पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सख्त फैसलों के लिए जाने जाते हैं। कठिन से कठिन मसलों पर भी वे फैसले लेने में चूकते और हिचकते नहीं हैं। लेकिन, उन्होंने अब खुद बताया है कि एक बड़ा फैसला लेने के लिए उन्हें कितना लंबा इंतजार करना पड़ा। उन्होंने खुद बताया कि पुरानी सरकार का हाल देखकर वे चाहते हुए भी इस दिशा में कदम आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे। बिहार में अपनी सरकार बनने के बाद यह फैसला लेने के लिए उन्होंने लंबा इंतजार किया। और यह फैसला भी तब लिया, जब पटना में एक कार्यक्रम के दौरान कुछ महिलाओं ने उनके सामने ही हंगामा शुरू कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने अपनी वर्षों की इच्छा पूरी करते हुए फैसला तो लिया, लेकिन इसके लिए भी उन्हें कितना संभलकर कदम आगे बढ़ाना पड़ा। उन्होंने बताया कि ऐसे ही फैसले के बाद बिहार में कर्पूरी ठाकुर की सरकार गिर गई थी।
सार्वजनिक मंच पर मुख्यमंत्री ने जताई अपनी पीड़ा
नीतीश कुमार आजकल समाज सुधार अभियान चला रहे हैं। इस अभियान के तहत उन्होंने राज्य के हर प्रमंडल में यात्रा करने का सिलसिला शुरू किया है। वे अपनी इस यात्रा के क्रम में जीविका दीदियों के साथ संवाद करते हैं और अधिकारियों के साथ बैठक कर शराबबंदी, दहेज उन्मूलन और बाल विवाह निषेध जैसे मसलों पर बात करते हैं। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री ने मुजफ्फरपुर में अपनी ये पीड़ा सार्वजनिक की। उन्होंने बताया कि वे कभी भी शराब के पक्षधर नहीं रहे। लेकिन, कर्पूरी ठाकुर सरकार का हश्र देखकर उन्हें सोचना पड़ता था। लगता था कि कहीं कोई गड़बड़ नहीं कर दे
दो-ढाई साल में ही गिर गई थी कर्पूरी की सरकार
तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने पहले भी बिहार में शराबबंदी लागू की थी। 1977 में कर्पूरी ठाकुर ने यह फैसला लिया, लेकिन दो-ढाई साल में ही उनकी सरकार गिर गई। बाद में शराबबंदी का फैसला भी सरकार ने वापस ले लिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि 2011 से ही वे शराब के खिलाफ अभियान चला रहे थे। 2015 में जब उनकी सभा में जीविका समूह की दीदियों ने शराबबंदी की मांग उठाई, तो उन्होंने इस राह पर चलने का फैसला कर लिया। नौ जुलाई 2015 को उन्होंने जीविका दीदियों के सामने ही शराबबंदी का वादा किया और 2015 में ही नवंबर महीने से इसके खिलाफ जागरुकता अभियान की शुरुआत करा दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि एक अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागू कर दी गई। लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, शहर में तो उतना अधिक अभियान चलाया नहीं गया, यह सोचकर शुरू में केवल गांवों में ही पूर्ण शराबबंदी लागू की गई। एक अप्रैल को तय किया गया कि शहरी इलाके में विदेशी शराब बिकती रहेगी। लेकिन, शराबबंदी को जिस तरह लोगों का साथ मिला, पांच अप्रैल 2016 को ही पूरे राज्य में शराब को पूरी तरह बंद कर दिया गया
बिहार में 2021 का अंत शराबबंदी के खिलाफ सबसे बड़े अभियान के साथ हो रहा है। बिहार में शराबबंदी को लेकर साल के आखिरी महीनों में सबसे तीखी चर्चा हुई है। इसमें सरकार के बयान, विपक्ष के आरोप और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी तक शामिल है।