, इंदौर। हुकमचंद मिल के मजदूरों को दी जाने वाली मुआवजे की रकम परिसमापक के खाते में पहुंच चुकी है। इस रकम को मजदूरों के खाते तक पहुंचने में 15 दिन से एक माह तक का समय लगेगा। मजदूर नेताओं का कहना है कि वे इसी सप्ताह से हुकमचंद मिल परिसर में शिविर लगाकर मजदूरों के फार्म लेना शुरू कर देंगे। अच्छी बात यह है कि इस बार मजदूरों को खाते के सत्यापन के लिए कोई रकम नहीं देना होगी।
पिछली बार वर्ष 2017 में जब सरकार ने मजदूरों के पक्ष में 50 करोड़ रुपये की रकम जारी की थी, उस वक्त खातों के सत्यापन के लिए प्रत्येक मजदूर से दो-दो हजार रुपये लिए गए थे। हुकमचंद मिल बंद होते वक्त मिल में 5895 मजदूर काम करते थे। इन सभी ने सत्यापन के लिए दो-दो हजार रुपये दिए थे। इस हिसाब से देखा जाए तो वर्ष 2017 में ही मजदूरों से करीब एक करोड़ 10 लाख रुपये से ज्यादा खाता सत्यापन के नाम पर लिए जा चुके हैं। मजदूरों को इस बार यह राशि नहीं देना होगी। मजदूर नेता नरेंद्र श्रीवंश ने इस बात की पुष्टि भी की है।
मजदूर बनाने लगे योजना
मजदूरों का कहना है कि 32 वर्ष में बहुत कुछ बदल चुका है। तीन दशक में संपत्ति की कीमतों में आठ से दस गुना का उछाल आ चुका है। मुआवजे की रकम मिल बंद होते वक्त मिलती तो बात कुछ ओर होती। हालांकि उन्हें इस बात की खुशी भी है कि भले ही देर से सही लेकिन उन्हें मुआवजा मिला तो सही। वर्ष 2015 के आसपास जब मिल की जमीन को लेकर शासन और नगर निगम में विवाद खड़ा हुआ था उस वक्त तो उन्होंने मुआवजा मिलने की उम्मींद ही छोड़ दी थी।
वे निराशा से घीरे हुए थे लेकिन इस बीच वर्ष 2016 के अंत में हाई कोर्ट ने शासन को मिल के मजदूरों के पक्ष में 50 करोड़ रुपये जारी करने के आदेश दे दिए। कोर्ट के आदेश से मिली इस रकम ने मजदूरों के लिए संजीवनी का काम किया और वे दोगुने जोश के साथ अपने हक की लड़ाई में जुट गए।