वास्तु विज्ञान में मानव जाती के हर कार्य को करने का सही समय एवं दिशा के बारे में बताया गया है। जिससे कि हम मानव शारीरिक, मानसिक, सामाजिक रुप से स्वस्थ रह सकें। वास्तुविज्ञान के अनुसार विश्वकर्मा जी ने यह समझाने का प्रयास किया है कि भोजन अगर गलत दिशा, समय, स्थान पर किया जाता है तो उसका हमारे शरीर एवं विचारों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अगर हम सही दिशा, स्थान, समय पर भोजन करें तो वह हमें शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं सकारात्मक रखता है। वास्तु के अन्तर्गत भोजन को बनाने एवं खाने की भी दिशा का निर्धारण किया गया है। इन दिशाओं का संबंध देवताओं एवं ऊर्जा से माना गया है। इसी आधार पर भोजन करते समय दिशा का ध्यान रखना विशेष रूप से आवश्यक माना गया है।
Which direction is best for eating food: पूर्व एवं उत्तर दिशा की तरफ मुख करके भोजन ग्रहण करना उत्तम माना गया है। सूर्य देव एक प्रत्यक्ष देवता हैं जो कि ज्ञान एवं निरोगी काया प्रदान करने वाले माने जाते हैं। पढ़ाई करने वाले विधार्थियों को अधिक से अधिक पूर्व दिशा के सम्पर्क में रहना चाहिए विशेषकर भोजन एवं पढ़ने के समय। इससे आपका दिमाग एक विषेश प्रकार से कार्य करता है, जिससे कि ऑब्जर्व करने कि क्रिया तेज हो जाती है और याद की गयी चीजें अधिक समय तक याददाश्त में बनी रहती है। बिमार व्यक्ति को भी भोजन पूर्व दिशा की तरफ करने से ऐसी उर्जा का संचरण होता है जो कि आपको निरोगी रहने में सहायता प्रदान करती है। जो विद्यार्थी ऐसे क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं या जो लोग कलात्मक व्यापारिक गतिविधियों से जुड़े हैं या जो प्रॉफेशनल है या फाईनांस से संबंधित हैं तो उन्हें विशेषकर उत्तर दिशा की तरफ मुख करके भोजने करने से ऐसे विचार बढ़ जाएंगे जो कि नई कलात्मकता के साथ आपकी सोचने की क्षमता का विस्तार कर पाएंगे।
जो लोग नौकरी से संबंधित हैं और विषेशकर शनि से संबंधित प्रॉफेशन में हैं उनके लिये पश्चिम दिशा की तरफ मुख करके किया गया रात का खाना भी लाभकारी रहता है। दक्षिण दिशा की तरफ कभी भी मुख करके भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दिशा से ऐसी ऊर्जा का सर्जन होता है जो कि हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। इसलिए दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा से संबोधित किया गया है। यमराज अर्थात ऐसे देवता जो कि हमें मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट दे सकते हैं।
डायनिक रूम एवं डायनिंग टेबल को उत्तर पश्चिम दिशा को सर्वोत्म माना जाता है। यदि इस दिशा में डायनिंग के लिए जगह नहीं है तो उत्तर पूर्व या पूर्व दिशा में भी डायनिंग टेबल रखा जा सकता है।
इसी के साथ अलग-अलग जातकों के ग्रहों की स्थिति के अनुरूप ही वास्तु रेमेडीज का जातको के ग्रहों की अनुकूलता के हिसाब से ही प्रभाव पड़ता है। जो किसी प्रबुद्ध ज्योतिष वैज्ञानिक से ही सलाह लें क्योंकि बिना ग्रहों की पूर्ण जानकारी के वास्तु कम्पलीट नहीं हो सकता क्योंकि वास्तु विज्ञान जो कि ज्योतिष विज्ञान की भवनों के निर्माण संबंधित एक छोटी सी शाखा ही है।