इंदौर। हिंदू धर्म में सूर्य देव को सर्वशक्तिमान माना गया है और सभी ग्रहों का स्वामी भी कहा गया है। भारतीय ज्योतिष के मुताबिक, सूर्य देव जब भी एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे संक्रांति पर्व कहा जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, अक्टूबर माह में सूर्यदेव जब कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करेंगे, उस दिन तुला संक्रांति मनाई जाएगी। इस साल तुला संक्रांति 18 अक्टूबर 2023 को मनाई जाएगी। इस दिन अश्विन माह की विनायक चतुर्थी भी है। इसके अलावा तुला संक्रांति के दिन ही शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन भी रहेगा और मां कूष्मांडा की आराधना होगी। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, इन सभी कारणों से तुला संक्रांति इस बार काफी शुभ और फलदायी होगी।
तुला संक्रांति का मुहूर्त काल
तुला संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त सुबह 06:23 बजे से शुरू होगा, जो दोपहर में 12:06 बजे के करीब समाप्त होगा। वहीं तुला संक्रान्ति महा पुण्य काल सुबह 06:23 बजे शुरू होगा, जो रात 08:18 बजे के करीब खत्म होगा।
हिंदू धर्म में तुला संक्रांति का पौराणिक महत्व
पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, तुला संक्रांति के महत्व का उल्लेख ऋग्वेद के साथ-साथ पद्म पुराण, स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। सात ही महाभारत में भी सूर्य पूजा का विस्तार से उल्लेख किया गया है। धार्मिक मान्यता है कि सूर्य देव की पूजा से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और भक्तों की इच्छा शक्ति दृढ़ होती है। तुला संक्रांति पर भगवान सूर्य की विधि-विधान के साथ आराधना करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
किसानों का पर्व है तुला संक्रांति
जिस प्रकार जनवरी माह में मकर संक्रांति पर्व का विशेष महत्व है, वैसे ही ओडिशा और कर्नाटक में तुला संक्रांति पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह किसानों के पर्व के रूप में मनाया जाता है। तुला संक्रांति को किसान चावल की फसल आने की खुशी के रूप में मनाते हैं। तुला संक्रांति को तुला संक्रमण भी कहा जाता है। कर्नाटक में कावेरी नदी के तट पर मेला लगता है।
डिसक्लेमर
‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’