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कांग्रेस के पुराने मुस्लिम चेहरे नदारद, दिल्ली के बदले हुए माहौल में कैसे मुसलमानों का दिल जीतेगी?

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी मुस्लिम सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस ने दिल्ली की 70 में से 63 सीटों पर टिकट की घोषणा कर दी, जिसमें से 7 सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. कांग्रेस ने अपने दिग्गज और पुराने नेताओं में सिर्फ बल्लीमरान सीट से पूर्व मंत्री हारुन यूसुफ को उतारा है जबकि बाकी मुस्लिम बहुल सीटों पर नए और युवा चेहरों पर दांव खेला है. ऐसे में क्या कांग्रेस अपने कोर वोटबैंक माने जाने वाले मुस्लिम समाज का विश्वास जीत पाएगी?

साल 1993 में दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे, उसके बाद से 2013 तक हुए चुनावों में मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस का दबदबा कायम रहा. अरविंद केजरीवाल के सियासी पिच पर उतरने के बाद पहली बार 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस को 8 सीटों पर जीत मिली जिसमें 4 मुस्लिम बहुल सीटें भी शामिल थीं. कांग्रेस के 5 बड़े मुस्लिम नेता थे और वो अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनते और चुनाव लड़ते रहे, लेकिन इस बार के चुनाव में हारुन यूसुफ के अलावा सभी नदारद हैं.

कांग्रेस के चर्चित मुस्लिम चेहरे

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में 1993 से विधानसभा चुनाव बहाल हुआ तो कांग्रेस के मुस्लिम चेहरे के तौर पर हारुन यूसुफ, परवेज हाशमी, चौधरी मतीन और अहमद हसन जैसे दिग्गज नेता उभरे. इसके अलावा शोएब इकबाल ने अपनी अलग पहचान बनाई, लेकिन बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया. कांग्रेस के पांचों मुस्लिम चेहरे चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं, कांग्रेस के ये बैकबोन भी माने जाते थे. लेकिन, 2015 के बाद दिल्ली की सियासी स्थिति बदल गई है और नई मुस्लिम लिडरशिप उभरी है. आम आदमी पार्टी ने इन्हीं नए मुस्लिम नेताओं को आगे बढ़ाया है.

दिल्ली के बदले हुए सियासी माहौल में इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 7 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें बल्लीमरान सीट से हारुन यूसुफ, मटिया महल से आसीम अहमद खान, बाबरपुर से मोहम्मद इशराक, सीलमपुर से अब्दुल रहमान, ओखला से अदीबा खान, जंगपुरा सीट से फरहाद सूरी और मुस्तफाबाद से अली मेंहदी शामिल हैं. इनमें फरहाद सूरी और इशराक को छोड़कर बाकी नेताओं को आम आदमी पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशी से दो-दो हाथ करनी पड़ रही है.

ओखला सीट पर लगातार 4 बार विधायक और राज्यसभा सांसद रहे परवेज हाशमी इस बार के चुनाव में पूरी तरह गायब हैं. कांग्रेस ने पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खां की बेटी अदीबा को टिकट दिया है, जिसके चलते उन्होंने दूरी बना ली है. इतना ही नहीं ओखला सीट पर कई बार के पार्षद शोएब दानिश भी नाराज माने जा रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए ओखला सीट पर जीत दर्ज करना आसान नहीं है, क्योंकि उनका मुकाबला आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता अमानतुल्लाह खान से है. अमानत लगातार दो बार से विधायक हैं और तीसरी बार चुनावी मैदान में उतरे हैं. इसके अलावा AIMIM ने सीएए-एनआरसी आंदोलन के चलते जेल में बंद शिफाउर रहमान को प्रत्याशी बनाया है.

मुस्तफाबाद सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला!

मुस्लिम बहुल मुस्तफाबाद सीट पर कांग्रेस ने पूर्व विधायक अहमद हसन के बेटे अली मेंहदी को प्रत्याशी बनाया है तो आम आदमी पार्टी ने आदिल अहम खान को टिकट दे रखा है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने दिल्ली दंगे के आरोपी रहे ताहिर हुसैन को टिकट दिया है. इसके चलते अहमद हसन अपने बेटे को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.

