इंदौर। होलकर शासनकाल के दौर में शहर में शारदीय नवरात्र और शरद पूर्णिमा उत्सव कुल परंपरा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तिथि तक होलकर राजवंश द्वारा अपनी कुलदेवी जानाई देवी और कुलदेवता मल्हारी मार्तंड का नवरात्र उत्सव मनाया जाता था। 15 दिनी इस उत्सव की पूर्णाहुति शरद पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) पर होती थी।
नवरात्र में गोंधळ का आयोजन होलकर राज परिवार द्वारा कराया जाता था। कोजागरी पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के पूर्व होलकर महाराज अपने पूरे राज परिवार के साथ उपस्थित होकर कुलदेवता और कुलदेवी का पूजन करते थे। स्थापित घट का उद्यापन किया जाता था और कुलदेवता व कुलदेवी की तळी आरती की जाती थी। इसके बाद बलि प्रथा निभाकर प्रजा को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता था।
सूर्यास्त के समय साधु-संतों सहित विशेष दरबार आयोजित किया जाता था। इसमें नागा साधु, गोसावी आदि अतिथियों का सत्कार किया जाता था। उन्हें विशेष रूप से बिदागरी, वस्त्र और स्वर्णालंकार भेंट कर पान-सुपारी और इत्र दिया जाता था। दरबार समाप्ति के बाद पंच भैया होलकर जानाई देवी की आरती करते और महाराज व महारानी इंद्र, लक्ष्मी व चंद्रमा का पूजन करते थे।
इसके लिए लकड़ी के एक बड़े पटिए पर चावल से हाथी की आकृति बनाई जाती थी और इंद्र के हाथी ऐरावत के रूप में पूजा की जाती थी। इसमें महाराज के गले में गेठा (कौड़ी की माला) और भंडारी (हिरण की खाल से बना बटवा जिसमें हल्दी भरी रहती है) को पहनाकर यह पूजन किया जाता था। इसके बाद पांच सुहागन महिलाएं महाराज की आरती उतारती और उसके बाद वे महाराज के मस्तक पर बड़ा सा हीरा लगाकर उनकी नजर उतारती थी।
इस अवसर पर सौभाग्यवती महारानी प्रत्येक सुहागन को उपहार स्वरूप साड़ी भेंट करती थी। कोजागरी पूर्णिमा के दिन सुबह इंदौर के आसपास के गांव से चार मन (एक मन अर्थात 40 किलो) ताजा दूध एकत्रित करके लाया जाता था। यह दूध पूजन के बाद चांदी के गिलास में परोसकर साधु-संत और आमंत्रित अतिथियों को दिया जाता था।
– सुनील मतकर, (इतिहासकार डा. गणेश मतकर के संग्रह से)