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अरब देशों के पास है परमाणु शक्ति? क्या ईरान की तरह गुपचुप तरीके से ये देश भी बना रहे तबाही का सामान!

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ईरान पर गुपचुप तरीके से न्यूक्लियर हथियार बनाने के आरोप लगते रहे हैं, इसका खामियाजा उसे सैकड़ों प्रतिबंध झेलकर उठाना पड़ा है. अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश ईरान को न्यूक्लियर पावर हासिल करने से रोकने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं. वह नहीं चाहते कि ईरान जैसे इस्लामिक मुल्क के पास न्यूक्लियर हथियार हो क्योंकि उनका मानना है कि इससे क्षेत्र की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है.

लेकिन क्या सऊदी अरब, इराक, मिस्र और UAE जैसे अरब देश भी न्यूक्लियर ताकत हासिल करने में जुटे हैं? क्या मिडिल ईस्ट की वर्चस्व की जंग में बढ़त हासिल करने के लिए सिर्फ ईरान परमाणु शक्ति बनने का ख्वाब देख रहा है या फिर अरब मुल्क भी ईरान की तरह गुपचुप तरीके से परमाणु ताकत हासिल करने में जुटे हैं?

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किन देशों के पास न्यूक्लियर ताकत?

दरअसल दुनियाभर के कई मुल्क परमाणु ताकत हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर देशों का उद्देश्य परमाणु हथियार बनाने का नहीं बल्कि परमाणु ऊर्जा के जरिए बिजली उत्पादन करना है. वैश्विक संकट यानी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दुनियाभर में कार्बन उत्सर्जन कम करने जरूरत है, यही वजह है कि कई अरब मुल्क भी अब बिजली उत्पादन के परंपरागत तरीके से हटकर न्यूक्लियर पावर प्लांट के जरिए अपनी जरूरतों को पूरा करने में जुटे हैं. इसमें प्रमुख तौर पर सऊदी अरब, मिस्र और UAE का नाम शामिल है, क्योंकि परमाणु ऊर्जा प्लांट लगाना काफी खर्चीला ऐसे में कई अरब देश फिलहाल इसे अफोर्ड कर पाने की स्थिति में नहीं है.

UAE: अरब वर्ल्ड का पहला न्यूक्लियर पावर प्लांट

अरब मुल्कों की बात करें तो UAE में करीब 4 साल पहले ही अरब वर्ल्ड का पहला न्यूक्लियर पावर प्लांट स्थापित किया गया था. UAE के बाराकाह न्यूक्लियर पावर प्लांट को 2017 में शुरू होना था लेकिन सुरक्षा कारणों से बार-बार इसमें देरी होती रही, आखिरकार साल 2020 में यह बनकर तैयार हो गया. एमिरेट्स न्यूक्लियर एनर्जी कॉर्पोरेशन (ENEC) ने साउथ कोरिया की इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर इसे तैयार किया है. वहीं UAE ने हाल ही में अपने इस न्यूक्लियर पावर प्लांट के ऑपरेशन और मेंटेनेंस को लेकर भारत के साथ समझौता किया है.

सऊदी भी न्यूक्लियर ताकत हासिल करने में जुटा

इस्लामिक दुनिया की आवाज़ समझा जाने वाला सऊदी अरब भी अब परमाणु शक्ति पर फोकस कर रहा है. बीते सप्ताह रियाद में साउथ कोरिया के कई अधिकारियों के साथ सऊदी ने हाई लेवल बैठक की है. ईरान को परमाणु शक्ति हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए देश सऊदी अरब भी इस होड़ में शामिल होने की कोशिश में जुटा है. इससे पहले माना जा रहा था कि अमेरिका, सऊदी अरब को सुरक्षा और परमाणु असिस्टेंट मुहैया कराएगा लेकिन इसके बदले में वह सऊदी से इजराइल को मान्यता देने की मांग करता रहा है. लेकिन सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने साफ कर दिया है कि आजाद फिलिस्तीन के बिना वह इजराइल के साथ किसी भी तरह के संबंध नहीं रखने वाले हैं.

