नई दिल्ली: 2016 में 60% केस एक साल में निपटाए थे, अब 20% भी नहीं निपट रहे हैं। देश में 2012 में लागू हुआ पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस) एक्ट भी ज्यादातर राज्यों में बच्चों को समय पर इंसाफ नहीं दिला पा रहा है। वजहें कई हैं, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यौन शोषण के मामलों में सजा पाने वाले दोषियों से तीन गुना ज्यादा संख्या बरी होने वालों की है। यानी, अगर किसी एक मामले में आरोपी दोषी ठहराया जाता है तो तीन मामलों में आरोपी बरी हो रहे हैं।यह बात विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की उस स्टडी में सामने आई है, जो उसने वर्ल्ड बैंक की संस्था के साथ मिलकर की है। स्टडी में 28 राज्यों की 408 पॉक्सो फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहे 2.31 लाख मुकदमों को शामिल किया गया है। इनमें सामने आया है कि कुल मामलों में से सिर्फ 14% में आरोपी दोषी ठहराए गए, जबकि 43% मामलों में आरोपी सबूतों या अन्य कानूनी पेचीदगियों के चलते बरी हो गए। 43% मामले लंबित हैं या दूसरी अदालतों में ट्रांसफर किए गए हैं।गौर करने वाली बात यह है कि मामलों के निपटारे की रफ्तार साल-दर-साल धीमी हो रही है। 2016 में 60% मामले एक साल के भीतर निपटा लिए गए थे। 2018 में यह औसत 42% रह गया। कोरोना काल में हालात और बिगड़ गए और 2020 में सिर्फ 19.7% मामले निटपाए जा सके। 2021 में भी यह औसत 20% से ज्यादा नहीं रहा है। 2022 का आकलन अभी नहीं हो पाया है। देश की पॉक्सो कोर्ट में लंबित मामले हर साल 20% से ज्यादा की दर से बढ़ रहे हैं।यूपी में सर्वाधिक 77.7% मामलों में इंसाफ पेंडिंग, तमिलनाडु में 80% केस निपटेपॉक्सो के केस निपटाने में सबसे धीमी रफ्तार यूपी में है। वहां 77.7% केस लंबित हैं। देश में सबसे ज्यादा लंबित मामलों वाले 5 जिलों में भी चार यूपी के हैं- लखनऊ, बदाऊं, प्रयाागराज और हरदोई। एक जिला हावड़ा प. बंगाल का है।देश में एक मामला निपटाने में औसतन 510 दिन (1 साल,5 महीने ) लग रहे हैं। सिर्फ चंडीगढ़ और बंगाल ही ऐसे हैं, जहां सालभर में केस निपटाए जा रहे हैं।दिल्ली में केस निपटाने का औसत समय सबसे ज्यादा 1,284 दिन (3 साल, 6 महीने) है। क्योंकि वहां 593 दिन सबूत जुटाने और पुष्ट करने में लग रहे हैं। जबकि, दूसरी ओर चंडीगढ़ में सिर्फ 179 दिन (6 महीने) में कोर्ट का फैसला आ रहा है।लंबित मामलों की लिस्ट लगातार बढ़ती जा रही है। इस पर कोरोनाकाल का असर भी पड़ता है। 2019 और 2020 में दर्ज मामलों में से 24863 केस अभी पेंडिंग हैं।आंध्र में सबसे ज्यादा आरोपी बरी हो रहे हैं… केरल में सबसे कमस्टडी में सामने आया है कि आंध्र प्रदेश में पॉक्सो एक्ट के सबसे ज्यादा आरोपी बरी हो रहे हैं। वहां एक मामले में आरोपी दोषी ठहराया जाता है तो सात मामलों में आरोपी बरी हो रहे हैं। यानी, बरी होने वाले आरोपियों का औसत दोषी ठहराए जाने वाले आरोपियों से 7 गुना ज्यादा है। दूसरे नंबर पर प. बंगाल हैं, जहां यह औसत 5 गुना है। दूसरी ओर, केरल की स्थिति बिल्कुल उलट है। वहां औसत सिर्फ एक है। यानी एक मामले में सजा होती है तो दूसरे मामले में आरोपी बरी हो रहा है।केरल में न्याय मिलने की गति इसलिए तेज है, क्योंकि वहां पीड़ित को मददगार दिया जाता है। देश के 94% मामलों में ऐसा नहीं हो रहा।बच्चों के यौन शोषण के 94% आरोपी परिचित ही पाए गए2012 से 2021 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो बच्चों के यौन शोषण के मामलों में 94 आरोपी पीड़ित या उसके परिवार के परिचित ही होते हैं। बच्चियों की यौन शोषण के मुकदमों पर नजर डालें तो 48.66% आरोपी परििचत ही पाए गए हैं। वे या तो बच्ची के दोस्त थे या उनकी पहचान के। 3.7% मामलों में तो आरोपी परिवार के का ही कोई सदस्य था। सिर्फ 6% मामलों में आरोपी ने वारदात से पहले बच्ची या बच्चे को कभी नहीं देखा था।स्टडी में यह बात भी सामने आई है कि जिन बच्चों का यौन शोषण हुआ है, उनमें से 24% पीड़ित घटना के समय 15 साल से कम उम्र के थे। जबकि, आरोपी बालिग थे।लेटलतीफी की एक वजह यह भी… एनसीआरबी की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के यौनशोषण के 42% मामलों में पुलिस की जांच एक साल तक पूरी नहीं हो पाई थी। इसलिए अदालती कार्यवाही शुरू ही नहीं हो पाई। जबकि, पॉक्सो एक्ट के तहत वारदात से कोर्ट के फैसले तक के लिए एक साल की अधिकतम अवधि तय की गई है।पुलिस की चार्जशीट में छोड़ी गईं खामियां ही दोषियों को बचा रहींसुप्रीम कोर्ट की सीनियर लॉयर आभा सिंह का कहना है- पॉक्सो में दोष सिद्धि (कनविकशन रेट) काफी कम हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण पुलिस की कमजोर चार्जशीट है। दरअसल, पुलिस मौके से फॉरेंसिक एविडेंस लेने में लापरवाही बरतती है। पीड़ित के बयानों को भी ढंग से नहीं लिया जाता। कई बार तो पुलिस पीड़ित के अभिभावकों के बयान लेकर ही खानापूर्ति कर लेती है।लंबे समय तक मामला खिंचने के कारण गवाह कोर्ट में बयानों से पलट जाते हैं। पॉक्सो फास्ट ट्रैक कोर्ट और बढ़ाए जाने चाहिए। सबसे अहम बात यह कि पीड़ित बच्चे की पुलिस बयान से पहले अच्छे ढंग से काउंसिलिंग होनी चाहिए, जो कि अभी देश में बहुत कम होती है। दरअसल, जो मामला चर्चित होता है, सिर्फ उस पर फोकस रहता है। बाकी मामले ठंडे बस्तों में रह जाते हैं।
Breaking