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हाथों में हाथ, एक ही चिता पर दो शव, साथ में अंतिम विदाई… पूरी न हो सकी सेना की कैप्टन रेनू तंवर की ये आखिरी इच्छा

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आगरा में तैनात फ्लाइट लेफ्टिनेंट दीनदयाल दीप और उनकी पत्नी रेनू तंवर ने दो साल पहले ही लव मैरिज की थी. दोनों की जिंदगी अच्छी चल रही थी, लेकिन उनकी प्रेम कहानी का इतना दुखद अंत होगा ऐसा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. दीनदयाल आगरा के वायुसेना स्टेशन में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात थे, और कैप्टन रेनू तंवर सैन्य अस्पताल आगरा में एमएनएस में तैनात थीं. दोनों शाहगंज के खेरिया मोड़ स्थित एयरफोर्स के सरकारी आवास में रहते थे.

दीनदयाल की लाश 15 अक्टूबर को सुबह वायुसेना परिसर में मिली थी. दीनदयाल ने गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी. पुलिस आत्महत्या के कारणों की जांच कर ही रही थी कि 16 अक्टूबर को उनकी पत्नी की लाश दिल्ली से मिली. दीन दयाल की पत्नी 14 अक्टूबर को अपनी मां कौशल्या का इलाज कराने के लिए भाई के साथ एम्स दिल्ली गईं थीं.

अंतिम यात्रा का दर्दनाक पहलू

रेनू की मां एम्स में भर्ती थीं और भाई उनके साथ था और वह ऑफिसर्स गेस्ट हाउस में ठहरी हुईं थी. ऐसे में जैसे ही उनको अपने पति के आत्महत्या का समाचार मिला तो उन्होंने आगरा आने के बजाय अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर दी. हालांकि रेनू ने सुसाइड करने से पहले अपनी अंतिम इच्छा लिखी थी कि उनका अंतिम संस्कार पति के साथ ही किया जाए और उनके हाथ को पति के हाथ पर रख दिया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. आगरा के ताजगंज मोक्षधाम में फ्लाइंग लेफ्टिनेंट दीनदयाल दीप का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. वायु सेवा के जवानों ने उन्हें पूरे राज्य की गरिमा के साथ विदाई दी, लेकिन इस अंतिम यात्रा का एक दर्दनाक पहलू यह था की उनकी पत्नी, कैप्टन रेनू तंवर के अंतिम इच्छा को पूरा नहीं किया जा सका जिससे एक अधूरी प्रेम कहानी का अंत हो गया.

कैप्टन रेनू तंवर ने अपनी अंतिम इच्छा अपने सुसाइड नोट में लिखी थी. उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा था कि वह चाहती थीं कि उनका अंतिम संस्कार उनके पति फ्लाइंग लेफ्टिनेंट दीनदयाल दीप के साथ एक ही चिता पर किया जाए, और उनके हाथ को उनके पति के हाथ पर रखा जाए. रेनू की यह आखिरी ख्वाहिश थी, जिसे वो पूरा करवाना चाहती थीं, लेकिन, दुर्भाग्यवश, ऐसा हो नहीं सका.

चचेरे भाई ने दी मुखाग्नि

फ्लाइंग लेफ्टिनेंट दीप का अंतिम संस्कार ताजगंज मोक्षधाम में हुआ, जहां उनके चचेरे भाई ने उन्हें मुखाग्नि दी. इस दौरान कैप्टन रेनू तंवर उनके साथ एक चिता पर नहीं थीं, जैसा उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा में चाहा था. ऐसे मेंउनकी चाहत की यह दास्तान अधूरी रह गई, और दोनों की प्रेम कहानी भी शायद अब किसी और जहान में पूरी होगी.

अधूरी रह गई आखिरी ख्वाहिश

दीनदयाल दीप का अंतिम संस्कार वायुसेना के जवानों ने पूरे राज्य की सम्मान के साथ किया. उन्होंने अपने साथी को सलामी दी और उनके बलिदान को याद किया. सेना के नियमों के अनुसार, उनके अंतिम संस्कार में पूरे सम्मान का पालन हुआ, परंतु उनके जीवन की अधूरी प्रेमकहानी ने सभी की आंखें नम कर दीं. यह एक भावनात्मक पल था, जब हर कोई उनके साहस और बलिदान को सलाम कर रहा था, और साथ ही इस बात का दुख भी था कि उनकी पत्नी की आखिरी ख्वाहिश अधूरी रह गई.

प्यार और सम्मान का रिश्ता

कैप्टन रेनू तंवर और फ्लाइंग लेफ्टिनेंट दीप की प्रेम कहानी शुरुआत से ही एक मिसाल थी. दोनों का रिश्ता प्यार और सम्मान पर आधारित था. रेनू और दीप के बीच का बंधन बहुत मजबूत था, लेकिन जीवन की मुश्किलों ने उनके प्रेम की इस दास्तान को अधूरा छोड़ दिया. कैप्टन रेनू तंवर ने अपनी ज़िंदगी खत्म करने का कठिन निर्णय लिया, और जाते-जाते भी अपने पति के प्रति अपने प्यार को जताया.

दोनों का दर्दनाक अंत

यह कहानी सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह जीवन की अनिश्चितताओं और मुश्किलों को भी उजागर करती है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा, जिसकी वजह से एक मजबूत महिला को इस तरह का कदम उठाना पड़ा? क्यों उनकी आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं हो सकी?

फ्लाइंग लेफ्टिनेंट दीनदयाल दीप और कैप्टन रेनू तंवर की अधूरी प्रेम कहानी ने हर किसी के दिल को छू लिया है. उनका यह दर्दभरा अंत कई दिलों में सवाल और दुख छोड़ गया है. उनके बलिदान और प्यार को हमेशा याद किया जाएगा, लेकिन इस अधूरे अंत ने यह साबित कर दिया कि कभी-कभी जिंदगी की कहानियों का अंत वैसा नहीं होता, जैसा हम सोचते हैं.

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