नई दिल्ली । पंजाब और हरियाणा में इस मौसम में पराली जलाने की घटनाओं की संख्या 2016 के बाद सबसे कम रही इतना ही नहीं दिल्ली में अक्टूबर-नवंबर के दौरान चार वर्षों में पराली जलाने से उत्पन्न धुआं सबसे कम देखा गया।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान एजेंसी ‘सफर के आंकड़ों के विश्लेषण से साफ होता हैं कि 12 अक्टूबर से पराली जलाने से उत्पन्न धुएं की वजह से प्रदूषक कणों-पीएम 2.5 ने इस साल 53 दिन तक वायु प्रदूषण में योगदान दिया। यह आंकड़ा पिछले तीन वर्षों की तुलना में कम है जब 56-57 दिन तक पराली जलाने की वजह से हानिकारक धुंध होती थी लेकिन यह 2018 के 48 दिनों के आंकड़े से अधिक है।
पराली जलाने से धुएं का वायु प्रदूषण में योगदान साल 2022 सबसे ज्यादा तीन नवंबर को 34 फीसदी था वहीं पिछले साल यह सात नवंबर को सर्वाधिक 48 फीसदी था। सीएसई ने कहा कि पराली जलाने से संबंधित धुएं में कमी दिल्ली में दो प्रमुख कारकों पर निर्भर करती है पराली जलाने की घटनाओं की संख्या एवं तीव्रता तथा राष्ट्रीय राजधानी में धुएं के परिवहन के लिए अनुकूल मौसम स्थितियां। इसने कहा कि इस साल अक्टूबर-नवंबर में न केवल पराली जलाने की घटनाओं की संख्या और तीव्रता तुलनात्मक रूप से कम रही बल्कि धुएं के परिवहन के लिए मौसम संबंधी परिस्थितियां भी कम अनुकूल रहीं।