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क्यों मनाई जाती है गणाधिप संकष्टी चतुर्थी, यहां पढ़िए शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

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इंदौर। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है, क्योंकि हर शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इस तरह सारे काम बिना किसी रुकावट के पूरे हो जाते हैं। इस वर्ष गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 30 नवंबर, गुरुवार को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही जीवन में आने वाले कष्ट और परेशानियां दूर हो जाती हैं। इसलिए भक्त भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करते हैं।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि गुरुवार 30 नवंबर को रात्रि 2 बजकर 24 मिनट पर प्रारंभ हो रही है। यह अगले दिन शुक्रवार 1 दिसंबर को दोपहर 3.31 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, 30 नवंबर को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाएगा।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में नल नाम का एक राजा था, जो अन्य राजाओं में सर्वश्रेष्ठ राजा था। उनकी पत्नी का नाम दमयंती था, जो अत्यंत सुंदर थी। राजा नल ने एक बार जुआ खेला और सब कुछ हार गए। अतः उसे अपना सम्पूर्ण राज्य गंवाना पड़ा। तदनन्तर राजा अपनी रानी के साथ वन में चले गए। एक श्राप के कारण राजा को अपनी पत्नी से भी वियोग सहना पड़ा।

इसी दौरान दमयंती को वन में शरभंग महर्षि के दर्शन हुए। उसने हाथ जोड़कर ऋषि से प्रार्थना की, कि वह उसे अपने पति से मिलाने का कोई उपाय बताएं। तब शरभंग ऋषि ने कहा कि तुम्हें भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए और व्रत करना चाहिए। यदि तुम श्रद्धापूर्वक भगवान गणेश का व्रत करोगी, तो तुम्हें अपना पति वापस मिल जाएगा। दमयंती ने ऋषि ने जैसा कहा था, वैसा ही किया और इस व्रत के प्रभाव से दमयंती को अपना पति मिल गया। इसके अलावा, इस व्रत के प्रभाव से नल को अपना राज्य भी वापस प्राप्त हुआ।

डिसक्लेमर

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

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