इंदौर। सनातन धर्म में आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा के अमृत बरसता है। साथ ही देवी लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन धर्मग्रंथों में शरद पूर्णिमा का संबंध भगवान कृष्ण के साथ ही बताया गया है। पंडित आशीष शर्मा के मुताबिक, शरद पूर्णिमा की रात में ही भगवान कृष्ण ने गोपियों के संग में रास रचाया था और कामदेव का घमंड चूर-चूर किया था। यहां जानें क्या है इसको लेकर धार्मिक मान्यता।
शरद पूर्णिमा के ये नाम भी चर्चित
सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आश्विन मास की इस पूर्णिमा को चंद्र देवता और देवी लक्ष्मी के साथ भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा की जाती है। हिंदू मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्री कृष्ण ने महारास लीला रचाई थी और कामदेव का घमंड तोड़ा था। पौराणिक मान्यता है कि कामदेव को एक बार खुद की शक्तियों पर अत्यधिक घमंड हो गया कि वे किसी को भी काम के प्रति आसक्त कर सकते हैं। कामदेव में यह अभिमान तब आया, जब उन्होंने अपना कामबाण महादेव पर चलाकर माता पार्वती की ओर आकर्षित कराया था। अब उनके अभिमान की बात भगवान कृष्ण को पता चली तो उन्होंने कामदेव का घमंड तोड़ने के लिए वृंदावन में सभी गोपियों के साथ महारास लीला बुलाई।
शरद पूर्णिमा की रात में हुई थी महा रामलीला
पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को कान्हा ने कई रूप रखकर गोपियों के साथ में अलग-अलग नृत्य किया था। लेकिन कामदेव की लाख कोशिश के बाद भी किसी भी गोपी के मन में वासना के भाव नहीं आए। इससे कामदेव का घमंड टूट गया। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात को ब्रह्म रात के बराबर कर दिया था। पौराणिक मान्यता है कि बह्म रात पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों की करोड़ों रात के बराबर होती है।
पूर्णिमा की रात को ऐसे करें भगवान कृष्ण को प्रसन्न
शरद पूर्णिमा की रात को भगवान श्रीकृष्ण की गोपियों संग विधि-विधान पूजा करना चाहिए और मंत्र जाप करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शरद पूर्णिमा की रात को वैजयंती की माला से ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री’ मंत्र का जाप करना चाहिए।
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