त्रिदेव मे से एक भगवान विष्णु को सृष्टि के रक्षक के रूप में पूजा जाता है. क्योंकि इन्होंने धरती और धर्म की रक्षा के लिए 10 अवतार लिए. इन अवतारों को दशावतार कहा जाता है. जिसमें से एक भगवान विष्णु का एक अवतार श्री हरी विठ्ठल है. खास तौर पर भगवान विष्णु को इस नाम से महाराष्ट्र और कर्नाटक में जाना जाता है.विठ्ठल को अक्सर ‘विठोबा’ के नाम से भी पुकारा जाता है. यहां भगवान विठ्ठल के कई मंदिर हैं. जहां पूरे भक्ति भाव से लोग भगवान विठ्ठल की पूजा करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु को यह नाम कैसे मिला और क्या है इसकी कहानी आइए जानते हैं.
श्रीहरि विठ्ठल की कथा (Srihari Vitthal ki Katha )
कथा के अनुसार, एक बार देवी रुक्मिणी, भगवान विष्णु से किसी बात पर नाराज होकर द्वारका से चली गई. जिसके बाद भगवान विष्णु उन्हें ढूंढते हुए दिंडी वन पहुंचे, जहां उन्हें देवी रुक्मिणी मिलीं और उनका क्रोध शांत हुआ. उसी समय वहां एक आश्रम में भगवान विष्णु का भक्त रहता था, जिसका नाम था पुंडलिक. वह अपने माता-पिता की बहुत सेवा करता था. भगवान विष्णु, पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न होकर, देवी रुक्मिणी के साथ उसके आश्रम गए. लेकिन तब पुंडलिक अपने माता-पिता की सेवा में व्यस्त था और ऐसे में जब श्रीहरि ने पुंडलिक से मिलने की बात कही तो पुंडलिक ने भगवान को थोड़ा इंतजार करने को कहा.
ईट पर खड़े होकर किया इंतजार
पुंडलिक ने भगवान विष्णु के पास एक ईंट फेंककर कहा कि वह उस पर खड़े रहें और इंतजार करें. जिसके बाद भगवान ने अपने भक्त की बात मानी और ईंट पर खड़े होकर उसका इंतजार करने लगे. साथ में देवी ररुक्मिणी भी ईंट पर ही खड़े होकर प्रतीक्षा करनी लगीं. माता-पिता की सेवा करने के बाद जब पुंडलिक उनके पास आया तो भगवान विष्णु ने उससे वरदान मांगने को कहा.
पुंडलिक ने किया निवेदन
भगवान विष्णु ने जब पुंडलिक से वरदान मांगने को कहा तब पुंडलिक ने श्रीहरि से निवेदन किया कि वह यहीं रुक जाए. जिसके बाद भक्त की इस श्रद्धा को देख श्रीहरि उसी ईंट पर खड़े होकर, कमर पर हाथ रखकर, प्रसन्न मुद्रा में खड़े हो गए. कहा जाता है कि यह मुद्दा ही विठ्ठल अवतार कहलाई. क्योंकि ईंट को मराठी में विट कहते हैं तो ईंट ओर खड़े होने के कारण प्रभु का नाम विट्ठल पड़ा.