जबलपुर। संस्कारधानी जबलपुर के उपनगरीय क्षेत्र अधारताल में स्थित श्री मां महालक्ष्मी शक्तिपीठ, पचमठा मंदिर कई मायनों में अनूठा है। यहां हर सुबह सूर्य की पहली किरण धनदेवी के श्रीचरणों के बाद मुखमंडल पर पड़ती है। इसी के साथ पाषाण विग्रह का चेहरा स्वर्णिम-आभा से प्रदीप्त हो जाता है। इस दौरान कुछ पल के लिए ऐसा आभास होता है मानो मां महालक्ष्मी सोने की हो गई हैं।
कल्चुरीकालीन मंदिर का इतिहास 1100 वर्ष प्राचीन है
मुख्य पुजारी कपिल गर्ग महाराज ने बताया कि इस कल्चुरीकालीन मंदिर का इतिहास 1100 वर्ष प्राचीन है। इसका निर्माण विशाल श्रीयंत्र पर आधृत है। अष्टदल कमल, द्वादश राशि व नवग्रह के साथ गर्भगृह में महालक्ष्मी विराजित हैं। गर्भगृह से बाहरी हिस्से तक की लंबाई 60 फुट है। यहां भक्तों की श्रद्धा के कारण विगत 25 वर्ष से अखंड-ज्योति निर्बाध जाज्वल्यमान है। अपनी मनोकामनाएं निवेदित करते हुए रक्षासूत्र से बंधा नारियल रखने की प्रथा है। मान्यता है कि जो भी भक्त पूर्ण मनोयोग से आस्थापूर्वक सात शुक्रवार यहां हाजिरी देता है, उसे मनोवांछित उपलब्धि हो जाती है।
दीपावली के उपलक्ष्य में 24 घंटे विशेष पूजन की परंपरा
दीपावली के उपलक्ष्य में इस मंदिर में 24 घंटे पूजन की परंपरा है। दीपावली के दिन ब्रह्म मुर्हूत से विशेष अनुष्ठान का श्रीगणेश होता है जो अगले दिन प्रात: पांच बजे तक अनवरत चलता है। इसके अलावा वर्ष भर प्रति शुक्रवार विशेष पूजन होता है। कई भक्त प्रति शुक्रवार आते हैं, जबकि कई दीपावली वाले विशेष-पूजन का हिस्सा बनकर अपने भाग्योदय का जतन करने से नहीं चूकते।
श्वेत, स्वर्णिम व नीलवर्ण रंगत के साथ होते हैं दर्शन
क्षेत्रीय भक्त आेमशंकर विनय पांडे ने बताया कि श्री मां महालक्ष्मी शक्तिपीठ, पचमठा मंदिर के मूल विग्रह की सबसे बड़ी विशेषता कभी श्वेत, कभी स्वर्णिम व कभी नीलवर्ण में दर्शन देना है। आशय यह कि महालक्ष्मी का विग्रह सूर्योदय के कुछ समय बाद सफेदी लिए दृष्टिगोचर होता है, तो अपराह्न बेला में स्वर्णिम प्रतीत होने लगता है जबकि संध्याकाल में नीलिमा लिए नजर आने लगता है। कई धन्यभागी निरंतर आने वाले भक्तों को समय-समय पर मां के इन विविध रूपों के दर्शन हुए हैं।
सत्यनारायण मंदिर कमानिया गेट, जहां दीपावली में लगते हैं 56 भोग
संस्कारधानी के व्यस्ततम व्यापारिक क्षेत्र कमानिया गेट पर स्थित सत्यनारायण मंदिर में भगवान सत्यनारायण के साथ मां लक्ष्मी विराजमान हैं। अन्नकूट के अलावा दीपावली के उपलक्ष्य में यहां 56 भोग अर्पित किए जाने की परंपरा है। पंडित राकेश मिश्रा ने बताया कि शरदपूर्णिमा के अवसर पर अमृतमयी खीर का प्रसाद पाने भक्तों का तांता लगा रहता है।