उत्तर प्रदेश की सियासत में अयोध्या सियासी चर्चा के केंद्र में बना हुआ है. राम मंदिर का उद्घाटन हुए एक साल होने जा रहा है, लेकिन राजनीतिक हलचल की वजह अयोध्या में रविवार को हुआ कुर्मी महाकुंभ है. अयोध्या के काशीनाथ गांव में हुए कुर्मी महाकुंभ में जिले के तकरीबन 10 हजार कुर्मी शामिल हुए. इस तरह कुर्मी समुदाय के लोगों ने जाति गोलबंदी कर अपनी ताकत दिखाने के साथ राजनीतिक भागीदारी की मांग उठाई. ऐसे में सवाल यह उठता है कि अयोध्या के मिल्कीपुर उपचुनाव से पहले क्यों कुर्मी महाकुंभ हुआ और उसके पीछे का सियासी मकसद क्या है?
लोकसभा चुनाव में अयोध्या सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं. अयोध्या संसदीय सीट के बाद बीजेपी मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव हर हाल में जीतने की कवायद में है. ऐसे में मिल्कीपुर उपचुनाव का ऐलान अभी तक भले ही न हुआ हो, लेकिन सियासी हलचल तेज है. सपा पहले ही अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को प्रत्याशी बना चुकी है जबकि बीजेपी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. मिल्कीपुर उपचुनाव की सियासी तपिश के बीच कुर्मी समाज ने अयोध्या में एकजुट होकर अपनी ताकत ही नहीं दिखाई बल्कि राजनीतिक हक और अधिकार की आवाज भी उठाने का काम किया.
क्या है कुर्मी महाकुंभ का महत्व
उत्तर प्रदेश की जातीय सियासत में कुर्मी समाज ओबीसी का यादव समाज के बाद दूसरा सबसे बड़ा वोटबैंक है. अयोध्या जिले में भले ही कुर्मी समाज 15 फीसदी हो, लेकिन पूरे मंडल क्षेत्र में उनका अपना सियासी दबदबा है. यही वजह है कि अयोध्या में हुए कुर्मी महाकुंभ का आयोजन कई मायने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस कार्यक्रम में कई दलों के नेताओं ने शिरकत की थी, जिसमें कांग्रेस से लेकर बीजेपी और सपा सहित अन्य दल के कुर्मी नेता शामिल थे. इस दौरान एक सुर में कुर्मी नेताओं ने कहा कि जिले में अयोध्या की सियासत में उनके समुदाय की उपेक्षा और अनदेखी की गई है.
कुर्मी महाकुंभ के अयोजक रहे यूपी कांग्रेस के महासचिव जयकरण वर्मा ने टीवी-9 डिजिटल से बातचीत करते हुए कहा कि कुर्मी महाकुंभ का मकसद समाजिक रूप से हमारे लिए अपनी ताकत और एकता को प्रदर्शित करना था. अयोध्या जिले की राजनीति में कुर्मी समुदाय की सियासी दलों के द्वारा लगातार अनदेखी की जाती रही है. जिले में कुल 18 लाख मतदाताओं में से करीब ढाई लाख कुर्मी मतदाता हैं, जो मुख्य रूप से खेती-किसानी करने का काम करते हैं. इसके बावजूद जिले में एक भी विधायक कुर्मी समाज का नहीं है और ना ही ढाई दशक से कोई कुर्मी सांसद चुना गया है.
कांग्रेस का कुर्मी समाज पर फोकस
जयकरण वर्मा कहते हैं कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियां भी अयोध्या में कुर्मी समुदाय को टिकट देने के बजाय दूसरे समाज के नेताओं पर भरोसा करती है, जिसके चलते ही कुर्मी समाज आज एकजुट हुआ है ताकि राजनीतिक दलों पर दबाव बना सकें. उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी ने (कांग्रेस) भी कुर्मी समाज की अनदेखी करने का काम किया है, लेकिन हम वादा करते हैं कि 2027 के विधानसभा चुनाव में अयोध्या जिले में कुर्मी समाज को पार्टी से टिकट दिलाने की मांग मजबूती से रखेंगे. कांग्रेस संगठन में समाज की भागीदार बढ़ाने की हम वकालत करते रहेंगे.
महाकुंभ में कई पार्टियां हुई शामिल
अयोध्या में हुए कुर्मी महाकुंभ में राजनीतिक बाउंड्री तोड़कर लोग शामिल हुए थे. कांग्रेस से जयकरण वर्मा शामिल थे तो सपा से अशोक वर्मा, लोकदल से राम शंकर वर्मा और योगेंद्र वर्मा जैसे नेता शामिल थे. बीजेपी से डॉ. अवधेश वर्मा ने भी शिरकत की थी. अवधेश वर्मा ने कहा कि कुर्मी महाकुंभ के जरिए कुर्मी समाज की सियासी उपेक्षा का मुद्दा उठाया गया और कुर्मी समाज के लिए अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग की गई.
