महाराष्ट्र और झारखंड के बाद अगला नंबर दिल्ली विधानसभा चुनाव का है. यहां फरवरी 2025 में चुनाव होने की संभावना है. दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी तैयारियों में काफी आगे है और उसने उम्मीदवार तक घोषित कर दिए हैं. अब कांग्रेस भी पूरी तरह एक्टिव हो गई है. पार्टी ने दिल्ली चुनाव के लिए उत्तराखंड के मंगलौर से विधायक काज़ी निज़ामुद्दीन को प्रभारी नियुक्त किया है.
सियासत में किसी नेता के कद का अंदाजा उसकी चुनावी राजनीति से लगाया जाता है. नेता का जनाधार क्या है, वो चुनाव जीतता है या नहीं, उसकी चुनावी रणनीति कितनी सफल रही. ये वो पैमाने हैं जिन पर किसी भी दल के नेता को परखा जाता है. काज़ी निज़ामुद्दीन की बात की जाए तो वो एक ऐसे नेता हैं जिनके पास चुनाव लड़ने और जीतने से लेकर चुनाव लड़ाने तक का अनुभव है.
2002 में पहली बार बने विधायक
काज़ी निज़ामु्द्दीन 2002 में पहली बार मंगलौर सीट से विधायक बने. उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़ते हुए कांग्रेस उम्मीदवार सरवत करीम अंसारी को हराया. इसके बाद 2007 का चुनाव भी काज़ी निज़ामुद्दीन ने बसपा के टिकट पर ही मंगलौर से जीता. 2012 के चुनाव से पहले मंगलौर सीट पर दलबदल हो गया. काज़ी निज़ामुद्दीन इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लड़े, जबकि कांग्रेस के टिकट पर उनके खिलाफ लड़ने वाले सरवत करीम अंसारी ने बसपा से टिकट ले लिया. एक बार फिर ये सीट बसपा के खाते में चली गई और काज़ी निज़ामुद्दीन ये चुनाव हार गए.
कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव जीता
2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन काज़ी निज़ामुद्दीन अपनी सीट हार गए. हालांकि, कांग्रेस सरकार में भी उथल-पुथल रही. कई नेता पार्टी छोड़कर चले गए. इसका असर ये हुआ कि 2017 में बीजेपी सरकार आई. हालांकि, काज़ी निज़ामुद्दीन ये चुनाव जीत गए. कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने ये पहला चुनाव जीता. लेकिन 2022 में सरवत करीम अंसारी ने बसपा के टिकट से 4 हजार के मामूली अंतर से उन्हें हरा दिया.
सरवत करीम अंसारी का अक्टूबर 2023 में निधन होने से ये सीट फिर खाली हो गई और 2024 के उपचुनाव में काज़ी निज़ामुद्दीन ने फिर इस सीट से जीत हासिल कर ली.
एक तरफ लड़े, दूसरी तरफ लड़ाया
काज़ी निज़ामुद्दीन अपनी विधायकी करने के साथ-साथ पार्टी के लिए उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में भी काम करते रहे. 2017 में उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में सचिव का पद दिया गया. 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें सह-प्रभारी बनाया गया. अविनाश पांडेय इस चुनाव में प्रभारी थे. कांग्रेस के लिए ये चुनाव अच्छा रहा और अशोक गहलोत के नेतृत्व में पार्टी ने सरकार बनाई. हालांकि, सीएम पोस्ट को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट में तलवारें खिंची, लेकिन अंतत: सब कुछ सुलझा लिया गया और गहलोत ने पूरे पांच साल सरकार चलाई. बतौर सह-प्रभारी ये चुनाव काज़ी निज़ामुद्दीन का पहला चुनाव था, जिसमें पार्टी को कामयाबी मिली.
हालांकि, इसी साल अगस्त में उन्हें महाराष्ट्र का सह-प्रभारी बनाया गया लेकिन कांग्रेस समेत पूरे महाविकास अघाड़ी को यहां करारी शिकस्त मिली. इससे पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें कश्मीर का राष्ट्रीय मीडिया कॉर्डिनेटर बनाया गया था.
परिवार का राजनीतिक बैकग्राउंड
काज़ी निज़ामुद्दीन को सियासत विरासत में मिली है. उनके पिता मोहम्मद मोहिउद्दीन एक बड़े राजनेता रहे हैं. उत्तराखंड के अलग राज्य बनने से पहले वो लक्सर और रुड़की विधानसभा से विधायक चुने जाते रहे. यूपी की अलग-अलग सरकारों में वो मंत्री भी रहे.
दिल्ली में चुनौतियां
कांग्रेस के लिए दिल्ली राज्य लंबे वक्त से चुनौती बना हुआ है. जब से शीला सरकार गई है और आम आदमी पार्टी की एंट्री हुई है, तब से कांग्रेस यहां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा, 2013 के बाद से कांग्रेस हर मोर्चे पर दिल्ली में विफल होती आ रही है. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दिल्ली की 70 में से एक भी सीट पर जीत नहीं मिल सकी है.
इन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काज़ी निज़ामुद्दीन को दिल्ली का इंचार्ज बनाया गया है. टीवी9 डिजिटल ने काज़ी निज़ामुद्दीन से इस विषय पर सोमवार सुबह जब बात की तो उन्होंने बताया कि वो अभी मंगलौर में हैं और जल्द ही दिल्ली पहुंचने वाले हैं, दिल्ली पहुंचकर अपनी टीम के साथ बैठेंगे और भविष्य की रणनीति पर विमर्श किया जाएगा.
काज़ी निज़ामुद्दीन के साथ राजस्थान के पूर्व कांग्रेस विधायक दानिश अबरार सह-प्रभारी के रूप में काम करेंगे. जबकि मीनाक्षी नटराजन, सहारनपुर से सांसद इमरान मसूद और प्रदीप नारवाल को स्क्रीनिंग कमेटी का सदस्य बनाया गया है.