कांग्रेस ने अमेठी लोकसभा सीट पर राहुल गांधी के बजाय किशोरी लाल शर्मा (केएल शर्मा) को उम्मीदवार बनाया है. राहुल गांधी अब अपनी मां सोनिया गांधी की रायबरेली सीट से किस्मत आजमाएंगे. बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी से लेकर पीएम मोदी तक राहुल गांधी पर हार के डर से अमेठी छोड़कर भागने का आरोप लगे रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस इसे अपनी रणनीति का हिस्सा बता रही है. राहुल गांधी के रायबरेली से उतरने से अब अमेठी का चुनाव राहुल बनाम स्मृति ईरानी नैरेटिव होने के बजाय केएल शर्मा बनाम स्मृति के बीच होता नजर आएगा?
बता दें कि राहुल गांधी का अमेठी सीट छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ने के फैसले के पीछे चुनाव हारने का डर नहीं बल्कि बीजेपी की रणनीति को फेल करना माना जा रहा है. 2024 के लोकसभा का चुनावी माहौल पूरी तरह से मोदी बनाम राहुल के इर्द-गिर्द नजर आ रहा है. ऐसे में राहुल गांधी अगर अमेठी सीट से चुनावी मैदान में उतरने पर यह नैरेटिव बदलकर राहुल बनाम ईरानी हो जाता. कांग्रेस इस बार इस नैरेटिव को नहीं बनने के लिए ही केएल शर्मा का दांव खेला है और राहुल गांधी को रायबरेली सीट से उतारा गया है.
रणनीति के साथ चुनाव लड़ रही कांग्रेस
वरिष्ठ पत्रकार फिरोज नकवी कहते हैं कि कांग्रेस इस बार का लोकसभा चुनाव बहुत ही रणनीति के साथ लड़ रही है. पहली बार ये देखने को मिल रहा है कि बीजेपी ने कांग्रेस को अपनी पिच पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां पीएम मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम नेताओं को अपनी-अपनी रैलियों में सफाई देनी पड़ रही है. बीजेपी नेताओं को कहना पड़ रहा है कि सत्ता में आएंगे तो न संविधान बदला जाएगा और न ही आरक्षण खत्म करेंगे. इस नैरेटिव को राहुल गांधी ने बीजेपी के खिलाफ खड़ा किया है.
वह कहते हैं कि 2024 का चुनाव मोदी बनाम राहुल के बीच सिमटने के बाद भी कांग्रेस के हौसले बुलंद है और बीजेपी के माथे पर बल दिख रहा है. कांग्रेस अब इस नैरेटिव को बनाए रखना चाहती है, जिसे तोड़ने के लिए राहुल गांधी को रायबरेली से उतारा गया है ताकि राहुल बनाम ईरानी के बजाय केएल शर्मा बनाम स्मृति हो. स्मृति ईरानी को बहुत ज्यादा हाइप नहीं मिल पाएगी.
‘अगर लड़ते चुनाव तो जीत सकते थे’
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी ने कहा कि राहुल गांधी इस बार अमेठी से चुनाव लड़ते हैं तो हो सकता है कि वो जीत जाते, लेकिन उनके न लड़ने के पीछे दूसरा बड़ा कारण यह है कि स्मृति ईरानी के खिलाफ चुनाव लड़कर अब उन्हें बहुत ज्यादा सियासी अहमियत नहीं देना चाहते हैं. स्मृति ईरानी को राजनीतिक पहचान सिर्फ इसलिए मिली है, क्योंकि अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ वो चुनाव लड़ीं और उन्हें चुनाव हराने में कामयाब रहीं.
वह कहते हैं कि राहुल अगर अब दोबारा से चुनाव लड़ते तो उससे स्मृति ईरानी को बहुत तवज्जो मिलती. अगर वो चुनाव जीतने में सफल रहती हैं तो उनका सियासी कद बढ़ सकता है. इसीलिए गांधी परिवार ने अब खुद लड़ने के बजाय अपने करीबी किशोरी लाल शर्मा को उतारा है ताकि एक तीर से कई शिकार किए जाएं. कांग्रेस ने अब अमेठी में राहुल बनाम स्मृति के बजाय केएल शर्मा बनाम स्मृति कर दिया है.
नई चुनावी रणनीति तय करने की जरूरत
वरिष्ठ पत्रकार विजय उपाध्याय कहते हैं कि राहुल गांधी ने अमेठी छोड़कर बीजेपी को घेरने का मौका फिलहाल जरूर दे दिया है, लेकिन अब अमेठी में स्मृति ईरानी के पास केएल शर्मा पर निशाना साधने के लिए कोई खास मुद्दा नहीं होगा. किशोरी लाल शर्मा पर अब स्मृति ईरानी क्या आरोप लगाएंगी. पिछले 40 सालों से वो रायबरेली और अमेठी में रहकर कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं. उनके खिलाफ किसी तरह का कोई मामला नहीं है, जिसे लेकर स्मृति उन पर निशाना साध सकें. इसीलिए अमेठी में स्मृति ईरानी को अब नए तरीके से चुनावी रणनीति तय करनी होगी और केएल शर्मा के इर्द-गिर्द. इस तरह अमेठी का जो चुनाव राहुल बनाम स्मृति माना जा रहा था, वो अब स्मृति बनाम केएल शर्मा होगा