सऊदी अरब दुनिया के उन देशों में शुमार है जो सबसे अधिक मात्रा में हथियार खरीदता है. अव्वल तो खाड़ी के सभी देशों का यही हाल है पर सऊदी अरब इस खरीदारी में एक अलग ही मकाम रखता है. सीपरी यानी स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट कर के एक संस्थान है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हथियारों की खरीदारी और उसके आयात-निर्यात पर नजर रखती है.
सीपरी की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 से 2023 के दौरान दुनिया में जो भी हथियारों का सौदा हुआ, उसका एक चौथाई हिस्सा अकेले खाड़ी के देशों और इजिप्ट के नाम गया. सऊदी अरब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियारों का आयातक (इंपोर्टर) देश रहा. वह भी तब जब वह पिछले कुछ बरसों से आक्रामक हथियार अमेरिका से नहीं खरीद पा रहा. लेकिन अब परिस्थितियों ने कुछ इस तरह करवट ली है कि बहुत मुमकिन है सऊदी पर लगा ये प्रतिबंध हट जाए.
क्यों सऊदी पर लगा था बैन?
दरअसल जो बाइडेन 20 जनवरी 2021 को अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे. इसके बाद उन्होंने ट्रंप की विरासत से एक-एक कर पीछा छुड़ाना शुरू किया. इस कड़ी में उन्होंने सऊदी अरब को लेकर कुछ कड़े और बड़े फैसले लिए. मीडिया रपटों की मानें तो इसकी वजह सऊदी अरब का मानवाधिकार के मामलों में खराब प्रदर्शन था.
खासकर, यमन में सऊदी ने जिस तरह से हूती विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई की, इसमें बड़ी संख्या में नागरिकों की जान गई. सऊदी इन विद्रोहियों को यमन के लिए खतरा मानता है. इसकी वजह ईरान से हूतियों की सांठगांंठ भी है. सऊदी अरब की हूतियों के खिलाफ लड़ाई बाइडेन प्रशासन को रास नहीं आई.
इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार जमाल खशोगी की साल 2018 में हुई हत्या को लेकर अमेरिका पहले से नाराज था. ऐसे में, उसने उन आक्रामक हथियारों को सऊदी अरब को देने पर प्रतिबंध लगा दिया जो अमेरिका का प्रशासन लंबे अरसे से सऊदी अरब को देता रहा था.
अब क्यों हट रहा बैन?
अब तकरीबन तीन साल बाद अमेरिका इस प्रतिबंध को हटा सकता है. इस सिलसिले में ब्रिटेन के बिजनेस अखबार फाइंनेंशियल टाइम्स ने कुछ दावा किया है. अखबार ने रविवार को इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक शख्स के हवाले से खबर छापा. इस रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका ने सऊदी अरब को ये जानकारी भी दे दी है कि वह अब अपना प्रतिबंध हटाने जो रहा है.
अभी हाल ही में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन खाड़ी के दौरे पर भी थे. अमेरिका और सऊदी अरब न्यूक्लियर एनर्जी से लेकर सुरक्षा और द्विपक्षीय समझौते की दिशा में कुछ करार पर सहमत हुए हैं. इसको रियाद और इजराइल के बीच संबंधों को सामान्य करने की दिशा में बढ़ता हुआ कदम बताया जा रहा है. इजराइल पर हमास के हमले के बाद सऊदी और इजराइल के बीच बातचीत की गाड़ी पटरी से उतर गई थी जो फिर एक बार बनती नजर आ रही है.