साल 2024 के अंत में दो राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. एक महाराष्ट्र और दूसरा झारखंड. अजित पवार की पार्टी दोनों ही राज्यों में बीजेपी नीत एनडीए के साथ सहयोगी की भूमिका में है, लेकिन दोनों ही जगहों पर बीजेपी अजित को झटका देने में जुटी है. महाराष्ट्र में जहां बीजेपी ने लोकसभा में हार के लिए अजित को जिम्मेदार ठहरा दिया है.
वहीं झारखंड में चुनाव से पहले अजित पवार की पार्टी के एकमात्र विधायक और प्रदेश अध्यक्ष को बीजेपी ने अपने पाले में ले लिया. बैक-टू-बैक अजित को लगे इस झटके बाद सियासी गलियारों में सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव से पहले बीजेपी अजित के साथ कोई प्रैंक कर रही है?
पहल झटका सीट शेयरिंग में खेल
महाराष्ट्र में अजित पवार की पार्टी को पहला झटका सीट शेयरिंग में लगा है. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय कर दिया है. इस फॉर्मूले के तहत अजित पवार की पार्टी को 55-60, एकनाथ शिंदे की पार्टी को 80-85 और बीजेपी को 150-160 सीटें लड़ने के लिए मिलेगी. महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं.
दिलचस्प बात है कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना के पास वर्तमान में 38 विधायक है, जबकि अजित पवार की पार्टी के पास 40 एनसीपी के और 2 कांग्रेस के विधायक हैं. इसके बावजूद सीट शेयरिंग में अजित पवार को कम तवज्जो दी गई है.
सियासी गलियारों में सीट शेयरिंग के इस फॉर्मूले को अजित के लिए झटका के रूप में देखा जा रहा है.
दूसरा झटका फडणवीस का बयान
लोकसभा चुनाव के बाद से ही अजित पवार बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों की रडार पर हैं. महाराष्ट्र में हार के लिए बीजेपी के लोकल नेता लगातार अजित को जिम्मेदार ठहरा रहे थे. अजित अब तक लोकल नेताओं के बयानों को गंभीरता से नहीं ले रहे थे, लेकिन अब बीजेपी विधानमंडल दल के नेता देवेंद्र फडणवीस ने ही हार का ठीकरा अजित पर फोड़ दिया है.
हाल ही में एक इंटरव्यू में देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हम लोकसभा में इसलिए हारे, क्योंकि हमें अजित पवार का वोट ट्रांसफर नहीं हुआ. फडणवीस का कहना था कि गठबंधन में समर्थक अजित को लेकर असहज थे और इसलिए हम कई सीटों पर हार गए
महाराष्ट्र में चुनाव से पहले अजित पर फडणवीस के बयान के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.
तीसरा झटका झारखंड में लगा
महाराष्ट्र के साथ झारखंड में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं. यहां अजित पवार की पार्टी के पास एक विधायक था. पवार उसी के सहारे झारखंड में पांव पसारने की तैयारी में थे, लेकिन चुनाव से पहले एनसीपी विधायक कमलेश कुमार सिंह को बीजेपी ने अपने पाले में ले लिया है.
हुसैनाबाद से एनसीपी विधायक कमलेश सिंह ने अमित शाह और हिमंत बिस्वा सरमा से मुलाकात के बाद बीजेपी में जाने का फैसला किया है. सिंह एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष भी थे. वे लंबे वक्त से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में थे. कहा जा रहा है कि
सिंह के बीजेपी में जाने से अब अजित पवार की पार्टी को झारखंड एनडीए की तरफ से शायद ही सीट मिले. ऐसे में इसे महाराष्ट्र के बाहर पार्टी के विस्तार को झटका के रूप में भी देखा जा रहा है.
अजित को बीजेपी झटका क्यों दे रही?
इसकी एक वजह अजित के प्रेशर पॉलिटिक्स को कम करना है. एनडीए में आने के बाद भी अजित मुख्यमंत्री पद की रट लगाए हुए हैं. अजित कई सार्वजनिक मौकों पर मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता चुके हैं. वर्तमान में एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं. अगर शिंदे हटते हैं तो बीजेपी अपने कोटे से किसी को सीएम की कुर्सी सौंप सकती है.
अजित को झटका देने की दूसरी वजह अपने समर्थकों को साधने रखने की रणनीति है. बीजेपी अपने समर्थकों को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वो अजित के डिमांड के सामने झुक नहीं रही है.
एनसीपी तोड़ एनडीए में आए थे अजित
जुलाई 2023 में अजित पवार अपने चाचा शरद पवार से बगावत कर एनडीए में शामिल हो गए थे. उस वक्त अजित ने 40 विधायकों के साथ शिंदे सरकार को समर्थन दे दिया. अजित को इसका इनाम मिला और उन्हें डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंपी गई.
अजित इसके बाद से ही एनडीए में शामिल हैं. लोकसभा चुनाव में अजित की पार्टी को 4 सीटें मिली, लेकिन एनसीपी (अजित) सिर्फ एक पर जीत पाई. लोकसभा में खराब परफॉर्मेंस के बाद से ही अजित की पार्टी बीजेपी और शिवसेना (शिंदे) समर्थकों के निशाने पर हैं.