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पहले वक्फ बिल और अब वन नेशन वन इलेक्शन…मोदी सरकार क्यों पकड़ रही JPC रूट

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देश में चुनाव सुधार की दिशा में मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. मोदी सरकार ने संसद में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी एक देश एक चुनाव से जुड़े विधेयक को पेश किया. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024’लोकसभा में पेश किया, जिसका कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने बिल में खामियां गिनाते हुए इसे संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है. इसके बाद अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक पर व्यापक विचार-विमर्श के खातिर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव किया.

एक देश एक चुनाव संशोधन विधेयक पास करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत होगी, जबकि दूसरे विधेयक को सामान्य बहुमत से ही पास किया जा सकता है. केंद्र सरकार को इसके लिए संविधान में जरूरी संशोधन करने पड़ेंगे और इसके लिए उसे दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी. इसके बाद अगर राज्यों की सहमति की जरूरत पड़ी, तो विपक्षी दलों के नेतृत्व वाले राज्य अड़चन पैदा करेंगे.

दूसरी बार जेपीसी को भेजा विधेयक

केंद्र में 2014 से मोदी सरकार बनने के बाद यह दूसरी बार जब किसी विधेयक को जेपीसी को भेजा गया है. इससे पहले वक्फ संसोधन बिल को सरकार ने जेपीसी में भेजा था और अब ‘एक देश, एक चुनाव’ से जुड़े विधेयक को भेजे जाने का प्रस्ताव किया है. मोदी सरकार सत्ता में तीसरी बार आने के बाद अहम विधेयक के लिए क्यों जेपीसी का रूट पकड़ रही है?

वन नेशन वन इलेक्शन के विधेयक को संसद में पास कराने के लिए दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी. विधि आयोग के मुताबिक, वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है. संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50 फीसदी राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है. ऐसे में अगर राज्यों से सहमति लेने की जरूरत हुई, तो ज्यादातर गैर-बीजेपी सरकारें इसका विरोध करेंगी.

विपक्षी दलों का विरोध

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का नंबर गेम बिगड़ गया है. बीजेपी के 240 लोकसभा सदस्य हैं, जिसके चलते जेडीयू, टीडीपी और शिवसेना की बैसाखी के सहारे सरकार बनानी पड़ी है. लोकसभा के कुल 543 सीटों में बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के पास अभी 292 सीटें हैं. दो तिहाई बहुमत के लिए 362 का आंकड़े तक पहुंचना जरूरी है. वहीं, राज्यसभा की 245 सीटों में एनडीए के पास अभी 112 सीटें हैं, वहीं 6 मनोनीत सांसदों का भी उसे समर्थन है. जबकि विपक्ष के पास 85 सीटें हैं. दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सीटों की जरूरत है.

वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस, सपा, टीएमसी, आम आदमी पार्टी, आरजेडी, शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (एसपी), जेएमएम और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सहित 15 दल विरोध में है. बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के घटक दलों के साथ वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस और बीजेडी जैसे दल समर्थन में है. इसके बावजूद मोदी सरकार के लिए एक देश एक चुनाव को विधेयक को दो तिहाई बहुमत के साथ पास कराने के लिए विपक्षी दलों के समर्थन के बिना संभव नहीं है.

जेपीसी में बीजेपी का दबदबा

मोदी सरकार ने भले ही एक देश एक चुनाव से जुड़े बिल को जेपीसी में भेजा हो, लेकिन वहां भी उसका ही दबदबा रहेगा. जेपीसी में लोकसभा और राज्यसभा सांसदों को संख्या के आधार पर सदस्य शामिल किए जाते हैं. लोकसभा में और राज्यसभा दोनों ही जगह पर बीजेपी के सबसे ज्यादा सांसद हैं. ऐसे में जेपीसी में सबसे ज्यादा सदस्य बीजेपी के होंगे. इस तरह जेपीसी के द्वारा रायशुमारी या फिर विचार-विमर्श में बीजेपी का ही दबदबा होगा और विपक्षी दलों के सदस्यों की संख्या कम होगी.

वक्फ बोर्ड से संबंधित विधेयक पर विचार-विमर्श के लिए गठित जेपीसी में बीजेपी का दबदबा कायम है. इतना ही नहीं वक्फ संबंधित जेपीसी की कमान बीजेपी के सांसद जगदम्बिका पाल के हाथों में है. इसी तरह से एक देश और एक चुनाव संबंधित विधेयक पर भी गठित की जाने वाली जेपीसी में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों का दबदबा होगा.

जेपीसी के विचार-विमर्श के बाद मोदी सरकार इस विधेयक को संसद में पेश करेगी. मोदी सरकार विधेयक पर आम सहमति बनाना चाहती है. सरकार इसे विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा है. इस तरह से मोदी सरकार की कोशिश यह संदेश देने की है कि हम सर्वसम्मति और विचार-विमर्श के बाद विधेयक को ला रहे हैं.

केंद्र सरकार का दावा है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ चुनाव सुधार की दिशा में एक बड़ा क़दम साबित होगा. सरकार का मानना है कि इससे चुनावी खर्च कम होगा, विकास कार्यों में तेज़ी आएगी और सरकारी कर्मचारियों को बार-बार चुनावी ड्यूटी से छुटकारा मिलेगा. वहीं, विपक्ष का कहना है इस विधेयक में कई खामियां हैं. उनका कहना है कि ये संविधान के संघीय ढांचे के ख़िलाफ़ है. यही वजह है कि मोदी सरकार एक समन्वय बनाने के लिए जेपीसी भेजा है.

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