मटियामहल सीट से लगातार विधायक रहे शोएब इकबाल का कांग्रेस से मोहभंग पिछले चुनाव में ही हो गया था. वह कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे, जिसके बाद जीत भी गए. इस बार शोएब इकबाल ने खुद चुनाव लड़ने के बजाय अपने बेटे आले मोहम्मद इकबाल को आम आदमी पार्टी से उतारा है. कांग्रेस ने असीम अहमद खान को उम्मीदवार बनाया. बीजेपी ने दीप्ति इंदौरा को यहां से टिकट दिया है. इस तरह शोएब इकबाल कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी को जिताने के लिए मशक्कत करते नजर आएंगे.

सीलमपुर के विधायक मतीन ने पाला बदला

सीलमपुर विधानसभा सीट पर लगातार 5 बार कांग्रेस से विधायक रहे चौधरी मतीन भी पार्टी को अलविदा कह चुके हैं. कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है. सीलमपुर से चौधरी मतीन खुद चुनाव लड़ने के बजाय अपने बेटे जुबैर अहमद को आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ा रहे तो कांग्रेस ने मौजूदा विधायक अब्दुल रहमान को टिकट दिया है और बीजेपी ने मौजपुर से पार्षद अनिल गौड़ को प्रत्याशी बनाया है. इस तरह चौधरी मतीन भी कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी के जीत की इबारत लिख रहे हैं.

केजरीवाल ने बल्लीमरान सीट से विधायक इमरान हुसैन को फिर से उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने पूर्व मंत्री हारुन यूसुफ को टिकट दिया है और बीजेपी ने रामनगर वार्ड से पार्षद कमल बागड़ी पर भरोसा जताया. कांग्रेस से अकेले इकलौते दिग्गज और पुराने नेता हैं, जो विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने उतरे हैं.

बाबरपुर सीट से कांग्रेस ने मोहम्मद इशराक को उतारा है, जो 2015 में सीलमपुर से विधायक रहे चुके हैं. इसके अलावा जंगपुरा सीट से कांग्रेस ने फरहाद सूरी पर दांव खेला है, जो कभी विधायक तो नहीं रहे, लेकिन दिल्ली के मेयर जरूर रह चुके हैं.

कांग्रेस कैसे साधेगी मुस्लिम वोट

दिल्ली में करीब 12 फीसदी मुस्लिम आबादी, जिसके चलते हर आठवां मतदाता मुसलमान है. दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 8 विधानसभा सीटों पर भी मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं. बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर, दिलशाद गार्डेन और किराड़ी मुस्लिम बहुल इलाके हैं. इसके अलावा त्रिलोकपुरी और सीमापुरी इलाके में भी मुस्लिम मतदाता काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं.

राजधानी में मुस्लिम मतदाता बहुत ही सुनियोजित तरीके से मतदान करते रहे हैं. एक दौर में मुस्लिमों को कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था. मुस्लिम समुदाय ने दिल्ली में 2013 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट किया था. जबकि, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय की दिल्ली में पहली पसंद आम आदमी पार्टी बनी थी.

इसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस ने 2013 में दिल्ली में 8 सीटें जीती थीं, जिनमें से 4 मुस्लिम विधायक शामिल थे. 2013 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस को 5 और AAP को एक सीट पर जीत मिली थी. इसके बाद कांग्रेस का वोट आम आदमी के साथ चला गया था, जिसके बाद से कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका है.

नए चेहरों के दम पर विश्वास जीत पाएगी कांग्रेस

2015 के चुनाव में मुस्लिम समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग और केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ाव नजर आया. इसका नतीजा रहा कि मुस्लिम बहुल सीटों पर भी आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने कांग्रेस के दिग्गजों को करारी मात देकर कब्जा जमाया था. आम आदमी पार्टी ने सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में जीत का परचम फहराया. इसी का नतीजा यह रहा कि केजरीवाल ने अपनी सरकार में एक मुस्लिम विधायक को मंत्री बनाया था. दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में बिजली सप्लाई में सुधार, सड़क और पानी जैसे कई मुद्दे अहम रहे. इसका सियासी लाभ 2020 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को मिला था.

पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन होने के नाते मुस्लिम समुदाय ने एकतरफा वोट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को दिया था, लेकिन एक बार फिर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनावी किस्मत आजमा रही हैं. कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरों की जगह नए चेहरों पर दांव खेला है जबकि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से आए नेताओं के बेटों को टिकट देकर उसके सारे गणित को बिगाड़ दिया है. ऐसे में कांग्रेस के लिए नए चेहरों के जरिए मुस्लिम समाज का विश्वास जीतना आसान नहीं दिख रहा, क्योंकि दिल्ली का चुनाव आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच ही सिमटता जा रहा है.

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