निमाड़ और मालवा से निकलने वाली 31 पदयात्राओं में शामिल ओंकारेश्वर धार्मिक लघु नर्मदा परिक्रमा पंचकोशी यात्रा 11 नवंबर दशमी से शुरू होगी। 50 साल से कार्तिक एकादशी शुरू होने वाली इस यात्रा का उद्देश्य धार्मिक और पुरातन महत्व के स्थानों से जन सामान्य को जोड़ना है।
तिथि भेद की वजह से 46 साल बाद पंचकोशी यात्रा एक बार फिर कार्तिक मास की दशमी को शुरू होगी। इस वर्ष त्रयोदशी और चतुर्दशी तिथि एक साथ होने से यात्रा के लिए पांच की बजाए चार दिन ही मिलने से इसे एकादशी से एक दिन पहले शुरू किया जा रहा है।
डॉ. रविंद्र चौरे भारती ने लिया था प्रण
सनावद के मूल निवासी और उज्जैन में प्रोफेसर रहे डॉ. रविंद्र चौरे भारती ने उज्जैन की पंचकोशी यात्रा से प्रेरणा लेकर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में भी पंचकोशी यात्रा को प्रारंभ करने का प्रण लिया था। 1975 में डॉ. चौरे ने अकेले ही साइकिल से यात्रा मार्ग का सर्वे कर मार्ग का निर्धारित किया था। इसके बाद 1978 को पहली पूर्ण पदयात्रा वर्ष 1978 में 11 नवंबर कार्तिक शुक्ल पक्ष दशमी से 15 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा तक की थी।
इसके बाद साल दर साल कारवां जुड़ता गया और अब यात्रा में एक लाख से अधिक पदयात्री शामिल होते हैं। ओंकारेश्वर से प्रारंभ होने के बाद इस यात्रा का निमाड़ में जगह-जगह आस्था व उत्साह से आतिथ्य सत्कार होगा। इसमें निमाड़, मालवा के अलावा अब उत्तराखंड, उत्तर भारत गंगा -जमुना की तराई वाले काशी, प्रयाग, अयोध्या,मथुरा से भी यात्री शामिल होने लगे हैं।
प्रतिदिन 15 किलोमीटर की होगी यात्रा
करीब 75 किलोमीटर की यह पदयात्रा ओंकारेश्वर से अंजरु, सनावद , टोकसर सेमरला बड़वाह, सिद्धवरकूट होते हुए 15 नवंबर को ओंकारेश्वर में समाप्त होगी। यात्रा का पहला पड़ाव सनावद और अंतिम पड़ाव सिद्धवरकूट रहेगा। पदयात्री प्रतिदिन करीब 15 किलोमीटर यात्रा करेंगे।
ओंकारेश्वर लघु नर्मदा पंचकोशी यात्रा का मार्ग और गांवों में श्रद्धालुओं द्वारा स्वागत और सेवा की जाएगी। यात्रा सनावद से टोकसर पहुंचने पर यात्रियों को नाव में बैठाकर नर्मदा पार कराया जाएगा। वहीं सिद्धवरकूट से ओंकारेश्वर वापसी इंदिरा सागर बांध के ऊपर से होगी। इसके लिए एनएचडीसी द्वारा परंपरा अनुसार दो दिन की विशेष अनुमति दी जाती है।