झारखंड में पहले चरण की 43 सीटों पर 13 नवंबर को मतदान के बाद अब दूसरे चरण की 38 सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होना है. ऐसे में सभी राजनीतिक दल संथाल परगना की 18 सीट और कोयलांचल की 16 सीट समेत छोटानागपुर की 4 सीटों पर धुआंधार चुनाव प्रचार कर रहे हैं. साथ ही अपनी उपलब्धियों को गिनाने के साथ-साथ दूसरे दलों की नाकामियों को जनता के बीच रखने का काम कर रहे हैं.
पहले चरण की तरह ही झारखंड के दूसरे चरण में भी कई कद्दावर नेता चुनाव से पहले ही टिकट कटने से नाराज होकर बागी हुए हैं, जिन्होंने दूसरे दलों का दामन थाम लिया है. बाकी नेताओं से चुनावी समीकरण में जोरदार असर देखने को मिलेगा. दूसरे चरण में बागी नेता दोनों दलों का बिगाड़ सकते हैं. ऐसे में सबकी नजर लोबिन हेंब्रम, दिनेश विलियम मरांडी, डॉ लुईस मरांडी जैसे बागियों पर टिकी है.
बागी किसका बिगाड़ेंगे खेल?
बागी नेताओं की सूची में पहला नाम लोबिन हेम्ब्रम का है. संथाल परगना में लोबिन हेम्ब्रम की पहचान एक कदावर नेता के रूप में होती है. हेम्ब्रम विधानसभा चुनाव से ठीक लगभग एक महीना पहले ही झरखंड मुक्ति मोर्चा का दामन छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और बीजेपी ने उन्हें बोरियो से उम्मीदवार बनाया. उनके खिलाफ धनंजय सोरेन को मैदान में उतारा गया है. शिबू सोरेन के दो शिष्यों के बीच बोरियो में इस बार सियासी दंगल देखने को मिलेगा. तीर धनुष छोड़, कमल खिलाने के लिए झरखंड मुक्ति मोर्चा के बागी लोबिन हेम्ब्रम खेल बिगाड़ने के लिए तैयार बैठे हैं.
लोबिन हेम्ब्रम पहली बार 1990 में झामुमो के टिकट पर पहली बार बिहार विधानसभा में बोरियो से निर्वाचित हुए. लोबिन हेम्ब्रम 1995 में निर्दलीय चुनाव जीते. वर्ष 2000 में झामुमो के टिकट पर झरखंड विधानसभा के सदस्य बने. इसके बाद 2009 और 2019 में झामुमो के टिकट पर विधायक बने. लोबिन 8वीं बार चुनावी मैदान में हैं लेकिन इस बार झामुमो के बजाय बीजेपी के टिकट पर. परिणाम क्या होगा, यह 23 नवंबर को ही पता चलेगा.
डॉ लुईस मरांडी
बागी नेताओं की सूची में दूसरा नाम डॉ लुईस मरांडी का है. संथाल परगना में एक दिग्गज नेता के रूप में पहचान रखने वाली डॉ लुईस मरांडी वही नेत्री हैं, जिन्होंने वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन को हराया था और रघुवर दास सरकार में कैबिनेट में मंत्री बनी थीं. लगभग 20 साल से ज्यादा समय तक बीजेपी में बिताने के बाद इस बार 2024 के चुनाव में दुमका से टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर डॉ लुईस मराण्डी ने बीजेपी छोड़ झामुमो का दामन थामा है और उन्हें झामुमो ने अपनी सबसे मजबूत और परंपरागत जामा सीट से उमीदवार बनाया है. डॉ लुईस मरांडी का मुकाबला बीजेपी के सुरेश मुर्मू के साथ है. इस बार लुईस मरांडी बीजेपी को ही इस चुनाव में शिकस्त देने के लिए मैदान में पसीना बहा रही है.
दिनेश विलियम मरांडी
बागी नेताओं की लिस्ट में तीसरा नाम दिनेश विलियम मरांडी का है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के दिग्गज नेताओं में गिने जाने वाले साइमन मरांडी के बेटे दिनेश विलियम मरांडी एकमात्र विधायक हैं, जिसका झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस बार के चुनाव में टिकट काटा है. दिनेश विलियम मरांडी का टिकट काट लेटीपाड़ा से झारखंड मुक्ति मोर्चा ने हेमलाल मुर्मू को उम्मीदवार बनाया है. इसे नाराज होकर दिनेश विलियम मरांडी निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए. हालांकि, दो दिन पूर्व ही उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली है और अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर सिपाही के रूप में जाने जाने वाले स्वर्गीय साइमन मरांडी के बेटे दिनेश विलियम मरांडी झारखंड मुक्ति मोर्चा के खिलाफ ही चुनावी मैदान में इस बार रणनीति बनाते हुए देखे जा रहे हैं.
दिनेश विलियम मरांडी और उनके पिता स्वर्गीय साइमन मरांडी का संथाल परगना में कितनी पकड़ है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 1977 में पहली बार साइमन मरांडी बिहार विधानसभा के लिट्टीपाड़ा से सदस्य निर्वाचित हुए, इसके बाद 1980 में, 1985 में ,2009 और 2017 में लिट्टीपाड़ा से चुनाव जीता था. इसके साथ ही वर्ष 1989 में उन्होंने राजमहल सीट से संसद का चुनाव भी जीता था. इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के संथाल में कद्दावर सिपाही माने जाने वाले स्वर्गीय साइमन मरांडी का परिवार झारखंड मुक्ति मोर्चा के खिलाफ चुनावी रणनीति के तहत मात देने के लिए बीजेपी के पक्ष में खड़ा है. इन तीनों नेताओं पर सभी की निगाहें टिकी हैं.
संथाल परगना की सीटों JMMका दबदबा
झारखंड के संथाल परगना की सेट सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का दबदबा है. अपनी इस राजनीतिक विरासत और गढ़ को बचाने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जहां बरहेट से, उनके भाई बसंत सोरेन दुमका से, शिकारीपाड़ा से नलिन सोरेन के बेटे आलोक सोरेन, महेशपुर से प्रो स्टीफन मरांडी सहित कई दिग्गज झारखंड मुक्ति मोर्चा के गढ़ को बचाने के लिए मैदान में है. संथाल परगना के कुल 18 में से 7 एसटी रिजर्व सीटों पर फिलहाल झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है.
वहीं बात अगर कोयलांचल की करें तो धनबाद-बोकारो में बीजेपी भाजपा का दबदबा है. कोयलांचल के 16 में से 8 सीटों पर बीजेपी और एनडीए का कब्जा है. इसे बरकरार रखना एनडीए और बीजेपी के लिए एक चुनौती है. दूसरे चरण के चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनके भाई बसंत सोरेन, पत्नी कल्पना सोरेन, भाभी सीता सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो, नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी शहीद कई दिग्जो की राजनीतिक साख दांव पर लगी है.