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देश का इकलौता मंदिर, जहां राधा-कृष्ण के साथ होते हैं देवी रुक्मिणी के दर्शन

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 हिंदू धर्म में रुक्मिणी अष्टमी का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी की पूजा की जाती है. हर साल पौष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. पंचाग के अनुसार, इस साल 22 दिसंबर को रुक्मिणी अष्टमी मनाई जाएगी. इस दिन भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी की पूजा जाती है. साथ ही व्रत भी किया जाता है.

मंदिर जहां राधा-कृष्ण के साथ रुक्मिणी विराजमान

हिंदू धर्म शास्त्रों में देवी रुक्मिणी को माता लक्ष्मी का ही रूप माना गया है. देवी रुक्मिणी श्री कृष्ण की पत्नी हैं. हालांकि घरों और मंदिरों में राधा-कृष्ण के जोड़े को ही पूजा जाता है, लेकिन आज हम आपको देश के ऐसे मदिंर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के साथ आप उनकी पत्नी रुक्मिणी के भी दर्शन पा सकते हैं. दावा ये भी किया जाता है कि ये देश का पहला ऐसा मंदिर है, जहां ये तीनों साथ में विराजमान हैं. यहां रुक्मिणी अष्टमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.

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झांसी में है ये मंदिर

ये मंदिर उत्तर प्रदेश के झांसी में है. झांसी के बड़ा बाजार में ये मुरली मनोहर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर में भक्तों को भगवान कृष्ण, राधा रानी और रुक्मिणी जी दर्शन प्राप्त होते हैं. मंदिर में बीच में भगवान कृष्ण और उनके एक ओर राधा रानी, जबकि दूसरी ओर रुक्मिणी जी विराजमान हैं. इस मंदिर में राधा-कृष्ण और रुक्मिणी जी के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

मंदिर का इतिहास

ये मंदिर करीब 250 साल पुराना माना जाता है. इतिहासकार बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सास मां सक्कू बाई ने करवाया था. उन्होंने इसका निर्माण सन 1780 में करवाया था. मंदिर में सक्कू बाई पूजा किया करती थीं. सन 1842 में रानी लक्ष्मीबाई की झांसी के राजा गंगाधर राव से शादी होने के बाद वो भी इस मंदिर में पूजा के लिए आने लगीं. झांसी में इस मंदिर को प्रेम की निशानी के रूप में भी पूजा जाता है. हालांकि, इस मंदिर में राधा-कृष्ण के साथ रुक्मिणी जी को क्यों विराजमान किया गया, इसको लेकर ज्यादा जानकारी नहीं है.

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