ऐसे में अमेरिका और सऊदी के बीच होने वाली यह डील खतरे में पड़ गई. सऊदी चाहता था कि वह अमेरिका की मदद से परमाणु तकनीक में महारत हासिल कर ले जिससे जरूरत पड़ने पर वह परमाणु हथियार बना सके. मौजूदा वक्त में भले ही ईरान के साथ सऊदी के संबंधों में सुधार दिख रहा हो लेकिन दोनों देश, एक-दूसरे के खिलाफ कब और कहां खड़े हो जाएं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. उधर बीते साल चीन ने भी सऊदी को न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए मदद की पेशकश की थी, माना जा रहा है कि सऊदी अमेरिका की शर्तों और दबाव से तंग आ चुका है और न्यूक्लियर ताकत हासिल करने के लिए दूसरे देशों के साथ समझौते पर विचार कर रहा है.

जब इजराइल ने तोड़ा था इराक का सपना

इराक में सद्दाम हुसैन का शासनकाल था, तब वह ईरान की ही तरह परमाणु ताकत हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा था. इराक के लीडर सद्दाम हुसैन ने सीधी धमकी दी थी कि अगर उनका देश परमाणु हथियार बनाने में कामयाब रहा तो वह इसका इस्तेमाल सिर्फ इजराइल के खिलाफ करेंगे. 70 के दशक में इराक में परमाणु रिएक्टर बनाने का काम तेजी से शुरू हुआ लेकिन इजराइल को इसकी भनक लग गई. तत्कालीन इजराइली प्रधानमंत्री मेनचिम बेगिन जब इराक को परमाणु ताकत हासिल करने से रोकने के लिए कूटनीति में विफल रहे तो उन्होंने इराक के ख्वाब को तबाह करने का प्लान बनाया. 7 जून 1981 को इजराइली सेना के दर्जनों फाइटर जेट ने ‘ऑपरेशन ओपेरा’ के जरिए इराक के निर्माणाधीन न्यूक्लियर रिएक्टर पर हमला कर उसे नष्ट कर दिया.

रूस की मदद से मिस्र में न्यूक्लियर पावर प्लांट

अरब वर्ल्ड के एक और मुल्क मिस्र भी न्यूक्लियर ताकत हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, उसे इस काम के लिए रूस से मदद मिल रही है. साल 2015 में दोनों देशों के बीच हुए समझौते के तहत रूस की सरकारी कंपनी रोसाटोम, मिस्र में 4 न्यूक्लियर रिएक्टर तैयार कर रही है. मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी चाहते हैं कि वह अपने मुल्क को रीज़नल एनर्जी हब के तौर पर स्थापित करें और बिजली की बढ़ती डिमांड के बीच पड़ोसी देशों की जरूरतों को भी पूरा करने की स्थिति में हों.

दुनिया के 9 देशों के पास परमाणु हथियार

वहीं अगर न्यूक्लियर हथियारों की बात की जाए तो इस वक्त दुनिया के सिर्फ 9 देशों के पास ही परमाणु हथियार मौजूद हैं. अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत, चीन, पाकिस्तान, नॉर्थ कोरिया और इजराइल परमाणु संपन्न देश हैं. स्वीडिश थिंक टैंक SIPRI (स्टॉकहोम इंटरनेशन पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट) की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2024 तक इन 9 देशों के पास कुल मिलाकर 12,221 न्यूक्लियर वॉरहेड थे, इनमें से 9585 को इस्तेमाल करने के लिए भंडार में रखा गया है. हैरानी की बात है कि दुनिया के कुल न्यूक्लियर भंडार में से 90 फीसदी स्टॉक रूस और अमेरिका के पास है. वहीं इजराइल ने कभी भी खुले तौर पर न्यूक्लियर हथियार होने की बात नहीं कबूली है लेकिन SIPRI की रिपोर्ट में कहा गया है कि वह अपने परमाणु हथियार के भंडार का आधुनिकीकरण कर रहा है.

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