प्रभावित होता.
क्यों हकीकत नहीं बनता ये आइडिया?
अब सवाल ये है कि क्या ये बात बीसीसीआई के कर्ता-धर्ताओं को नहीं पता होगी? दुनियाभर में उदाहरण मौजूद होने के बावजूद क्यों बीसीसीआई ऐसा नहीं करती? इसके कुछ खास कारण हैं, जिसमें एक बड़ी वजह बोर्ड की पॉलिटिक्स है. असल में देशभर की 30 से ज्यादा स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन बीसीसीआई का हिस्सा हैं और कुछेक को छोड़कर बाकी सब वोटिंग का अधिकार रखते हैं. अब अगर किसी को बीसीसीआई की सत्ता हासिल करनी है तो उसे इन राज्य संघों के वोट चाहिए होंगे. इसके लिए कुछ वादे भी किए ही जाते होंगे, जिसमें टीम इंडिया के मुकाबलों, खास तौर पर टेस्ट मैच का वितरण अहम है. बीसीसीआई के अध्यक्ष से लेकर उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष, संयुक्त सचिव जैसे सबसे अहम पदों पर मौजूद अधिकारी अलग-अलग राज्य संघों से निकलकर आते हैं और इसलिए वो अपनी स्टेट एसोसिएशन को भी मुकाबले दिलाने के लिए पूरे प्रयास करते हैं. यही कारण है कि 5-6 वेन्यू वाली बात साकार नहीं हो पाती.
इसके अलावा राज्य संघों के स्टेडियम के रखरखाव के लिए भी कमाई की जरूरत होती है, जिसके लिए बीसीसीआई से फंड मिलता है लेकिन किसी भी मुकाबले की मेजबानी के लिए भी अलग से रकम देती है. कुछ साल पहले तक एक टेस्ट मैच की मेजबानी के लिए 25 लाख रुपये, वनडे इंटरनेशनल और टी20 इंटरनेशनल के लिए 15-15 लाख रुपये की फीस देती है. यानि राज्य संघ कमाई के इस मौके से भी नहीं चूकना चाहते और इसके लिए बीसीसीआई में लॉबी की जाती है. ऐसे में 5-6 टेस्ट वेन्यू तय करने के प्रयास कभी हुए ही नहीं और जिस तरह से बीसीसीआई ऑपरेट करती है, उससे आने वाले वक्त में भी ये फिलहाल होता हुआ नहीं दिख रहा.