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मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार पर सियासत, दिल्ली और देश की राजनीति में कितने अहम हैं सिख?

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार और स्मारक का मामला सियासी लड़ाई में तब्दील हो गया है. इस पूरी लड़ाई में सत्तापक्ष की बीजेपी और विपक्ष की कांग्रेस आमने-सामने है. कांग्रेस ने जहां मनमोहन के अंतिम संस्कार के लिए विशेष जमीन मुहैया न कराने को सिखों का अपमान बताया है. वहीं बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस दुख की घड़ी में भी राजनीति कर रही है.

सिखों के अपमान तक कैसे आई बात?

मनमोहन सिंह के निधन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्र सरकार से स्मारक और अंतिम संस्कार के लिए जमीन देने की सिफारिश की. खरगे का कहना था कि मनमोहन देश के प्रधानमंत्री रहे हैं. ऐसे में उनके अंतिम संस्कार के लिए राजघाट के पास जमीन मुहैया कराई जाए.

प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष की इस सिफारिश का केंद्र ने संज्ञान लिया है. मनमोहन सिंह के स्मारक बनाने के लिए दिल्ली में जमीन की खोज की जा रही है.

पीआईबी के इस बयान के बाद जयराम रमेश ने एक पोस्ट किया. रमेश ने कहा कि मनमोहन सिंह जैसे बड़े कद के नेता के लिए भी सरकार जमीन नहीं खोज पा रही है. यह सिख समुदाय के पहले प्रधानमंत्री का घोर अपमान है.

रमेश के इस पोस्ट के जवाब में भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस ने डॉ. सिंह को कभी सम्मान नहीं दिया. आज उनके निधन के बाद भी राजनीति कर रही है.

दोनों पार्टियों के बीच जारी बयानों की इस लड़ाई में आप भी कूदी. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जो व्यक्ति 10 साल तक देश का प्रधानमंत्री रहा, उसे सरकार 1000 गज जमीन भी नहीं दे सकी? यह सिख समुदाय का अपमान है.

सिख समुदाय पर सियासत क्यों?

सिख समुदाय पर सियासत की बड़ी वजह दिल्ली में विधानसभा का प्रस्तावित चुनाव है. राजधानी दिल्ली में सिख गेमचेंजर की भूमिका में रहते हैं. दिल्ली में सिख समुदाय की करीब 4 प्रतिशत आबादी है, जो विधानसभा की 9 सीटों पर जीत और हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं.

जिन सीटों पर सिख वोटर्स प्रभावी हैं, उनमें हरि नगर, कालकाजी, राजौरी गार्डन की प्रमुख सीटें हैं. कालकाजी सीट से मुख्यमंत्री आतिशी चुनाव लड़ती आ रही हैं.

मनमोहन सिंह के दौर में सिख समुदाय के लोग कांग्रेस को वोट करते थे. 2013 में सिखों का वोट शिअद, कांग्रेस और आप में बंट गया. 2015 और 2020 में सिख समुदाय के लोगों ने आप के समर्थन में इकतरफा वोटिंग की.

सिख वोटरों पर इस बार बीजेपी, कांग्रेस और आप तीनों की नजर है.

पंजाब गढ़, यहां सीएम भी इसी समुदाय के

पंजाब सिख समुदाय का गढ़ माना जाता है. 2011 जनगणना के मुताबिक राज्य में सिख समुदाय की आबादी करीब 58 प्रतिशत है. 117 विधानसभा सीटों वाली पंजाब में सिख समुदाय के ही अधिकांश विधायक हैं. यहां पर अधिकांश मुख्यमंत्री भी इसी समुदाय के बनते हैं.

पूरे देश में पंजाब में ही सबसे ज्यादा सिखों की आबादी है. 2022 में पंजाब में आखिरी बार विधानसभा के चुनाव हुए थे. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की थी. आप को करीब 90 सीटों पर जीत मिली थी.

सीएसडीएस-लोकनीति के मुताबिक पंजाब में आप को सिख समुदाय के करीब आधे वोट मिले थे. बाकी वोट कांग्रेस और अकाली दलों में बंट गया था.

हरियाणा-राजस्थान में भी सिख एक्स फैक्टर

हरियाणा और राजस्थान में भी सिख मतदाता एक्स फैक्टर की भूमिका में हैं. हरियाणा में पंजाब बॉर्डर से लगे इलाकों में सिख मतदाता ही जीत और हार तय करते हैं. राज्य में सिख वोटर्स करीब 15-20 लाख के बीच है, जो विधानसभा की करीब 12 सीटों को सीधे प्रभावित करते हैं. हरियाणा की 4 लोकसभा सीट को भी सिख समुदाय के वोटर्स प्रभावित करते हैं.

हरियाणा में सिख खासतौर पर अंबाला, यमुनानगर जैसे इलाकों में काफी प्रभावी भूमिका में हैं.

बात राजस्थान की करें तो यहां भी सिख समुदाय का दबदबा है. श्रीगंगानगर इलाके में सिख समुदाय के मतदाता ही जीत और हार में अहम भूमिका निभाते हैं. राजस्थान में सिख समुदाय के करीब 6 लाख वोटर्स हैं, जो विधानसभा की 7-8 सीटों का समीकरण तय करते हैं.

लोकसभा की बात की जाए तो पूरे देश में सिख समुदाय के 13 सांसद हैं. सबसे ज्यादा सिख सांसद पंजाब से है.

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