राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के ‘हिंदुओं के नेता’ बनने वाले बयान को अब हर तरफ समर्थन मिल रहा है. इस बीच उन्होंने एक और बड़ा बयान दिया है. भागवत ने कहा किसभी बातों की अतिवादिता छोड़कर हमें धर्म का मध्यम मार्ग लेकर चलना है. शास्त्र लिखते वक्त उनमें मानव धर्म लिखा गया. अब उस धर्म को दुनिया भूल गई. विश्व शांति की घोषणा करके हमें बताया जाता है लेकिन वहां (विश्व के अन्य देशों में) अल्पसंख्यकों की क्या स्थिति है. ये विश्व शांति की बात करते हैं. भारत की परंपरा रही है और हमने तीन हजार साल तक ये करके दिखाया है.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, हमारे देश में अन्य देशों की तरह न तो कभी कोई विपदा आई और न कभी आएगी. प्रणाली को न केवल शिक्षा को विनियमित करना चाहिए बल्कि उसका पोषण भी करना चाहिए. शिक्षा का पोषण पूरे समाज को करना चाहिए. साक्षरता और सीखने में अंतर है. इंसान बनने के लिए शिक्षा जरूरी है.
विचारों की दिशा नर को नारायण बनाने की हो
उन्होंने कहा, जन्म से सभी जानवर हैं. विचारों की दिशा नर को नारायण बनाने की होनी चाहिए न कि नर को नराधम बनाने की. मनुष्य बनाने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है. शिक्षा कोई व्यवसाय नहीं है. अच्छी शिक्षा प्राप्त करके जितना चाहो कमाओ लेकिन फिर जो चाहो उसे रखो और बाकी सबको दे दो.
हम महान नेतृत्व वाला देश बना सकते हैं
संघ प्रमुख ने कहा कि कुछ विचार चलन में आते हैं. हमें भी अपने सनातनत्व को संरक्षित करके अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का यही कार्य करना चाहिए. हम इसके शरीर और आंख को साकार रूप में देख सकते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि हम महान नेतृत्व वाला देश बना सकते हैं. इससे पहले गुरुवार को पुणे में भारत-विश्वगुरु विषय पर बोलते हुए आरएसएस प्रमुख ने समावेशी समाज की बात की थी.
उन्होंने मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की. भागवत ने कहा कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लग रहा है कि वो ऐसे मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं.दुनिया को ये दिखाने की आवश्यकता है कि देश सद्भावना के साथ रह सकता है. रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस मनाया जाता है. केवल हम ही ऐसा कर सकते हैं क्योंकि हम हिंदू हैं. हम लंबे समय से सद्भावना से रह रहे हैं.अगर दुनिया को यह सद्भावना देना चाहते हैं तो इसका एक मॉडल बनाने की जरूरत है.