किसानों का आंदोलन एक बार फिर दिल्ली कूच करने पर आमादा है. किसान एमएसपी पर स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की मांग कर रहे हैं. विपक्षी दलों ने भी किसानों की मांग का समर्थन कर दिया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि अगर भविष्य में महागठबंधन की सरकार बनती है तो किसानों की एमएसपी की मांग पूरी की जायेगी. लेकिन साल 2010 में जब यूपीए की सरकार थी तब एमएसपी पर स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने से खारिज कर दिया गया था.
साल 2010 में राज्यसभा में इस बाबत हुआ एक सवाल-जवाब इस तथ्य की पुष्टि करता है. 16 अप्रैल को एमसपी पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लेकर राज्यसभा सांसद और बीजेपी नेता प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्री से सवाल किया था. उनका सवाल था क्या सरकार ने किसानों को भुगतान किए जाने वाले लाभकारी मूल्यों की गणना के संबंध में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है? यदि हां, तो इस संबंध में ब्यौरा क्या है; और यदि नहीं तो इसके क्या कारण हैं?
एमएसपी पर यूपीए सरकार ने दिया था जवाब
प्रकाश जावड़ेकर के इस प्रश्न के उत्तर में कृषि मंत्रालय में तत्कालीन खाद्य एवं उपभोक्ता मामले तथा सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्र केवी थॉमस ने जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय किसान आयोग ने सिफारिश की है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन की औसत लागत से कम से कम 50% अधिक होना चाहिए.
थॉमस ने कहा- बाजार का संतुलन बिगड़ेगा
हालांकि इसी के साथ उन्होंने आगे ये भी कहा कि इस सिफारिश को सरकार ने स्वीकार नहीं किया है. उन्होंने इस संबंध में ये तर्क दिया था कि एमएसपी की सिफारिश कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के मापदंडों के आधार पर और साथ ही वाजिब जरूरतों के आधार पर विचार करते हुए की जाती है. तत्कालीन सरकार का ये मानना था कि लागत पर कम से कम 50% की वृद्धि निर्धारित करने से बाजार की व्यवस्था खराब हो सकती है. एमएसपी और उत्पादन लागत के बीच का संतुलन बिगड़ सकता है.