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ऐसा कैसा मुकाबला, भाजपा में प्रचार जोरों पर, कांग्रेस ने अब तैयारी ही नहीं की

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इंदौर। प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बाद अब प्रदेश में कांग्रेस भाजपा से प्रचार के मामले में भी पिछड़ती नजर आ रही है। प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी यानी इंदौर की बात करें तो यहां कांग्रेस का कोई प्रचार नजर नहीं आ रहा, जबकि भाजपा इंटरनेट मीडिया से लेकर आमने-सामने के प्रचार में बहुत आगे निकल चुकी है।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पिछले दिनों ही इंदौर में इंदौर क्लस्टर के जनप्रतिनिधियों, वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देते हुए उनकी बैठक ली, लेकिन कांग्रेस में ऐसी कोई बैठक अब तक होती नजर नहीं आई। दरअसल पार्टी का प्रचार जोर ही नहीं पकड़ पा रहा है। राष्ट्रीय स्तर का एक भी बड़ा नेता अब तक मालवा निमाड़ में नहीं आया है। ऐसे में खुद कांग्रेसी कार्यकर्ता भी समझ नहीं पा रहे कि आखिर पार्टी इस बार चुनाव को इतना हल्के में कैसे ले रही है।

वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदौर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस 5 लाख 47 हजार मतों से पराजित हुई थी। इस बार पार्टी का चुनाव प्रचार देखकर लग रहा है कि पार्टी पांच वर्ष पहले हुई हार के सदमे से अब तक बाहर नहीं निकल सकी है। पार्टी को पहले तो प्रत्याशी तय करने में मशक्कत करना पड़ी, प्रत्याशी तय हो गए तो पार्टी को कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में मशक्कत करना पड़ रही है। इस बीच पार्टी के कई बड़े नेता कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं।
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इस पलायनवादी राजनीति का सबसे ज्यादा असर पार्टी के आम कार्यकर्ता पर पड़ रहा है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि किस नेता का समर्थन करना है और किसका नहीं। इंदौर विधानसभा क्षेत्र एक की बात करें तो चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां से संजय शुक्ला को मैदान में उतारा था। वे पार्टी के कद्दावर नेता थे। उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को जोरदार टक्कर दी भी, लेकिन कुछ दिन पहले ही वे खुद कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। शुक्ला के पास जमीनी कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज थी। अपने नेता के पार्टी बदलने से ये कार्यकर्ता खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
महू में जो भी विरोधी थे वे भाजपाई हो गए
लगभग ऐसी ही स्थिति महू विधानसभा क्षेत्र में भी है। महू विधानसभा क्षेत्र धार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से उषा ठाकुर को मैदान में उतारा था, जबकि कांग्रेस ने रामकिशोर शुक्ला को। कांग्रेस से बागी होकर अंतरसिंह दरबार भी चुनाव में उतरे थे और दूसरे नंबर पर रहे थे। दरबार की वजह से रामकिशोर शुक्ला की जमानत तक जब्त हो गई थी। फिलहाल हालत यह है कि उषा ठाकुर के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले दरबार और शुक्ला दोनों भाजपा का दामन थाम चुके हैं। अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के पास कोई बड़ा नाम ही नहीं बचा।

 

देपालपुर में भी यही है स्थिति
इंदौर विधानसभा क्षेत्र एक, महू जैसी स्थिति देपालपुर विधानसभा क्षेत्र की भी है। वर्ष 2018 में यह सीट कांग्रेस के विशाल पटेल ने जीती थी। उन्होंने भाजपा के मनोज पटेल को करीब नौ हजार मतों से हराया था। चार माह पहले हुए चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर विशाल पटेल पर दाव लगाया। भाजपा ने इस बार भी मनोज पटेल को मैदान में उतारा। इस बार चुनाव में भाजपा के बागी राजेंद्र चौधरी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा भरा और 38 हजार मत भी प्राप्त किए, बावजूद इसके विशाल पटेल 15 हजार मतों से हार गए।
लोकसभा चुनाव में परिस्थिति बिलकुल अलग है। इस विधानसभा क्षेत्र के लगभग सभी बड़े कांग्रेसी नेता जिनमें विशाल पटेल खुद भी शामिल हैं, अब भाजपा का हिस्सा हो गए हैं। ऐसे में 2 लाख 28 हजार मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा ही नहीं है।
निलंबन वापस लेने के अलावा कोई चारा नहीं
विधानसभा चुनाव में पार्टी के बगावत कर चुनाव लड़ने वाले और उनकी मदद करने वालों के खिलाफ मुहिम चलाते हुए कांग्रेस ने सैकड़ों कार्यकर्ताओं और नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते हुए उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया था। अब जब पार्टी अपने खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है, पार्टी के पास सदस्यों के निलंबन को वापस लेने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा है। पार्टी यह कर भी रही है। बावजूद इसके नेताओं और कार्यकर्ताओं का भाजपा की ओर पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा।

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