लोकसभा में दस साल के बाद कांग्रेस को अधिकृत रूप से नेता प्रतिपक्ष का पद मिलने जा रहा है. मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस के लोकसभा सांसद 10 फीसदी के कम जीतकर आए थे, जिसके चलते ये का पद नहीं मिल सका था. इस बार कांग्रेस के 99 सांसद जीतकर आए हैं, जो लोकसभा की कुल संख्या का 18 फीसदी हैं. कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने इस पद के लिए राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव पारित किया है. कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेता भी चाहते हैं कि राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बनें लेकिन सवाल है कि क्या राहुल गांधी इस संवैधानिक पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार होंगे?
कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में लोकसभा में कांग्रेस का नेता तय किया जाना है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी की पिछले दिनों हुई बैठक में सर्वसम्मति से राहुल गांधी को लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष बनने की मांग उठने और प्रस्ताव पास किए जाने के बाद राहुल ने इस बारे में सोचने के लिए वक्त मांगा था. लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष का पद संसदीय व्यवस्था में काफी अहम होता है. यह संवैधानिक पद है.
‘लीडर ऑफ अपोजिशन इन पॉर्लियामेंट एक्ट 1977’ के अनुसार, नेता प्रतिपक्ष के अधिकार और सुविधाएं ठीक वैसे ही होती हैं, जो एक कैबिनेट मंत्री की होती हैं. वो तकनीकी तौर पर अपनी पार्टी का नेता होता लेकिन वो पूरे विपक्ष की आवाज होता है. उसके बिना ईडी और सीबीआई के प्रमुख की नियुक्ति नहीं हो सकती. इसका काम सरकार को आईना दिखाने का होता. ऐसे में राहुल गांधी इस पद संभालते हैं तो उन्हें पांच काम करने होंगे?
विपक्ष को एकजुट रखना होगा
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि राहुल गांधी अगर नेता प्रतिपक्ष बनते हैं तो तकनीकी रूप से भले ही वो अपनी ही पार्टी के नेता होंगे लेकिन असल में विपक्ष के नेता होते हैं. ऐसे में राहुल गांधी को अपने दल के साथ-साथ विपक्ष के अन्य दलों के साथ भी तालमेल बनाकर रखना होगा. विपक्षी एकजुट होकर ही सरकार को घेर सकते हैं. 2024 में विपक्षी दल जिस तरह इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़े हैं, उन सभी दलों को लोकसभा के सदन में भी एक साथ जोड़कर रखना होगा.
इसके लिए कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्ष दलों से जुड़े मुद्दों को भी पुरजोर तरीके से सदन में उठाना और उनके साथ खड़े रहने होगा. मल्लिकार्जुन खरगे ने राज्यसभा में ऐसे भी दलों को साथ जोड़ा है जो कांग्रेस के साथ नहीं आते थे. वाईएसआर कांग्रेस और टीएमसी के साथ तालमेल बनाकर रखना होगा. राहुल गांधी को विपक्षी दलों के साथ नियमित रूप से संवाद करना.
टाइम मैनेजमेंट का ध्यान
नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी को टाइम मैनेजमेंट का भी ख्याल रखना होगा. नेता प्रतिपक्ष को संसद के सत्र में पार्टी के कार्यक्रम में रहना पड़ता है. संसद में होने वाली प्रमुख घटनाओं पर नजर रखनी होती है. नेता सदन के बाद दूसरे नंबर की भूमिका नेता प्रतिपक्ष की होती है. राहुल गांधी को संसद सत्र चलने के दौरान सदन में उपस्थित ही नहीं रहना होगा बल्कि सरकार के काम-काज पर भी बारीकी से नजर रखनी होगी.
नेता प्रतिपक्ष तमाम अलग-अलग महत्वपूर्ण समितियों में मेंबर भी होता है. उसमें उनके नेता रहेंगे और रचनात्मक भूमिका ठोस तरीके से निभा पाएंगे. सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्त कमेटी, कॉलिजियम, चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बनाई गई हाई पावर कमेटी में शामिल होना होता है. इस तरह राहुल गांधी को इन कमेटी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए मौजूद रहना होगा. इन तमाम कमेटियों में नेता प्रतिपक्ष की वोटिंग अहम साबित होगी.
मुद्दों की समझ और सेलक्शन
नेता प्रतिपक्ष लोकसभा के सुचारू संचालन और सरकार के कामकाज पर बारीकी से नजर रखता है और जनता के मुद्दों को उठाता है. उसका काम सरकार की खामियों को देश के सामने रखना और सत्ता पक्ष को घेरना होता है. ऐसे में राहुल को विपक्षी दलों के साथ नियमित संवाद करने के साथ ही उनके साथ एक राय भी बनानी होगी. सरकार को घेरने के लिए तमाम मुद्दों में चंद मुद्दों को छांटना होता है, जिसमें सदन में सरकार को घेरा जा सके. नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल को यह भी तय करना होगा कि किस विपष पर कौन नेता बोलेगा और कितने समय के लिए बोलेगा.
सरकार को आईना दिखाना
अरविंद सिंह बताते हैं कि नेता प्रतिपक्ष का काम सरकार को आईना दिखाने का होता है. संसद में आने वाले विधेयकों पर बहस में प्रमुखता से भूमिका निभाना और विपक्ष के नजरिए को सदन में रखने का काम होता है. ऐसे में विधेयकी खामियां को सरकार के सामने रखने के लिए मजबूती के साथ तर्क देने होते हैं. जनभावनाओं के खिलाफ आने वाले बिल का विरोध करना होता है. नेता प्रतिपक्ष के कर्तव्यों में सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करने के साथ-साथ विपक्ष के दृष्टिकोण को रखना होता है. नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल को सजग रहना होगा और सरकार के कामकाज पर बारीकी से नजर रखनी होगी.
सरकार को एक्सपोज करना
नेता प्रतिपक्ष सरकार के कामों को रिव्यू करता है. उसका काम सरकार के लिए ऑप्शन देना भी होता है. सरकार अगर कोई गलत काम कर रही है तो उसे सदन में एक्सपोज करने का काम नेता प्रतिपक्ष का होता है. केंद्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों के काम पर नजर रखना और कुछ गलत काम हों तो उन्हें लोगों के सामने लाने का काम नेता प्रतिपक्ष का होता है. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह कहते हैं कि नेता प्रतिपक्ष को छाया प्रधानमंत्री भी कहा जाता है. नेता प्रतिपक्ष लोक लेखा समिति का चेयरमैन भी होता है. ये कमेटी सरकार के फाइनेंशियल अकाउंट्स की जांच करती है और उन पैसों के हिसाब की जांच करती है जो संसद के माध्यम से सरकार को खर्च करने के लिए दिया जाता है.