ग्वालियर। सुर के महान साधक व तपस्वी संगीतम सम्राट तानसेन के जन्म व पालन पोषण को लेकर कई किदवंतियां प्रचलित हैं। इन किदवंतियों के बीच संगीत की दुनिया के मुर्धन्य लोग यह मानते हैं कि मिया तानसेन का जन्म ग्वालियर जिले के छोटे से कस्बे बेहट में हुआ था। इसलिए संगीतधानी संगीत के साधक इस पावन और पवित्र भूमि को तीर्थस्थल मानते हैं। यहां की रज को वृंदावन की तरह माथे पर सजाकर गौरवांवित महसूस करते हैं।बेहट गांव में तानसेन की जन्मस्थली के रूप में प्रतीक चिन्ह के रूप में भगवान भोले का छोटा सा मंदिर है। माना जाता है कि यह मंदिर मिया तानसेन की अलाप से टेड़ हो गया था। यह मंदिर उसी स्वरूप में अाज भी विद्यमान है। तानसेन समारोह की अंतिम संगीत सभा तानसेन की इसी तपोभूमि होती है। जहां देश के जाने-माने संगीतज्ञ अपने सुरों से मिया तानसेन को सुरांजलि अर्पित कर स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं।
बेहट गांव में हुआ था तानसेन का जन्म
45 किलोमीटर की दूरी पर है तानसेन की तपोस्थली- ग्वालियर जिले से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेहट गांव है। इसी गांव से निकली झिलमिल नदी के किनारे पर भगवान शिव का मंदिर है। जो कि संगीत सम्राट तानसेन की साधना स्थली का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसी गांव में मिया तानसेन का जन्म हुआ था। तानसेन का असली नाम तनसुख उर्फ त्रिलोचन था, लेकिन गांव के साथी उन्हें तन्ना के नाम से बुलाते थे जो कालांतर में तानसेन के नाम से प्रचलित हो गया. तानसेन को बचपन से ही संगीत का बेहद शौक था।
तानसेन रोजाना चढाते थे शिवलिंग पर दूध
किदवंती है कि तानसेन बचपन से बकरियां चराते थे और रोज बकरी का दूध झिलमिल नदी के किनारे बने इस भगवान भोलेनाथ के मंदिर पर चढ़ाते थे और इसी मंदिर पर बैठकर वह स्वर साधना करते थे. इसके साथ ही वह ज्यादातर समय इसी मंदिर पर बिताते थे. एक बार तानसेन भगवान शिव पर दूध चढ़ाना भूल गए, लेकिन जब शाम को खाना खाते समय उन्हें याद आया तो अपना खाना छोड़कर सीधे दूध चढ़ाने के लिए मंदिर की ओर निकल पड़े. इस दौरान झमाझम बारिश में जब वह मंदिर पहुंचे और शिवलिंग पर दूध अर्पित किया और साधना शुरु कर दी।
मियां तानसेन के अलाप मंदिर टेढ़ा हो हो गया
कि भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद के बाद तानसेन ने अपनी संगीत साधना के दौरान ऐसा अलाप लगाया कि यह मंदिर ही टेढ़ा हो गया. इसके बाद उनकी संगीत की ख्याति लगातार बढ़ती गई और उनके पिता तानसेन को लेकर ग्वालियर में मोहम्मद गौस के पास पहुंचे, उन्हें पूरा हाल बताया तो उन्होंने उसे वहीं रखकर संगीत की शिक्षा देना शुरू कर दी. बाद में उन्होंने वृंदावन में हरिदास महाराज से शास्त्रीय संगीत के गुर सीखे. इसके बाद तानसेन ने मानसिंह के दरबार के मुख्य संगीतज्ञ बैजू बावरा से भी शिक्षा ली और धीरे-धीरे तानसेन पूरी दुनिया में स्वर के सम्राट बन गए. कहते हैं कि जब तानसेन संगीत की अलाप लगाते थे उस दौरान भरी गर्मी में भी बारिश होने लगती थी और जंगल में सभी पशु और पक्षी उनके संगीत को सुनने के लिए उनके पास जमा हो जाते थे। अकबर के नौ रत्नों में मिया तानसेन शामिल थे।