जगदलपुर: छत्तीसगढ़ में बस्तर की सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने और आने वाली पीढ़ी को इससे परिचय कराने के लिए अब छत्तीसगढ़ सरकार ने कमद उठाए हैं। संभाग के सातों जिलों में स्थित 6318 देवगुड़ी, मतागुड़ी, घोटुल और मृतक स्तंभों का संरक्षण किया जाएगा। इनका जीर्णोद्धार कर इन्हें सहेजा जाएगा। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। देवगुड़ी और मतागुड़ी के संरक्षण के लिए सरकार 5-5 लाख रुपए दे रही है। इन ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण से बस्तर को एक नई पहचान मिलेगी।दरअसल, देवगुड़ी और मातागुड़ी बस्तर के आदिवासियों का आस्था का केंद्र है। ग्रामीण अपना कोई भी काम देवगुड़ी और मातागुड़ी में मत्था टेककर ही शुरू करते हैं। इसके अलावा अपने पूर्वजों की याद में मृतक स्तंभ बनाकर रखते हैं। घोटुल भी बस्तर की प्राचीन परंपरा है। वहीं इनके संरक्षण की कोशिश में सरकार लग गई है। बस्तर संभाग में 6318 देवगुड़ी, मातागुड़ी, घोटुल और मृतक स्मारक स्थलों को संरक्षित करने के लिए राजस्व अभिलेख में शत प्रतिशत दर्ज कर लिया गया है। जिसमें 2481 देवगुड़ी, 2935 मातागुड़ी, 564 घोटुल और 338 प्राचीन मृतक स्मारक शामिल हैं।देवगुड़ी ग्रामीणों की आस्था का केंद्र है।बस्तर कमिश्नर श्याम धावड़े ने इन स्थलों को संरक्षित करने के लिए देवी-देवताओं के नाम पर सामुदायिक वनाधिकार पत्र जारी करने निर्देश दिए हैं। सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के साथ-साथ देवस्थल परिसर में फलदार-छायादार पौधारोपण और संरक्षण पर जोर दिया है। इसके साथ ही संभाग में 20101 बैगा, मांझी, चालकी, सिरहा, गुनिया, गायता, पुजारी, बजनिया, अटपहरिया का पंजीयन किया गया है। जो बस्तर की लोक परंपराएं, रीति, विशिष्ट संस्कृति के संरक्षण में निरंतर अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। शासन की तरफ से उन्हें राजीव गांधी भूमिहीन कृषक मजदूर न्याय योजना के तहत लाभ दिया जा रहा है।दंतेवाड़ा से हुई थी शुरुआतदरअसल, ग्रामीणों की आस्था का केंद्र देवगुड़ी के संरक्षण और जीर्णोद्धार की शुरुआत दंतेवाड़ा जिले से हुई थी। तात्कालीन कलेक्टर दीपक सोनी की पहल से जिले के चुनिंदा कुछ देवगुड़ियों का कायाकल्प किया गया था। जिसका रिस्पॉन्स ग्रामीणों की तरफ से अच्छा मिला था। जिसके बाद दंतेवाड़ा को मॉडल के रूप में लेकर संभाग के सातों जिलों में देवगुड़ियों के संरक्षण की योजना बनाई गई थी। वहीं अब 6318 सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजा जाएगा।पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।पर्यटन को मिलेगा बढ़ावासरकार की मंशा है कि बाहर से कोई भी पर्यटक यदि बस्तर घूमने आएं तो वे यहां की प्राकृतिक खूबसूरती देखने के साथ-साथ यहां की संस्कृति से भी रूबरू होएं। जिससे बस्तर की संस्कृति को लोग करीब से जाने।
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