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पार्टी बनते ही प्रशांत किशोर ने मारी पहली पलटी, जन सुराज के संविधान से न्यूनतम अर्हता गायब

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जन सुराज गठित करते ही चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पहला यूटर्न ले लिया है. जन सुराज के संविधान से न्यूनतम अर्हता को हटा दिया गया है. कहा जा रहा है कि भारत के मूल संविधान की वजह से यह फैसला किया गया है. पीके के इस यूटर्न की अब सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है.

2 साल की पदयात्रा के बाद प्रशांत किशोर ने बिहार में जन सुराज पार्टी की स्थापना की है. यह पार्टी 2025 में बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

घूम-घूम कर न्यूनतम अर्हता की बात कर रहे थे

बिहार में अपनी पदयात्रा के दौरान प्रशांत किशोर घूम-घूम कर न्यूनतम अर्हता की बात कर रहे थे. प्रशांत ने पटना में 4 अगस्त 2024 को युवा संवाद के दौरान कहा था कि 10वीं फेल के नेतृत्व में कोई काम नहीं हो सकता है. पीके का कहना था कि नेता जब पढ़ा लिखा नहीं होगा, तो डिसीजन मेकिंग में हिस्सा कैसे ले पाएगा?

उन्होंने कहा था कि यह तय करना होगा कि पढ़े-लिखे लोग ही राजनीति में आएं और जन प्रतिनिधि बनकर काम करें. पीके ने आगे कहा था कि जन सुराज की बैठक में जब हमने लोगों से इस पर बात की तो कुछ लोग बीए, कुछ लोग इंटर (12वीं) को न्यूनतम अर्हता बनाने की बात कह रहे हैं. आप सब तय करें कि चुनाव लड़ने की न्यूनतम अर्हता क्या होनी चाहिए?

संविधान में न्यूनतम अर्हता का जिक्र नहीं

जन सुराज को जो नया संविधान तैयार किया गया है, उसमें चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम अर्हता का जिक्र नहीं किया गया है. संगठन से जुड़े सूत्रों के मुताबिक भारत के मूल संविधान के मद्देनजर ऐसा किया गया है. भारत के संविधान में सभी व्यक्ति को चुनाव लड़ने का हक और अधिकार है.

संगठन से जुड़े एक पदाधिकारी के मुताबिक पार्टियों को भारत का संविधान मानना होता है. ऐसा नहीं करने पर चुनाव आयोग के पास एक्शन लेने का अधिकार है. यही वजह है कि संविधान में न्यूनतम अर्हता का जिक्र नहीं किया गया है.

लोक प्रतिनिधित्व 1951 के अनुच्छेद-2 में इसको लेकर साफ-साफ दिशा-निर्देश है. इस अनुच्छेद में कहा गया है कि दल का उद्देश्य संविधान के अनुरूप ही हो.

जन सुराज के सिलेक्शन कमेटी के सदस्य गणेश राम न्यूनमत अर्हता को संविधान में शामिल नहीं किए जाने पर टीवी-9 भारतवर्ष से कहते हैं- पार्टी का संविधान भारत के मूल संविधान को देखकर तैयार किया गया है.

गणेश राम आगे कहते हैं- यह भी तो हो सकता है कि हम टिकट वितरण में इसे लागू करें? प्रशांत किशोर की कोशिश है कि बिहार में अंगूठा छाप नेता लोगों पर राज न कर पाए.

पीडीए की बड़ी आबादी पढ़ाई से वंचित

बिहार में एक बड़ी आबादी पढ़ाई-लिखाई से वंचित है. राज्य सरकार ने हाल ही में शैक्षणिक सर्वे कराया था. इसके मुताबिक बिहार में 20 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं. वहीं 22 प्रतिशत लोगों ने 1-5 तक की ही पढ़ाई की है. करीब 15 प्रतिशत लोगों ने 5-8 तक की पढ़ाई की है. इन तीनों को अगर जोड़ा जाए तो यह 60 फीसद के करीब है.

दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग पढ़ाई में काफी पीछे हैं. सर्वे के मुताबिक बिहार में 24 प्रतिशत दलित समुदाय के लोग सिर्फ 5वीं कक्षा तक पढ़े हैं. अति पिछड़े वर्ग के लोगों का भी आंकड़ा इसी के आसपास है. ईबीसी के 24.65 प्रतिशत आबादी मात्र पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की है.

जन सुराज से जुड़े सूत्रों का कहना है कि संविधान में इन तीनों ही समुदाय को देखते हुए यह फैसला लिया गया है. संविधान में अगर न्यूनतम अर्हता को शामिल किया जाता तो बाकी पार्टियां इसे दलित और पिछड़ा विरोधी घोषित करती. पहले से ही जातीय मुद्दे पर घिरे प्रशांत के लिए इसका डैमेज कंट्रोल आसान नहीं रहता.

जन सुराज के संविधान में क्या-क्या है?

जन सुराज के संविधान में राइट टू रिकॉल के बारे में गया है. जन सुराज देश की पहली पार्टी है, जिसने इस सिस्टम को लागू करने का फैसला किया है. राइट टू रिकॉल के तहत सभी कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने से पहले एक एफिडेविट देना होगा.

इसके मुताबिक अगर स्थानीय स्तर पर पार्टी के संस्थापकों में से एक तिहाई लोग अगर किसी जन प्रतिनिधिन के खिलाफ प्रस्ताव लाता है तो संबंधित प्रतिनिधि को इस्तीफा देना होगा.

जन सुराज में राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल एक साल के लिए ही होगा. अब तक सभी पार्टियों में अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल के लिए होता है. जन सुराज में रोटेशन के आधार पर अध्यक्ष का निर्वाचन होगा.

पहले साल में दलित, दूसरे साल में अतिपिछड़े, तीसरे साल में मुस्लिम, चौथे साल में पिछड़े और पांचवें साल में सवर्ण समुदाय के नेता को अध्यक्ष बनने का मौका मिलेगा.

जन सुराज के संविधान के मुताबिक अध्यक्ष के बाद संगठन महासचिव ज्यादा पावरफुल होंगे.

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