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शबरी जयंती 24 फरवरी को, जानिए व्रत-पूजा विधि, कौन थी माता शबरी और क्या है इस दिन का महत्व

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उज्जैन. शबरी जयंती पर माता शबरी की पूजा अर्चना करने से भगवान राम की कृपा भी प्राप्त होती है। प्रभु श्री राम ने अपनी भक्त शबरी की भक्ति को पूर्ण करने के लिए उनके जूठे बेर खाए थे।

रामायण, रामचरितमानस आदि में शबरी की कथा का उल्लेख मिलता है। इस दिन माता शबरी की स्मृति यात्रा निकाली जाती है। लोग रामायण का पाठ आदि कराते हैं। आगे जानिए कैसे करें माता शबरी की पूजा और व्रत विधि.

शबरी जयंती की व्रत-पूजा विधि
– इस दिन सुबह उठकर सर्वप्रथम भगवान श्री राम और माता शबरी को स्मरण कर नमस्कार करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई कर अन्य कार्य भी कर लें।
– अब गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान कर साफ वस्त्र पहनें। आचमन कर अपने आप को पवित्र कर व्रत संकल्प लें।
– भगवान श्रीराम और माता शबरी की पूजा फल, फूल, दूर्वा, सिंदूर, अक्षत, धूप, दीप, अगरबत्ती आदि से करें.
– शबरी माता और भगवान श्रीराम को प्रसाद में बेर अवश्य भेंट करें। पूजा के आखिर में आरती करने के बाद अपने परिवार के कुशल मंगल की कामना करें।
– संभव हो तो दिन भर उपवास रखें और शाम को आरती अर्चना करने के बाद ही फलाहार करें। अगले दिन दोबारा पूजा करने के बाद ही व्रत खोलें।

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कौन थीं माता शबरी?
धर्म ग्रंथों के अनुसार, माता शबरी भगवान श्रीराम की परम भक्त थी। शबरी का असली नाम ‘श्रमणा’ था। ये भील सामुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थीं। इसी कारण कालांतर में उनका नाम शबरी हुआ। इनके पिता भीलों के मुखिया थे, उन्होंने श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय किया था।
विवाह से पहले परंपरा के अनुसार कई सौ पशुओं को बलि देने के लिए लाया गया, जिन्हें देख श्रमणा का हृदय द्रवित हो उठा कि यह कैसी परंपरा जिसके कारण बेजुबान और निर्दोष जानवरो की हत्या की जाती है। इसी कारणवश शबरी अपने विवाह से एक दिन पूर्व दिवस पूर्व भाग गई और दंडकारण्य वन में पहुंच गई।
दंडकारण्य में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे। श्रमणा उनकी सेवा करना चाहती थी परंतु वह भील जाति से थी जिसके कारण उन्हें लगता था कि उन्हें सेवा करना का अवसर नहीं मिलेगा, लेकिन इसके बाद भी वे चुपचाप प्रातः जल्दी उठकर आश्रम से नदी तक का रास्ते से सारे कंकड़ और कांटो को चुनकर पूरे रास्ते को भलिभांति साफ कर दिया करती थी और रास्ते में बालू बिछा देती थी।
एक दिन जब शबरी यह सब कार्य कर रही थी तो ऋषिश्रेष्ठ ने उन्हें देख लिया। वे शबरी की सेवा भावना से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने आश्रम में शबरी को शरण दे दी। शबरी वहीं पर रहने लगी। एक दिन जब ऋषि मातंग को लगा कि उनका अंत समय निकट है तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा करें।
वे एक दिन अवश्य ही उनसे मिलने आएंगे। मातंग ऋषि की मृत्यु के बाद शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा। वह अपने आश्रम को एकदम साफ-सुथरा रखती थी और प्रतिदिन भगवान राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। ऐसा करते-करते कई वर्ष बीतते चले गए।
एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें खोज रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं। माता शबरी उन्हें घर लेकर आई और अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए। भगवान राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और अपनी भक्त शबरी की भक्ति को पूर्ण किया।

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