जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में का पारा माइनस 7 डिग्री है, लेकिन आरक्षण को लेकर हो रहे आंदोलन ने यहां की सियासी तपिश बढ़ा रखी है. जम्मू कश्मीर के शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में आरक्षण को लेकर पिछले दो दिनों से श्रीनगर में प्रदर्शन हो रहे हैं. आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि कश्मीर में जो आरक्षण का प्रावधान है, उसे बदला जाए. दिलचस्प बात है कि आरक्षण के इस आंदोलन का नेतृत्व सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ही कर रहे हैं, जिसकी वजह से आंदोलन और ज्यादा सुर्खियों में है.
आरक्षण के इस स्ट्रक्चर को समझिए
जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नियम 2004 (संशोधित) के तहत शिक्षा और सरकारी नौकरी के क्षेत्र में कुल 60 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गई है. घाटी में यह व्यवस्था 2023 और 2024 में संसद में पास कराए गए दो संशोधित बिल के बाद लागू हुई है.
इसके मुताबिक घाटी में दलित समुदाय के लिए 8 प्रतिशत, आदिवासी को 20 प्रतिशत (इनमें 10 प्रतिशत गुज्जर और बकरवाल और 10 प्रतिशत पहाड़ी जनजातियों का शामिल है), ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 8 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है.
ओबीसी कैटेगरी में 15 नई जातियों को भी केंद्र ने शामिल कर दिया है. इनमें अधिकांश हिंदू जातियां हैं.
वहीं एलएसी पर रहने वाले नागरिकों के लिए 4 प्रतिशत, पिछड़े क्षेत्र में रहने वाले आरबीए के लिए 10 प्रतिशत, पीडब्ल्यूडी के लिए 3 प्रतिशत, रक्षा कर्मियों के बच्चों को 3 प्रतिशत, अर्धसैनिक और पुलिस अधिकारियों के बच्चों के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है.
असाधारण एथिलिटिक प्रदर्शन करने वाले आवेदकों के लिए भी जम्मू कश्मीर में 2 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. यानी कुल जोड़ देखा जाए तो यह करीब 60 प्रतिशत के आसपास है. आरक्षण का यही प्रावधान आंदोलन की जड़ में है.
समझिए घाटी में आंदोलन क्यों हो रहे हैं?
1. आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि कश्मीर के 30 प्रतिशत लोगों को 60 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है, जो मेरिट के नियमों का खुला उल्लंघन है. आरक्षण की यह लड़ाई साल 2023 में जम्मू-कश्मीर में आए एक भर्ती रिजल्ट के बाद शुरू हुई थी. इसके बाद नीट एग्जाम के कटऑफ ने इस आग में घी डालने का काम किया. यहां के अधिकांश बहुसंख्यक सामान्य वर्गों के लोगों का कहना है कि आरक्षण की वजह से हमें कश्मीर से पलायन करना पड़ रहा है.
2. जम्मू कश्मीर में मुसलमानों की आबादी करीब 68.31 प्रतिशत है. अधिकांश मुस्लिम सामान्य या ओबीसी कैटेगरी में ही शामिल है. ऐसे में आरक्षण का जो प्रावधान है, उसका इन्हें फायदा नहीं मिल पा रहा है. पहले मेरिट वाली सीटों की संख्या ज्यादा थी, जो मुसलमान आसानी से इसका लाभ ले लेते थे, लेकिन अब नए प्रावधान से इन वर्गों की मुश्किलें बढ़ गई.
आंदोलन के पीछे निकाय चुनाव भी वजह
आरक्षण को लेकर जो आग सुलगी है, उसके पीछे आगामी लोकल बॉडी के प्रस्तावित चुनाव है. विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस की नजर स्थानीय निकाय चुनाव पर है. ऐसे में कहा जा रहा है कि चुनाव से पहले आरक्षण की आग को जानबूझकर हवा दी जा रही है, जिससे चुनाव का बड़ा मुद्दा सेट हो जाए.
आरक्षण को लेकर जितने भी प्रावधान किए गए हैं, वो सब केंद्र सरकार का फैसला है. ऐसे में उमर की पार्टी इस मुद्दे के जरिए केंद्र की बीजेपी को भी घेरने की कोशिशों में जुटी हुई है.