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काशी के मंदिर में गाया गाना, कभी योगी के खिलाफ लड़ा चुनाव, भोजपुरी सिनेमा को इस कलाकार ने दी नई पहचान

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मनोज तिवारी का जब जिक्र आता है तो दिमाग में उस इंसान की कई अलग-अलग छवियां आने लगती हैं. कभी वो हाथ में माइक लिए अपनी मधुर आवाज से लोगों को बहला रहा होता है, कभी वो अपने चुलबुले अंदाज और ऑनस्क्रीन रोमांस से फैंस की वाहवाही लूट रहा होता है, कभी क्रिकेट के मैदान पर अपनी चपलता से लोगों को चकित कर रहा होता है तो कभी वे राजनीतिक बयानों की वजह से भी चर्चा का विषय बनता है. विषय चाहें जो भी हो उसमें मनोज तिवारी जरूर होते हैं. चर्चित वयक्ति हैं और फिलहाल बीजेपी की तरफ से लोकसभा सांसद हैं. मनोज तिवारी आज एक बड़े मुकाम पर हैं और उनके करोड़ों चाहनेवाले हैं. लेकिन ये मनोज तिवारी की शख्सित का ही आकर्षण है कि कई बार अपने बयानों की वजह से घेराव में आने के बाद भी उन्हें जनता पसंद करती है. आइये इतिहास की तरफ कदम बढ़ाते हैं और जानते हैं कि मनोज तिवारी की कामियाबी की शुरुआत कहां से हुई.

मनोज तिवारी का जन्म 1 फरवरी 1971 को बनारस के कबीर नगर चौराहा कॉलोनी में हुआ था. वे 54 साल के हो गए हैं. बचपन से ही कला में रुचि थी और वे कम उम्र से ही स्टेज शोज करने लग गए थे. कभी वे रामलीला में महिलाओं के कैरेक्टर प्ले करते थे. तो कभी प्लेज डायरेक्ट करने लग जाते थे. तो कभी बैठे-बैठे गानों की लिरिक्स ही लिखने लग जाते थे. भगवान ने उनके अंदर हुनर अदरक की तरह कूट-कूटकर भरा था. और जिस पर भगवान की कृपा हो उसका तो कोई बाल भी बाका नहीं कर सकता है. उनकी किस्मत भी एक भक्ति एल्बम से बदली. साल 1991 में मनोज तिवारी को बनारस में गंगा आरती में परफॉर्म करने के लिए बुलाया गया था. ये उनके लिए एक बड़ा अवसर था. वे अब तक छोटी-मोटी स्टेज परफॉर्मेस करके गुजारा कर रहे थे लेकिन इससे काम चल नहीं पा रहा था. मुफलिसी उनका दामन नहीं छोड़ रही थी और वे देव नगरी में मां सरस्वति का आशीर्वाद लिए अपने करियर की सीढ़ियां चढ़ने शुरू कर चुके थे. साल 1991 के बाद उन्हें कुछ अच्छे शोज मिलने लग गए थे. उनका नाम होने लगा था.

साल 1995 में उन्होंने एक एल्बम निकाला जिसका नाम था शीतला घाट पे काशी में. उनका ये एल्बम बहुत सराहा गया और इसका गीत बाड़ी शेर पे सवार खूब पॉपुलर हो गया. उस समय हर आदमी की जुबां पर बस यही भक्ति गीत रहता था और इस गीत ने मनोज तिवारी को खूब पहचान दिलाई. इसके बाद तो उनके भक्ति गीत खूब चले. भक्ति गीतों के अलावा भी उन्होंने कई गाने गाए जो लोगों को रास आए.

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अभिनय से भी किया कमाल

एक गायक के तौर पर तो मनोज तिवारी मशहूर हो चुके थे लेकिन एक एक्टर के तौर पर अभी उनका उदय होना बाकी था. और उनके उदय के साथ ही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का भी उदय होना था. साल 2003 का वो साल जब मनोज तिवारी की फिल्म ससुरा बड़ा पैसावाला रिलीज हुई. इस फिल्म को लोगों ने खूब देखा. मनोज तिवारी इसके बाद हर तरफ छा गए और भोजपुरी इंडस्ट्री उनके नाम से पहचानी जाने लगी.

तनि तान खींच के तानसेन कहलावो हो भैया…

मनोज तिवारी भोजपुरी इंडस्ट्री को आज भी रिप्रेजेंट करते हैं और निसंदेह सबसे बड़े स्टार हैं. उनके टैलेंट का उपयोग बॉलीवुड ने भी किया. अनुराग कश्यप ने अपनी फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में मनोज तिवारी से गाना गवाया. गाने का नाम था जियो हो बिहार के लाला. इस बिहार के लाल का ये गाना सुपरहिट साबित हुआ और इस गाने ने बिहार की सभ्यता-संस्कृति की एक झलक दर्शकों के सामने रखी. कभी-कभी एक गाना भी वो काम कर देता है जो बड़ी-बड़ी फिल्में नहीं कर पाती. खायर ये तो एक बड़ी फिल्म का बड़ा गाना था.

सौ रास्ते, एक तेरी राह नहीं…

भारत में खासकर की यूपी में पैदा हुआ घर का हर एक बेटा जब होश संभालता है तो या तो वो एक्टर बनना चाहता है या तो क्रिकेटर. मनोज के साथ ये था कि वे बनना क्रिकेटर चाहते थे लेकिन बन गए एक्टर और सिंगर. इस बात का मलाल उन्हें आज भी रहता है. उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान इसपर बात करते हुए कहा था कि वे बचपन से ही एक क्रिकेटर बनना चाहते थे और देश के लिए खेलना चाहते थे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. आज वे लीग्स में खेलते हैं और उनके क्रिकेट की भी लोग सराहना करते हैं.

राजनीति के कमल पर हुए सवार

मनोज तिवारी ने अपनी पॉपुलैरिटी को देखते हुए राजनीति में कदम रखा. सबसे पहले उन्होंने गोरखपुर से समाजवादी पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ा था. इस दौरान उनके खिलाफ यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ खड़े थे. इस दौरान मनोज तिवारी चुनाव हार गए थे. इसके बाद उन्होंने साल 2014 में बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. मौजूदा समय में वे बीजेपी के लोकसभा सदस्य हैं.

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