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म्यांमार की अराकान आर्मी को भारत और बांग्लादेश से मिल रहा ‘खाद पानी’?

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म्यांमार में साल 2021 में आंग सान सू की की सरकार का सैन्य तख्तापलट कर दिया गया. इसके बाद से ही कई विद्रोही समूहों ने सेना की जुंटा सरकार के खिलाफ हथियार उठा लिए और तब से ही म्यांमार के हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. इसका असर पड़ोसी मुल्क भारत और बांग्लादेश पर भी हो रहा है, क्योंकि म्यांमार में संघर्ष बढ़ने की सूरत में हजारों रोहिंग्या भागकर इन दो पड़ोसी मुल्कों में ही पहुंचते हैं.

भारत के इस पड़ोसी मुल्क में जारी संघर्ष में कई जातीय समूह शामिल हैं, इनमें से ही एक है अराकान आर्मी. म्यांमार के रखाइन समुदाय के सदस्यों ने साल 2009 में अराकान आर्मी का गठन किया था. जिसने पिछले साल नवंबर में म्यांमार के थ्री ब्रदरहुद अलायंस के साथ मिलकर सैन्य सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है. खास बात ये है कि अराकान आर्मी तेज़ी से आगे बढ़ रही है और अब म्यांमार की सैन्य सरकार पर भी तख्तापलट का खतरा मंडरा रहा है.

इस बीच ‘द डिप्लोमैट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि अराकान क्षेत्र (रखाइन स्टेट) में भारत और बांग्लादेश से जरूरी सामान तस्करी के जरिए पहुंच रहे हैं जो यहां के लोगों और अराकान आर्मी के लिए ‘लाइफ-लाइन’ साबित हो रहे हैं.

अराकान में नदी मार्ग के जरिए तस्करी

म्यांमार के चिन राज्य के पलेतवा शहर में कलादान नदी के तट पर हर दोपहर करीब दो दर्जन लोग इकट्ठा होते हैं. वे भारत की सीमा से आने वाली सभी नावों को देखते हैं, उनमें से ज़्यादातर पड़ोसी रखाइन राज्य के अलग-अलग कस्बों में जाती हैं.

जब सामान लदी नाव नदी के तट पर आती है तो ज़्यादातर दुकानदारों और व्यापारियों की भीड़ जो भारत के मिज़ोरम से तस्करी करके लाई गई वस्तुओं पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं, नावों की ओर बढ़ती है और नाव से माल को कुछ वाहनों और मोटरसाइकिलों में लाद दिया जाता है. इसके बाद इनके जरिए इसे शहर के पास दूसरे इलाकों तक पहुंचाया जाता है.

जुंटा सरकार ने सप्लाई चेन रोकी

दक्षिणी चिन राज्य के पलेतवा की तरह, रखाइन स्टेट के लोग पड़ोसी भारत और बांग्लादेश से तस्करी करके लाई गई वस्तुओं पर निर्भर हैं क्योंकि म्यांमार की जुंटा सरकार ने इन इलाकों तक मुख्य सप्लाई चेन को बाधित कर दिया है. अराकान, जो कि रखाइन और दक्षिणी चीन के राज्यों में अराकान सेना के नियंत्रण वाला क्षेत्र है, यहां वाहनों और अच्छी सड़क की कमी के कारण सामानों का परिवहन मुख्य तौर पर नाव के जरिए ही किया जाता है.

अराकान को तस्करी की ज़रूरत क्यों?

म्यांमार की सैन्य सरकार ने विद्रोह को कुचलने के लिए एक नया हथकंडा अपनाया है. प्रशासन ने विद्रोही समूहों और उनके द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों तक खाद्य सामग्री समेत तमाम जरूरी सामानों की पहुंच को रोकने के लिए सप्लाई चेन को ही बाधित कर दिया है.

पिछले साल 13 नवंबर से अराकान आर्मी ने सैन्य सरकार के खिलाफ हमलों की शुरुआत की, इसके बाद से ही जुंटा प्रशासन ने अराकान क्षेत्र में भी सप्लाई चेन को रोकने के रणनीति को अपनाया है. म्यांमार के मौजूदा संघर्ष में अराकान आर्मी तेज़ी से आगे बढ़ रही है, इसने रखाइन स्टेट के आधे से अधिक करीब 17 टाउनशिप कर कब्जा हासिल कर लिया. इसके बाद जुंटा सरकार ने मुख्य भूमि और रखाइन स्टेट के दक्षिण क्षेत्र के सप्लाई रूट को बंद कर दिया है.

इसके चलते इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग और अराकान आर्मी को मुख्य तौर पर भारत और बांग्लादेश से आने वाले मालवाहक नावों पर निर्भर होने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

बिस्कुट से लेकर दवाइयों तक की होती है तस्करी

हालांकि म्यांमार के पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में अराकान क्षेत्र जलवायु और अच्छी मात्रा में पानी की उपलब्धता के कारण कृषि योग्य भूमि से संपन्न है. जिसके चलते यह क्षेत्र पर्याप्त मात्रा में चावल का प्रोडक्शन करने में सक्षम है.

अराकान आर्मी का पॉलिटिकल विंग यूनाइटेड लीग ऑफ अराकान (ULA) क्षेत्र में जरूरी वस्तुओं के ट्रांसपोर्टेशन का पूरा हिसाब-किताब रखता है. ULA के पॉलिटिकल कमिश्नर क्याओ जो ओ ने ‘द डिप्लोमैट’ से बातचीत में बताया है कि अराकान में चावल के साथ-साथ सब्जियां भी पर्याप्त मात्रा में उगाई जाती हैं. जिससे अन्य क्षेत्रों से इस तरह की वस्तुओं का निर्यात नहीं किया जाता. उन्होंने बताया कि अब तक रखाइन स्टेट चावल, सब्जियों, मछली, नमक और शक्कर के लिए किसी भी अन्य क्षेत्र पर निर्भर नहीं है.

हालांकि इन चीजों को छोड़कर लगभग हर सामान कम या अधिक मात्रा में काफी जरूरी है. उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र से गुजरने वाले नदी और जमीनी मार्ग के जरिए भारत और बांग्लादेश से कुकिंग ऑयल, बिस्कुट, साबुन, वॉशिंग डिटर्जेंट, बर्तन, आटा, कपड़े और बैटरीज की तस्करी की जाती है. इन सामानों को पलेतवा, पोन्नागयुन, मिन्ब्या समेत 7 टाउनशिप में बेचा जाता है.

अराकान आर्मी और ULA के लोगों के साथ-साथ क्षेत्र के कुछ दुकानदारों ने भी बताया कि यह क्षेत्र पेट्रोल-डीज़ल और दवाइयों के लिए भारत और बांग्लादेश पर मुख्य तौर पर निर्भर है, क्योंकि जुंटा प्रशासन ने इन दो चीजों के अराकान क्षेत्रों तक पहुंच रोकने के लिए कई कड़े कदम उठाए हैं.

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