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कांग्रेस का संकट ही वो ‘बरगद’ हैं, जो आंधी से पहले खुद हो रहे किनारे या बदल रहे ठिकाना

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वाई नॉट गहलोत? वाई नॉट जितेंद्र? वाई नॉट सचिन? कांग्रेस की सेंट्रल इलेक्शन कमिशन (सीईसी) की बैठक में जब सोनिया गांधी ने तीन सवाल पूछे तो चारों तरफ सन्नाटा था. यह सन्नाटा इतना गहरा था कि सोनिया गांधी भी चुप हो गईं. जवाब सुना तो किसी सवाल पर फिर आई ही नहीं. लोकसभा चुनाव से ऐलान से पहले कांग्रेस के भीतर कई सवाल हैं, लेकिन उनका जवाब या तो है नहीं… या फिर जवाब ऐसा कागजी है जिसने सुनकर हर तरफ मुरझाई हुई मुस्कान है.

10 साल से केंद्र की सत्ता से बाहर कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव से बड़ी उम्मीदें हैं. राहुल गांधी मणिपुर से लेकर मुंबई तक सड़क नाप रहे हैं और हिंदी पट्टी में कांग्रेस को फिर से जिंदा करने की कोशिश में जुटे हैं. कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए राहुल गांधी ने सभी बड़े नेताओं को चुनाव में उतरने का इशारा किया था. हर मीटिंग में वह नेताओं से कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्रियों या मुख्यमंत्री पद की रेस वाले नेताओं को तो चुनाव लड़ना ही चाहिए.

बड़े नेता दे रहे कांग्रेस को झटका!

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राहुल गांधी को वही बड़े नेता झटका दे रहे हैं, जिनके दम पर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने का ख्वाब देख रहे हैं. मंगलवार को कांग्रेस प्रत्याशियों की लिस्ट जारी हुई है. इससे पहले सीईसी की बैठक हुई थी. इस बैठक में प्रत्याशियों पर जैसे ही मंथन शुरू हुआ तो कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूछ लिया कि बड़े नेता चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे हैं? जवाब सुनकर सोनिया गांधी भी चुप हो गईं.

किसी की तबीयत खराब, कोई चुनाव में बिजी

अशोक गहलोत की ओर से तबीयत का हवाला दिया गया तो सचिन पायलट और जितेंद्र सिंह ने प्रभारी के तौर पर बिजी होने का. सोनिया समझ गईं कि बड़े नेता चुनाव नहीं लड़ना चाहते, इसलिए चर्चा ही न हुई. पहले कमलनाथ पर चुनाव लड़ने का दबाव बनाया गया लेकिन जब वह भी राजी न हुए तो बेटे नकुलनाथ को फिर से मैदान में उतार दिया गया. यही हाल कमोबेश हर प्रदेश में है. अब तक बस भूपेश बघेल और केसी वेणुगोपाल ने चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखाई है.

उत्तराखंड की हरिद्वार सीट से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के नाम पर भी चर्चा हुई, लेकिन उन्होंने भी चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. बताया जा रहा है कि वह अपने परिवार के सदस्य के लिए टिकट चाहते हैं. गुजरात कांग्रेस के नेता भरत सिंह सोलंकी पहले ही एक्स (पूर्व ट्विटर) पर चुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. टीएस सिंहदेव भी चुनाव न लड़ने की बात कह चुके हैं. यह तो बात हो गई कि जो खुले मंच से चुनाव न लड़ने की बात कह चुके हैं, लेकिन कई तो पाला बदल रहे हैं.

जिन्हें PM मोदी के सामने लड़ना था वही BJP में शामिल

चार बार के राज्य सभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने ऐन वक्त पर पाला बदल लिया. इससे पहले वाराणसी में कांग्रेस का लंबे समय तक झंडा उठाने वाले राजेश मिश्रा भी बीजेपी में आ चुके हैं. उन्हें वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ मैदान में उतारने की रणनीति थी. बुधवार को कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार अजय कपूर भी पाला बदल रहे हैं, जिन्हें कांग्रेस कानपुर सीट से मैदान में उतारने की प्लानिंग कर रही थी.

यूपी में कांग्रेस के ‘बरगद’ जिस तेजी से पाला बदल रहे हैं, उससे पार्टी को गठबंधन में मिली 17 सीटों के लिए भी प्रत्याशी ढूंढने में नाको चने चबाने पड़ रहे हैं. यही हाल हर प्रदेश का है. कांग्रेस के बड़े नेता पार्टी छोड़ते जा रहे हैं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने भी हाल में ही पार्टी छोड़ी है. वहीं राजस्थान में लालचंद कटारिया, राजेंद्र यादव, रिछपाल मिर्धा, विजयपाल मिर्धा, खिलाड़ी बैरवा, आलोक बेनीवाल, सुरेश चौधरी भी कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं.

यानी लोकसभा चुनाव की आंधी से पहले कांग्रेस के बड़े ‘बरगद’ या तो खुद को किनारे कर रहे हैं या फिर ठिकाना बदलने में लगे हुए हैं. खैर कांग्रेस की मौजूदा हालात के लिए जिम्मेदार भी उन्हीं बरगद को माना जाता है, जो खुद विशाल होते चले गए लेकिन पार्टी सिकुड़ती चली गई. हालात यह हो गए कि बरगद के नीचे कोई पौधा पनप नहीं पाया… और पार्टी को इन बरगद से जो उम्मीद थी वह आंधी को आता देख टा-टा बाय-बाय हो चुकी है.

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