उन्होंने कहा कि सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि यदि समुदाय के किसी भी सदस्य को अयोध्या से टिकट मिलता है, तो हम पार्टी लाइन की परवाह किए बिना उनका समर्थन करेंगे. इसके अलावा सपा नेता अशोक वर्मा ने भी कहा कि अयोध्या में सभी राजनीतिक दलों ने कुर्मी समाज को नजरअंदाज किया है, जिसके चलते ही हम सभी एकजुट हुए हैं और फैसला किया है कि राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने का काम करेंगे.
सियासत में कुर्मी नेताओं का इतिहास
अयोध्या में कुर्मी समाज की आबादी 15 फीसदी है. अयोध्या लोकसभा सीट को फैजाबाद सीट के नाम से जाना जाता है. आजादी के बाद से सिर्फ दो कुर्मी नेता ही अयोध्या से सांसद अभी तक बने हैं. 1980 में कांग्रेस के टिकट पर जयराम वर्मा पहले कुर्मी सांसद चुने गए थे. इसके बाद 1991, 1996 और 1999 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या से बीजेपी के टिकट पर विनय कटियार सांसद चुने गए. जयराम वर्मा और विनय कटियार दोनों ही कुर्मी समाज से सांसद रहे हैं. अयोध्या से ही कटकर बनी आंबेडकरनगर सीट से लालजी वर्मा सपा से सांसद हैं.
1999 के लोकसभा चुनाव के बाद से कोई भी कुर्मी नेता अयोध्या से सांसद नहीं बन सका. बीजेपी से लेकर कांग्रेस और सपा किसी भी दल ने किसी भी कुर्मी समाज के नेता को टिकट नहीं दिया है. इसके अलावा अयोध्या लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से किसी भी सीट पर न बीजेपी और ना ही कांग्रेस और न ही सपा ने किसी कुर्मी को टिकट दिया है. इतना ही नहीं अयोध्या मंडल में कुर्मी समाज के विधायक पर नजर डाले तो मौजूदा समय में सिर्फ बाराबंकी जिले में सिर्फ एक कुर्मी विधायक मिलता है. ऐसे में अयोध्या मंडल में कुर्मी समाज बड़ी संख्या में होने के बावजूद अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जंग लड़ रहा है जबकि एक दौर में बेनी प्रसाद वर्मा जैसे मजबूत नेता हुआ करते थे.
क्या है कुर्मी समाज का मकसद
अयोध्या में हुए कुर्मी महाकुंभ में जिस तरह कुर्मी समाज के लोगों ने एकजुट होकर राजनीतिक तौर पर अनदेखी किए जाने का मसला उठाया है, उसके जरिए उनके राजनीतिक मकसद को समझा जा सकता है. कुर्मी समाज की नजर दो साल बाद 2027 में होने वाले यूपी के विधानसभा चुनाव पर है. इसीलिए मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव से पहले कुर्मी महाकुंभ के आयोजन को राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने की रणनीति माना जा रहा है. इसकी वजह यह है कि मिल्कीपुर सीट आरक्षित है, लेकिन कुर्मी वोटर काफी अहम है. वक्त की सियासी नजाकत को समझते हुए कुर्मी समाज ने अयोध्या में प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चलना शुरू कर दिया है.
कुर्मी समुदाय ने ऐसे समय कुर्मी महाकुंभ का आयोजन किया है, जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी के संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं. मंडल अध्यक्ष की लिस्ट आ चुकी है और अब जिला अध्यक्ष की नियुक्ति का सिलसिला शुरू हो रहा है. अयोध्या लोकसभा सीट पर बीजेपी से लल्लू सिंह चुनाव लड़े थे और जिला अध्यक्ष की कमान भी संजीव सिंह के हाथ में है. लल्लू सिंह और संजीव सिंह दोनों ही ठाकुर समुदाय से आते हैं. इसके अलावा अयोध्या के विधायकों की लिस्ट देखें तो पांच से चार सीट पर बीजेपी के विधायक हैं और एक सीट रिक्त है. किसी भी सीट पर कोई भी कुर्मी विधायक नहीं है.
कुर्मी समाज की नजर अयोध्या के जिला अध्यक्ष पद की कुर्सी पर है. बीजेपी के जिला अध्यक्ष की नियुक्ति का सिलसिला चल रहा है. जिस पर कुर्मी समाज अपने किसी नेता को बैठाना चाहता है. इसीलिए दबाव बनाने का कार्यक्रम शुरू हो गया है. ऐसे में सपा जिला अध्यक्ष पारसनाथ यादव हैं तो कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष अखिलेश यादव हैं. ऐसे में अयोध्या की सियासत में कुर्मी समाज अपना पुराना दबदबा बनाए रखने के लिए सिर्फ टिकट ही नहीं बल्कि संगठन में भी अहम मुकाम चाहता है. इसीलिए प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति अपनाई गई है.