रामायण के लंका युद्ध के दौरान रावण के बेटे मेघनाद के एक दिव्यास्त्र से मूर्छित हुए लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान जी उत्तर के हिमालय से संजीवनी बूटी लेकर दक्षिण में स्थित लंका पहुंचे थे. इसके बाद ही लक्ष्मण को दूसरी जिंदगी मिली थी, लेकिन भारतीय राजनीति में कांग्रेस पर जब-जब संकट गहराया तो सियासी संजीवनी उत्तर भारत से नहीं बल्कि दक्षिण से मिली. कांग्रेस को दक्षिण से मिली संजीवनी से राजनीतिक मुश्किलों में घिरी इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया और राहुल गांधी तक को नई ताकत देकर गांधी परिवार की साख बचाने का काम किया.
कांग्रेस के लिए दक्षिण भारत हमेशा सेफ पैसेज की तरह रहा है. राहुल गांधी के इस्तीफे से खाली हुए दक्षिण भारत के वायनाड सीट से प्रियंका गांधी अपना चुनावी डेब्यू करने उतरी हैं, जहां पर उनका मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी नव्या हरिदास और लेफ्ट की सत्यन मोकेरी से है.
राहुल गांधी ने वायनाड की सीट छोड़ते हुए वहां के लोगों के साथ अपने भावनात्मक रिश्ते की दुहाई दी थी. उन्होंने कहा था कि वायनाड के लोगों ने उस वक्त उन्हें ऊर्जा देने का काम किया था, जब वो मुश्किल दौर से जूझ रहे थे. हालांकि, पहली बार नहीं है जब गांधी परिवार और कांग्रेस के लिए दक्षिण मददगार साबित हुआ है. ऐसे में कांग्रेस पर आई सियासी आपदा में दक्षिण भारत ने ही गांधी परिवार को राजनीतिक राह दिखाई.
आपातकाल में दक्षिण ने बचाई कांग्रेस की लाज
कांग्रेस और गांधी परिवार के सियासी संकट में दक्षिण भारत के राज्य हमेशा से मजबूती के साथ खड़े रहे हैं. कांग्रेस की अब तक के इतिहास में सबसे बुरी हालत आपातकाल के वक्त 1977 के आम चुनावों में हुई थी. कांग्रेस का उत्तर भारत के राज्यों से सफाया हो गया था, लेकिन दक्षिण ने पार्टी की लाज बचा ली थी. 1977 चुनाव में जनता पार्टी को 41.32 फीसदी वोटों के साथ 295 सीटें मिलीं तो कांग्रेस को 34.52 फीसदी वोट शेयर के साथ 154 सीटें मिली थीं. कांग्रेस को मिली 154 सीटों में से 92 सीटें केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु से मिली थी.
आपातकाल के बाद रायबरेली सीट से जब इंदिरा गांधी का कमबैक करना मुश्किल लग रहा था, उस वक्त कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट ने उनके राजनीतिक जीवन के लिए संजीवनी का काम किया. इंदिरा गांधी खुद रायबरेली सीट पर समाजवादी नेता राज नारायण से चुनाव हार गई थीं. राजनीतिक गलियारों में माना जाने लगा था कि कांग्रेस का सूरज अस्त हो गया. ऐसे में कर्नाटक का चिकमंगलूर सीट इंदिरा गांधी ही नहीं कांग्रेस के लिए सियासी संजीवनी बनी. 1978 में कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से चुनाव लड़कर इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को फिर से जिंदा ही नहीं किया बल्कि 1980 में सत्ता में वापसी भी की.
चिकमंगलूर से तत्कालीन सांसद डीबी गौड़ा के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर इंदिरा गांधी उतरीं और उनके सामने चुनौती तत्कालीन सीएम वीरेंद्र पाटिल से भिड़ने की थी. ऐसे में इंदिरा गांधी ने जमकर प्रचार किया और पूरे सियासी माहौल को बदल दिया. उस समय में इंदिरा गांधी के लिए एक नारा कांग्रेसी नेता देवराज उर्स ने खोजा, एक शेरनी सौ लंगूर…चिकमंगलूर में गूंज रहा था. इंदिरा गांधी ने 77 हजार वोटों से जीत हासिल की और अपने सभी विपक्ष उम्मीदवारों की जमानत जब्त करा दी.
कांग्रेस को लेकर ऐसा सियासी माहौल बना कि तीन साल के बाद कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की. इंदिरा गांधी 1980 में फिर देश की प्रधानमंत्री बनीं. इसके बाद इंदिरा गांधी ने दक्षिण को ही अपनी कर्मभूमि बना ली. इंदिरा गांधी 1980 में रायबरेली और तेलंगाना के मेडक सीट से चुनाव लड़ी थी. इंदिरा ने दोनों ही लोकसभा सीटों से जीत दर्ज की, लेकिन रायबरेली से इस्तीफा दे दिया और मेडक सीट को अपने पास रखा. इससे इंदिरा गांधी के लिए साउथ की अहमियत समझा जा सकता है.
कांग्रेस लड़खड़ाई तो सोनिया ने संभाला
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने पार्टी की कमान संभाली और उत्तर से लेकर दक्षिण तक ने साथ दिया, लेकिन 1989 में कांग्रेस का उत्तर भारत से सफाया हो गया था, लेकिन दक्षिण ने लाज बचाए रखा. इसके बाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस पूरी तरह लड़खड़ा गई थी. कांग्रेस नेता की कमी से गुजर रही थी. सोनिया गांधी ने पहले मना किया फिर पार्टी की अध्यक्ष बनीं, लेकिन तब बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने उनका खुलकर विरोध किया. कांग्रेस काफी मुश्किलों से गुजर रही थी, जिसके बाद सोनिया गांधी के सियासी ताकत दक्षिण भारत से मिली.
