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एक पैर से फर्राटे से चलाता है बाइक, नहीं है किसी पर आश्रित

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जबलपुर: मन में अगर इच्छाशक्ति हो तो कोई भी दिव्यांग कभी किसी पर आश्रित नहीं रह सकता यह बताया हैं मध्य प्रदेश के दमोह जिला में रहने वाले दिव्यांग आदिवासी झलकन सिंह गौड़ ने। जिसने कि बचपन में ही अपना एक पैर खो दिया था उसके बावजूद भी वह किसी पर आतआश्रित नहीं है।झलकन सिंह ना सिर्फ स्वयं ही खेती-बाड़ी करते हैं बल्कि फर्राटे से उस तरह से बाइक चलाते हैं जैसे कि एक आम इंसान चलाता है।दमोह जिला के जबेरा तहसील में रहने वाले झलकन सिंह गौड़ पर हमारी नजर उस समय पड़ी जब वह जबलपुर से दमोह जा रहे थे।हाथ से ही किक मारकर बाइक स्टार्ट करना और फिर कूदकर बाइक में बैठना और ऐसे गाड़ी चलाना जैसे कि बाइक कोई सामान्य इंसान चला रहा हो यह देखकर थोड़ी देर के लिए चौक गए गए। झलकन सिंह खेती-बाड़ी करते हैं। कभी उन्हें यह अफसोस नहीं हुआ कि उनका एक पैर नहीं है और वह किसी पर आश्रित हैं।झलकन सिंह ने बताया कि उन्होंने पहले साइकिल सीखी और फिर बाइक चलाना। अब वह फर्राटे से बाइक चलाते हैं।दमोह जिले की जबेरा तहसील निवासी आदिवासी युवक झलकन सिंह गौंड का एक पैर बचपन में जल गया था बाद में उनके पैर को काटना पड़ा। झलकन सिंह एक पैर से चलने में असमर्थ थे लेकिन अपने मजबूत हौसले को साथ मोटरसाइकल फर्राटे से दौड़ा रहे हैं और दूर दराज पहुंच कर अपने कार्य भी कर रहे है। झलकन सिंह ने बताया की वह पेशे से एक किसान है लेकिन अपने अन्य भी कार्यों के लिए उन्हें यहां-वहां जाना पड़ता है। झलकन सिंह ने पहले साइकल चलानी सीखी उसके बाद अब वह मोटरसाइकल की सवारी भी बड़ी आसानी से कर लेते हैं, झलकन सिंह से मुलाकात उस वक्त हुई जब वो अपनी एक रिश्तेदार के यहां से वापस लौट रहे थे। उनको एक पैर के सहारे मोटरसाइकल चलाता देख रोककर उनसे बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वह दिव्यांग होने के बाद भी किसी पर आश्रित नहीं है।हाईवे और भीड़ भाड़ वाली सड़क पर एक पैर के सहारे मोटरसाइकल चलाना भले ही थोड़ा सा रिस्की है लेकिन आदिवासी झलकन सिंह मजबूत इरादों के साथ इस चुनौती को स्वीकार किया हैं। आदिवासी झलकन सिंह मिसाल है उनके लिए जो कि बात बात पर किस्मत का बहाना बताकर जीवन में कुछ ना कर पाने का दुखड़ा रोते हैं।

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