1999 चुनाव में सोनिया गांधी अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरीं तो बीजेपी की तेज तर्रार नेता सुषमा स्वराज ने सिर्फ 30 दिनों के भीतर कन्नड़ सीख डाली. वो अपनी जनसभाओं को कन्नड़ में संबोधित कर सोनिया गांधी को घेर रही थीं. सोनिया गांधी का यह पहला चुनाव था, लेकिन सुषमा स्वराज के सामने होने से कांग्रेस की धड़कनें बढ़ गई थीं. बेल्लारी सीट राष्ट्रीय राजनीति में खासी अहम साबित हो गई थी. सुषमा स्वराज ने बेल्लारी चुनाव घर की बेटी बनाम विदेशी बहू का बना दिया था और बीजेपी के एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी सोनिया गांधी जीतने में कामयाब रहीं.
सोनिया गांधी अमेठी और बिल्लारी सीट से जीतने के बाद अमेठी सीट छोड़ दिया, लेकिन दक्षिण की राजनीति ने कांग्रेस को सियासी बुलंदी पर पहुंचाया. 1996 के बाद सत्ता का सियासी वनवास झेल रही कांग्रेस को सोनिया गांधी ने 2004 में सत्ता में वापसी कराया और दस साल राज किया. कांग्रेस की केंद्र की सत्ता में आने में दक्षिण के राज्यों का खासकर आंध्र प्रदेश (संयुक्त) का अहम रोल था. कांग्रेस 2004 और 2009 में केंद्र में सरकार बनाया, जिसका श्रेय सोनिया गांधी को दिया गया.
वायनाड से राहुल को दिखी नई राह
2014 में देश की सियासत में एक बार फिर करवट ली और कांग्रेस का उत्तर भारत से सफाया हो गया. मोदी राज में कांग्रेस का सियासी ग्राफ कमजोर हुआ तो गांधी परिवार का दुर्ग भी दरक गया. 2014 में कांग्रेस 50 सीटों से नीचे सिमट गई, उत्तर भारत को कई राज्यों में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था. इसके बाद 2019 में कांग्रेस को फिर उत्तर भारत से ऐसा झटका लगा कि राहुल गांधी अमेठी में बीजेपी की स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए. हालांकि, राहुल गांधी सियासी मूड भांपते हुए अमेठी के साथ वायनाड से चुनाव लड़ा था.
राहुल गांधी अमेठी से भले ही चुनाव हार गए, लेकिन वायनाड ने सिर्फ लाज ही नहीं बचाई बल्कि कांग्रेस को उभरने का रास्ता भी दिखा दिया. राहुल का केरल के वायनाड से जाकर चुनाव लड़ना, उनकी राजनीति को ऐतिहासिक पहलू से देखें तो यह मोदी राज में डूबती कांग्रेस की सियासत को फिर से उभार दिया. 2019 में कांग्रेस ने केरल में क्लीन स्वीप किया था और पार्टी की सीटें 50 का आंकड़ा पार गई. इसमें केरल का अहम रोल था.
कांग्रेस ने प्रियंका को वायनाड से उतारा
राहुल गांधी ने 2024 में रायबरेली और वायनाड दोनों जगह से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. कांग्रेस अगर 2024 लोकसभा चुनाव में 99 संसदीय सीटें जीतने में सफल रही है तो उसमें दक्षिण भारत के राज्यों का अहम रोल था. कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन की है. राहुल गांधी के 2019 और 2024 के चुनाव में वायनाड सीट से लड़ने का लाभ कांग्रेस को केरल में मिला है. ऐसे में कांग्रेस किसी भी सूरत में दक्षिण पर अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने देना चाहती है. इसीलिए राहुल गांधी के वायनाड सीट छोड़ने पर प्रियंका गांधी को उपचुनाव में उतारा है ताकि केरल के साथ दक्षिण को भी साधकर रखा जा सके.
उत्तर भारत में बीजेपी की सियासी जड़े काफी मजबूत हैं तो कांग्रेस के लिए साउथ सेफ पैसेज की तरह है. राहुल गांधी पिछली बार केरल की वायनाड सीट चुनी थी और जीते भी थे. राहुल गांधी ने अपनी इमेज को मेकओवर करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत दक्षिण भारत के कन्याकुमारी से किया था, जिसके बाद लाभ दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस को मिला. इस बार जब राहुल गांधी उत्तर की एक सीट से जीत गए और उसे अपने पास रख रहे हैं तो कांग्रेस के सामने बड़ा चैलेंज था कि दक्षिण में ये संदेश न जाए कि उसे पार्टी बस स्टेपनी की तरह यूज करती है. इसीलिए प्रियंका को उतारने से दक्षिण के लोगों में यह संदेश दिया है कि कांग्रेस पार्टी उन्हें भी पूरी अहमियत देती है. वायनाड से प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी कांग्रेस के मिशन-दक्षिण का हिस्सा है.
कांग्रेस पहले से ही दक्षिण में तीन राज्यों में सरकारों में मौजूद है. कांग्रेस कर्नाटक और तेलंगाना की सत्ता पर काबिज है. इसके अलावा कांग्रेस ने अपने सहयोगी डीएमके के साथ तमिलनाडु सरकार में भागीदार है. कांग्रेस की नजर आंध्र प्रदेश में अपनी सियासी जड़े जमाने की कोशिश पर है. ऐसे में प्रियंका गांधी दक्षिण भारत की राजनीति में कांग्रेस को जड़ों को मजबूती देंगी.